बस इतना सा ख्वाब है …!
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हर देश के इतिहास में एक वक्त आता है, जब मजबूत और निर्णायक कदम की जरूरत होती है।
नरेंद्र मोदी 8नवंबर 2016
इतिहास पढ़ने में वो सुख कहां जो इतिहास रचने में है। हम भाग्यशाली हैं, हमारे पीएम को हर बात की चिंता है….यहां तक कि… प्राइम टाइम डिबेट के टॉपिक की भी…
कोरोनाकाल में हेडलाइन की चिंता वाला ये ऐलान ऐसे वक्त आया है, जबकि हर तीसरा भारतीय गरीबी रेखा में गिर पड़ने से महज एक हफ्ता दूर है( स्रोत:CMIE)
कितना होता है 20 लाख करोड़ ?
प्रधानमंत्री ने जिस पैकेज का ऐलान किया है, वो हमारे इस साल के बजट 30.42 लाख करोड़ का 70%है। जाहिर है ये रकम दो माह पहले सरकार के पास नहीं थी… होती तो हमारा बजट 50 लाख करोड़ का होता। 33 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री ने बहुत सारी बातें बताईं, बस ये नहीं बताया कि ये बीस लाख करोड़ आएंगे कहां से और ये इसी साल खर्च होने वाले हैं, या अगले दो-तीन सालों में? बीते 8 मई को बाजार से नई उधारी लेने के बाद इस साल सरकार अब तक 12 लाख करोड़ कर्ज ले चुकी है।ये बजट से 54% ज्यादा है।
क्या ये पूरे 20 लाख करोड़ हैं?
वित्त मंत्री का 1.7 लाख करोड़ का पैकेज और रिजर्व बैंक के 5.2 लाख करोड़ TLTRO, CRR में कटौती) के ऐलान को घटा दें तो ये रकम 13 लाख करोड़ होती है।
आगे क्या होगा ?
सबसे ज्यादा प्रभावित सेक्टर जैसे – टूरिज्म, एवियेशन, मैन्यूफैक्चरिंग को आसान शर्तों पर नए कर्ज
रिजर्व बैक कॉरपोरेट बांड खरीदने के लिए एक SPV – special purpose vehicle बनाएगी
सरकार फंड जुटाने के लिए दो लाख करोड़ का कोरोना बांड जारी कर सकती है
डीबीटी के जरिए दर्ज किसानों और रजिस्टर्ड मजदूरों के खाते में रुपये डाले जाएंगे
अनुमान है कि इन सारी कोशिशों से फिस्कल डेफिसिट जीडीपी के 8% तक पहुंच जाएगा, जिसकी सीमा FRBM एक्ट के तहत 3.5% तय की गई थी।
शॉर्ट टर्म नतीजा
शेयर बाजार में उछाल, लेकिन बांड बाजार में गिरावट
मजदूरों को क्या मिलेगा ?
प्रधानमंत्री ने कहा है कि ये पैकेज मजदूर, किसान, टैक्स देने वाला ईमानदार मध्य वर्ग और इंडस्ट्री के लिए होगा। सरकार के पास देश के 4.6 लाख करोडपतियों की पूरी डिटेल है, जीएसटी देने वाली कंपनियों से लेकर टैक्स देने वाले 2 करोड़ के करीब इनकमटैक्स देने वाले लोगों की लिस्ट भी है। लेकिन मजदूर, किसान, रेहड़ी वाले, खोमचे वालों का आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। श्रम मंत्रालय पहले ही कबूल कर चुका है कि उसके पास प्रवासी मजदूरों का कोई आंकड़ा नहीं है। जिनका आंकड़ा नहीं है, उन तक मदद कैसे पहुंचेगी, उन्हें रोजगार कैसे मिलेगा,ये बड़ा सवाल है। इसमें किसी को कोई शक नहीं कि इंडस्ट्री को वो सब कुछ मिलेगा, जो उसे चाहिए, क्योंकि ये मां का दुलारा बेटा है…राजा बेटा है, इसे कहना भी नहीं पड़ता..मां समझ जाती है। जैसे कारपोरेट टैक्स में वो कमी जिससे एक झटके में सरकार को 1.7 लाख करोड़ का फटका पड़ गया।
ये राजनीति में इतिहास का अनोखा सबक है कि, आप वही बनने की हसरत रखते हैं, जिसकी मुखालफत करके आप एक मुकाम हासिल करते हैं। 4L – land, labour, liquidity, laws- में सुधारों के जरिए मोदी क्या 1991 के मनमोहन सिंह की liberator of indian economy वाली छवि हासिल कर पाएंगे?
ये सिर्फ हसरत या कोशिश नहीं, महत्वाकांक्षा कही जाएगी, क्योंकि राजनीति मोदी का जितना ही मजबूत पक्ष है इकोनॉमी में वो अब तक उतने ही कमजोर साबित हुए हैं।