बिन तेरे सृष्टि की कल्पना अधूरी !
बाल्मीकि रामायण में निम्नलिखित श्लोक मिलता है:
अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
राम, लक्ष्मण से कहते हैं, ” लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।”
हमारी संस्कृति में मां का स्थान देव लोक से भी ऊंचा है। इतिहास और धर्म के पन्नों में यह साफ साफ लिखा हुआ है कि माँ की जगह कोई नहीं ले सकता है। हमारे जीवन में, माँ को बैकुंठ और देवी का रूप दिया गया है। हमने प्रकृति को, नदियों को, गाय को, शक्ति की देवी दुर्गा को, विद्या की देवी सरस्वती को, मां कहकर ही पुकारा है। भगवान के अतिरिक्त केवल माँ ही है, जिसे अपने गर्भ में एक नए जीवन का सृजन करने और उसके देखभाल के साथ उसे विकसित करने की शक्ति मिली हुई है। अगर मां ना होती तो सोचिए यह दुनिया कितनी बंजर होती। माँ के बिना जीवन की उम्मीद नहीं की जा सकती, अगर माँ न होती तो हमारा अस्तित्व ही न होता|
“माँ” एक ऐसा शब्द है जिसे दुनिया का हर बच्चा अपने मुंह से इस दुनिया में आने के बाद सबसे पहले लेता है। नवजात शिशु का सबसे पहले साक्षात्कार उसकी मां से ही होता है। उसके आंचल के अमृत से ही बच्चे का विकास होता है।
जॉर्ज इलियट लिखते हैं, “ज़िन्दगी उठने और माँ के चेहरे से प्यार करने के साथ शुरू हुई।”
अगाथा क्रिस्टी का कहना है कि, “अपने बच्चे के लिए माँ का प्यार दुनिया में सब चीजों से बढ़कर है। यह किसी कानून को नहीं जानता, किसी से नहीं डरता। यह सब चीजों से लड़ने की हिम्मत रखता है और अपने बच्चे के रास्ते में आने वाली हर मुसीबत को कुचलना जनता है।”
सच है, माँ के लिए दुनिया में सबसे कीमती उनके बच्चे ही होते है। मनुष्य में ही नहीं हर प्रकार के जीव जंतु में यही होता है| शायद इसी प्रेम के चलते एक बकरे की माँ भी शेर से भी भिड़ जाती है। अगर बच्चे पर आंच आने वाली होती है तो माँ सबसे पहले आगे आ जाती है। मुनव्वर राणा, जिन्होंने मां के जरिए शायरी भी पाक कर दी, लिखते हैं:
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती ।।
संसार के सभी महान पुरुष अपनी मां के समर्थन और भक्ति के कारण ही उन उचाईयों तक पहुंचे हैं जो हमेशा उनके लिए खड़ी रहीं और मुक़ाबले के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहीं। पिकासो बताते हैं, मेरी माँ ने मुझसे कहा, “अगर तुम सैनिक हो तो तुम सेनापति बनोगे। अगर तुम साधू हो तो महंत बनोगे ”, बजाय इनके मैं पेंटर था और पिकासो बन गया। चन्द्रगुप्त मौर्य भी अपनी माता के सम्मान और उनसे प्यार के कारण एक आम व्यक्ति से वीर योद्धा बना और अपनी माँ के लिए मगध को जीत कर दिखाया। अब्राहम लिंकन ने कहा था, “मैं जो कुछ भी हूँ या होने की आशा रखता हूँ उसका श्रेय मेरी माँ को जाता है।”
माँ, एक बच्चे के लिए हमेशा से ही सबसे पहली गुरु, सबसे अच्छी प्रशिक्षक और मार्गदर्शिका होती है। माँ हमेशा ही अपने बच्चे को सिखाती है कि जीवन के सफर में किस तरह मुसीबतों को झेलना है अच्छे संस्कार देती है जो हमें बेहतर इंसान बनाते हैं। कमजोर समय में हिम्मत और साहस देने वाली माँ ही होती है। पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे, छत्रपति शिवाजी के जीवन काल पर आधारित “जाणता राजा” नाटक के लेखन और मंचन के लिए प्रसिद्ध हैं। एक बार उनसे जब यह पूछा गया कि भारत में दूसरा शिवाजी पैदा क्यों नहीं हुआ, तो उन्होंने दो टूक उत्तर दिया, “क्योंकि दूसरी जीजाबाई पैदा नहीं हुई।” दूसरी तरफ, कहा जाता है कि फांसी होने से पहले सुल्ताना डाकू की मां जब उससे मिलने आगरा की जेल में गई, तब सुल्ताना डाकू ने उसकी नाक काट ली थी। उसने अपनी स्थिति के लिए अपनी मां को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, “इंसान वही बनता है जो उसकी मां उसे बनाती है।” मनुष्य के जीवन में, सफलता और असफलता में यह है मां का महत्त्व।
मां के स्नेह, दया, ममता, क्षमा, त्याग और बलिदान जैसे गुण अतुलनीय हैं। एक माँ अपने बच्चे के लिए हमेशा ही प्रेम दर्शाती है। माँ का प्यार कभी भी अपने बच्चे के लिए कम नहीं होता है। दरअसल मां भगवान का ही दूसरा रूप होती है। रुडयार्ड किपलिंग ने लिखा है, “भगवान् सभी जगह नहीं हो सकते इसलिए उसने माएं बनायीं।” मुनव्वर राना मां से लिपट कर फरिश्ता होने की ख्वाहिश रखते हैं।
मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं,
मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं ।।
आज एक ऐसा दिवस है जो हम सभी लोगों के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण किरदार के लिए मनाया जाता है। आज मातृ दिवस के अवसर पर हम सभी को विशेष रूप से न केवल इस विशेष दिन पर हमारी माताओं को खुश करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए, बल्कि अपने जीवन के बाकी समय में भी न केवल अपनी माताओं का, अपितु सभी माताओं का ध्यान रखना चाहिए। जीवन में चाहे कितनी भी तरक्की पा लो, पैसा कमा लो, लेकिन सच्चाई यही है कि यदि “माँ” खुश नहीं तो सब व्यर्थ है।
है एक कर्ज जो, हर दम सवार रहता है,
वो माँ का प्यार है, सब पर उधार रहता है।।
आज हम सभी को ये प्रण लेना चाहिए कि भूले से भी हमारी माँ की आँखों में आँसू नहीं आये। सभी अपनी माँ को दिल से धन्यवाद दें और कहें कि माँ, आपने हमारे जीवन के लिए बहुत कुछ किया है और हम भी आपका ताउम्र ख्याल रखेंगे। जब तक एक भी मां वृद्धा आश्रम में है तब तक मातृ दिवस को हम सही अर्थों में नहीं मना सकते।
जिंदगी रफ्तार लेती जा रही है,
तेज उसकी धार होती जा रही है।
रोज रिश्तों के नये मतलब निकलते जा रहे हैं,
पर अभी भी थपकियों की गति वही है, लय वही है,
और ममता से भरा स्पर्श भी बिल्कुल वही है।
शुक्र है सूरज वहीं है, चंद्रमा भी है अभी तक
शुक्र है जिंदा है लोरी, है जहां में मां अभी तक।
साभार: मंजुल मयंक शुक्ल, लेखक