Type to search

केरल निकाय चुनाव: क्या कहते हैं परिणाम?

देश बड़ी खबर राजनीति राज्य

केरल निकाय चुनाव: क्या कहते हैं परिणाम?

kerala local body elections
Share on:

केरल (Kerala) में हुए स्थानीय निकाय चुनावों (local body election) में सत्तारुढ़ एलडीएफ ने बड़ी जीत दर्ज की है। कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ दूसरे स्थान पर रहा, जबकि बीजेपी तीसरे स्थान पर रही है। बता दें कि केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इस स्थानीय चुनाव को काफी अहम माना जा रहा है। यही वजह है कि इस चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान स्थानीय मुद्दों से ज्यादा राष्ट्रीय मुद्दे छाये रहे।

केरल (Kerala) के 941 ग्राम पंचायतों में, 15,962 वार्डों, 152 ब्लॉक पंचायतों में 2080 वार्डों, 14 जिला पंचायतों में 331 डिवीजनों, 86 नगरपालिकाओं में 3078 वार्डों और 6 नगर निगमों में 414 वार्डों के चुनाव हुए थे। कुल मतदान 76 फीसदी हुआ था, जो 2015 में हुए 77.76% वोटिंग से थोड़ा कम था।

सवाल ये है कि क्या इस चुनाव परिणाम से राजनीतिक दलों की मौजूदा स्थिति और उनके भविष्य का आकलन किया जा सकता है? इन नतीजों से भविष्य ना सही, लेकिन उसकी दशा-दिशा का अंदाजा जरुर लग सकता है, क्योंकि यही नतीजे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टियों की जमीन तैयार करेंगे।

Kerala: लेफ्ट की बादशाहत कायम

निकाय चुनावों में सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ ने बड़ी जीत हासिल की है। 941 ग्राम पंचायतों में से 514 और 14 जिला पंचायतों में से 10 लेफ्ट की झोली में गए। इसके अलावा 152 ब्लॉक पंचायतों में से 108 पर सत्तारुढ़ एलडीएफ को जीत मिली। नगरपालिकाओं में एलडीएफ को कोझीकोड, कोल्लम और तिरुवनंतपुरम में भारी बहुमत मिला है और कोच्चि में यह इकलौती सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि यह लोगों की जीत है और केंद्र सरकार की एजेंसियों के लिए एक उचित जवाब है जो राज्य को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं।

लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट ने मोटे तौर पर अपना किला बचाये रखा, जबकि यूडीएफ के वोट-बैंक में, विशेष रूप से त्रिशूर, एर्नाकुलम और कोट्टायम जिलों में गहरी सेंध लगाई। वैसे विपक्षी दलों ने सरकार के कामकाज को लेकर तमाम तरह के सवाल उठाये थे, लेकिन राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं, खास तौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किये काम ने उनको चुनावी फायदा पहुंचाया।

इस चुनाव में साफ दिखता है कि लेफ्ट का ग्रामीण इलाकों में दबदबा बरकरार है, लेकिन शहरी क्षेत्रों और निगमों में उसकी पकड़ कम हो रही है। तिरुअनन्तपुरम में बीजेपी का ग्रामीण इलाकों में भी बढ़ता प्रभाव (जैसे- कल्लिकाड पंचायत) पार्टी के लिए चिंता का सबब बन रहा है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक CPI(M) को शहरी इलाकों में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से खतरा हो सकता है और आगामी चुनावों में उन्हें इस बात का खास ख्याल रखना होगा।

कांग्रेस को झटका

निकाय चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ गठबंधन दूसरे स्थान पर रहा है। यूडीएफ को 375 ग्राम पंचायतों, 44 ब्लॉक पंचायतों और 4 जिला पंचायतों में जीत मिली है। UDF को कन्नूर में बहुमत और त्रिशूर में सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा मिला। नगरपालिकाओं में यूडीएफ ने बेहतर किया है और 86 में से 45 में जीत हासिल की है। आपको बता दें कि नगरपालिकाओं में एलडीएफ को 35 और एनडीए को दो सीटें ही मिली हैं।

