कारगिल पार्ट -2

जंग के नजरिए से देखें तो चीन बड़ी तादाद में अपनी फौज उन जगहों पर लेकर आया है जो हाइट, टिरेन और वेदर के नजरिए से दुनिया में सबसे मुश्किल जगह में से हैं, यहां बड़ी तादाद में सैनिक और साजो सामान लेकर आना, और बने रहना बहुत मुश्किल है। जाहिर है ये सब एकाएक नहीं हुआ होगा, इसके लिए चीनी सेना और चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के सर्वोच्च स्तर पर फैसला लिया गया होगा।
साफ तौर पर कहें तो हमारी सरहद में कारगिल पार्ट 2 का ये फैसला चीन के प्रेसीडेंट शी जिनपिंग का है।
इतिहास बताता है कि चीन का असली चेहरा तब सामने आ जाता है, वो कायरों की तरह घात लगाकर दूसरे देश के सैनिकों पर तब हमला करता है, जब उसे लगता है कि उस देश ने कुछ ऐसा कदम उठाया है जिससे उस इलाके में चीन की स्ट्रैटजिक बढ़त या उस इलाके को लेकर चीन का दावा आगे भविष्य में कमजोर हो सकता है।
तिब्बत और सिनज्यांग के बीच चीन ने हाइवे 219 बनाया है। दौलत बेग ओल्डी एयरफील्ड से इस हाइवे पर निगाह रखी जा सकती है। गलवान में श्योक नदी पर पुल और दौलत बेग ओल्डी की मुख्य सड़क के करीब सहायक सड़क बनाने से चीन बौखला गया। लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने से भी उसकी रणनीति प्रभावित हो रही थी।
चीन इसी मकसद से पेन्गांग झील पर फिंगर 8 से भारत की सरहद के अंदर फिंगर 4 पर आ गया। यहां हमारी सेना उसे अब तक धक्का-मुक्की कर फिंगर 6 तक धकेलने में कामयाब हो चुकी है।
सोशल मीडिया पर अरुणाचल के बीजेपी सांसद के हवाले से खबर आ रही है कि चीन अरुणाचल में भी एलएसी में भारतीय सीमा के अंदर आ गया है।
भारतीय सीमा पर चीन की आक्रामक नीति की वजह क्या है?
ऐसे वक्त में जबकि दुनिया चीन को कोरोना का गुनहगार करार दे चुकी है, चीन सरकार की चिन्ता अपने नागरिकों में कम्यूनिस्ट शासन के प्रति बढ़ रहे असंतोष को लेकर है। 1989 में कम्यूनिस्ट शासन में करप्शन और महंगई को लेकर जब छात्रों ने थियेन मन चौक पर विरोध किया तो ली पेंग और देंग श्यायो पिंग ने सेना के जरिए उन्हें कुचल दिया। लेकिन आज के चीन में जनता की आवाज को उस तरह कुचलना शायद मुमकिन न हो। इसलिए चीन की जनता का ध्यान भटकाने के लिए शी जिनपिंग की सरकार राष्ट्रवाद के मुद्दे को उभार रही है और अपने सभी पड़ोसियों के साथ आक्रामक तेवर अख्तियार कर रही है। बीते बीस साल में चीनी सेना की तैयारी का एक अहम सूत्र ये रहा है कि वो एक साथ कई मोर्चों पर लड़ पाए, अब वो अपनी तैयारी की जांच के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कई पड़ोसियों को भड़का रहा है।
- भारत – लद्दाख और अरूणाचल में कारगिल की तरह घुसपैठ
- ताइवान – हवाई सीमा का उल्लंघन
- वियतनाम – मछली मारने वाली नावों पर हमला
- फिलीपीन्स – नए नक्शे में चीन ने फिलीपीन्स के कई टापुओं पर दावा किया
- जापान – सेन्काकु द्वीप पर फ्रिगेट भेजे
- ऑस्ट्रेलिया – सबसे बड़ा साइबर अटैक
- हांगकांग – नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति
चीन ये बर्दाश्त नहीं कर पा रहा, कि जहां कोरोना को लेकर दुनिया में हर जगह उसकी आलोचना हो रही है, वहीं भारत सिक्योरिटी काउन्सिल का मेंबर बना है और दुनिया में उसका कद हर दिन बढ़ रहा है।
एक मुद्दा वक्त को लेकर भी है। कारगिल की शुरूआत भी घाटी में मई की शुरूआत में बर्फ पिघलने से हुई थी, 21 साल बाद फिर से वही वक्त चीन ने भी चुना।
कोरोना की वजह से हमारी सेना का प्रस्तावित युद्धाभ्यास रोक दिया गया। जबकि इसी दौरान तिब्बत के पहाड़ी इलाके में चीनी सेना, टैंक और तोपखाना से प्रेसीजन टारगेटिंग का अभ्यास करती रही। ग्लोबल टाइम्स में चीनी सेना का वीडियो साइकोलॉजिकल वारफेयर के तहत जारी किया गया।
ये महज इत्तेफाक नहीं हो सकता कि एक ही वक्त गलवान में चीन भारतीय सैनिकों पर घात लगाकर हमला करता है, तो नेपाल विवादित नक्शे को लेकर सामने आता है, उकसावे की कार्रवाई में एक भारतीय नागरिक को मार डालता है, वहीं पाकिस्तान एलओसी पर भड़काने वाली कार्रवाई करता है और पाकिस्तानी सेना में सर्वोच्च स्तर की बेहद खुफिया मीटिंग होती है।

बड़ी तस्वीर क्या है?
बड़ी तस्वीर ये है कि चीन हमारी तरक्की से , हमारी कामयाबी से, दुनिया में बढ़ते हमारे रसूख से चिढ़ा हुआ है। वो चाहता है कि कोरोना को लेकर चीन के खिलाफ, WHO की जांच में भारत तटस्थ रहे, वो चाहता है कि भारत चीन और हांगकांग पर भारत में FDI पर लगी रोक हटा ले, 5G के मुद्दे पर चीनी कंपनी हुवावे को भारत के टेलीकॉम बाजार में जगह मिले और लद्दाख को यूनियन टेरिटरी बनाने का फैसला भारत सरकार वापस ले। क्योंकि उसे इनमें से किसी मुद्दे पर भारत से समर्थन मिलता नजर नहीं आ रहा, लिहाजा वो एक और 1962 की साजिश को अंजाम देने की कोशिश कर रहा है।
एक बार दुश्मन को दोस्त समझने की भूल हम कर चुके हैं, अगर ये दोबारा हुआ तो ये भूल नहीं गुनाह होगा।