वैसे, ये परिणाम यूडीएफ के लिए एक तगड़ा झटका है, क्योंकि ये स्थानीय निकाय चुनावों में बड़ी जीत की उम्मीद कर रहा था। कांग्रेस ने मध्य केरल (Kerala) के अपने गढ़ को खो दिया। LDF ने पुथुपल्ली विधानसभा क्षेत्र के 8 में से 6 निगमों में यूडीएफ को पटखनी दे दी, जबकि ये विधानसभा क्षेत्र 50 सालों से ओमन चंडी का इलाका रहा है। यूडीएफ का दक्षिण केरल से लगभग सूपड़ा साफ हो गया है। इस गठबंधन के लिए राहत की बात सिर्फ ये रही कि इसने प्रदेश के 86 निगमों में से 45 में जीत हासिल की। लेकिन इसमें भी गठबंधन ने 2015 की तुलना में 150 वार्डों में अपनी जीती हुई सीटें गंवा दीं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक संगठन की कमजोरी ने एरनाकुलम और मल्लापुरम जिलों को छोड़कर सभी जिलों में पार्टी को नुकसान पहुंचाया। इन दो जिलों में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के साथ मिल कर यूडीएफ ने क्लीन स्वीप किया। नेता प्रतिपक्ष रमेश चेन्निथला ने स्वीकार किया कि सोने की तस्करी मामले और एलडीएफ सरकार के भ्रष्टाचार का असर… परिणामों पर नहीं पड़ा है। केरल कांग्रेस(M) के जोस मनी गुट से रिश्ता तोड़ना भी कांग्रेस के लिए फायदेमंद नहीं रहा। कांग्रेस नेताओं के मुताबिक यूडीएफ और कांग्रेस में ना तो एकजुटता दिखी ना तालमेल। इसके अलावा गलत सहयोगियों का चयन, उम्मीदवारों के चयन में गुटबाजी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का बिना वजह वेलफेयर पार्टी पर कमेंट करना भी गठबंधन को भारी पड़ा।

बीजेपी को सबक

Kerala निकाय चुनाव परिणामों में बीजेपी के लिए मिश्रित संदेश है। NDA को फायदा तो हुआ है, लेकिन उतना नहीं जितने की उम्मीद थी। बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए के हिस्से 23 ग्राम पंचायतें ही आई हैं, जबकि ब्लॉक या जिला पंचायत स्तर पर एनडीए को एक भी सीट नहीं मिली है। पार्टी ने कम से कम 600 अपनी वैसी सीटें गंवाई हैं, जहां पिछली बार उन्हें जीत मिली थी। बीजेपी ने पिछले स्थानीय निकाय चुनावों में 1,236 सीटें जीती थीं। इस बार, पार्टी ने 2,500 सीटों का लक्ष्य रखा था, लेकिन लगभग 1,700 वार्डों में जीत हासिल हुई है।

हालांकि एनडीए के हिस्से में जिला पंचायत की एक भी सीट नहीं आई, लेकिन भाजपा ने 23 ग्राम पंचायतों में जीत हासिल की है। भाजपा सांसद केजे एल्फोन्स ने बताया कि लगभग 50 ग्राम पंचायतों में हमारी संख्या अन्य दलों के बराबर है, जहां हम सत्ता में आ सकते हैं। पार्टी ने पलक्कड और पंडालम निगमों में जीत हासिल की, लेकिन पिछली बार की तीन पंचायतों की तुलना में इस बार दो जिला पंचायतों में ही पार्टी को कामयाबी मिली। वैसे पार्टी ने कोडुंगलूर और वरकला जैसे शहरी इलाकों में दूसरा स्थान पाने में कामयाबी हासिल की है, लेकिन त्रिशूर में जीत का सपना पूरा नहीं हो पाया।

स्थानीय सूत्रों के मुताबिक बीजेपी ने शहरी क्षेत्रों में खासी पैठ बनाई है और मुस्लिम मतदाताओं की तुलना में पार्टी को ईसाई मतदाताओं का ज्यादा समर्थन मिल रहा है। कुछ इलाकों में सरकार की मुस्लिम परस्त नीतियों के विरोध में ईसाई गुट खुलकर बीजेपी के समर्थन में आ गये है। वहीं शहरी इलाकों में बीजेपी का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। कुल मिलाकर ऐसी संभावना दिख रही है कि 2021 के Kerala विधानसभा चुनाव में यूडीएफ के बजाए बीजेपी मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरे।

Shailendra

Share on:
Tags:

You Might also Like

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *