#MSP: ये समझ लिया तो सब समझ लिया
राजनीति की तरह शब्दकोष में भी कभी-कभी किसी शब्द का मतलब उसके सामान्य अर्थ के विपरीत होता है। #MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य है, सुनने में लगता है कि कीमत शायद किसान को इसके ऊपर ही मिलती होगी, लेकिन वास्तव में ये काम करता है MRP- Maximum retail price की तरह। किसान को #MSP से ज्यादा कीमत कहीं भी, कभी भी नहीं मिलती।MSP अभी देश में सबसे बड़ी बहस का मुद्दा है। इसको लेकर तीन सवाल सामने आ रहे हैं –
जब #MSP से देश में 6% किसानों (स्रोत: NSSO survey July 2012-June 2013) को ही फायदा है तो ये किसानों के लिए सबसे अहम मुद्दा क्यों हैं?
अगर देश में कहीं #MSP किसानों को मिलता है तो वो पंजाब है, ऐसे में पंजाब के किसान #MSP के लिए कानून की मांग क्यों कर रहे हैं?
जब #MSP हर साल केंद्र सरकार लागू करती ही है, ऐसे में उसे इस वास्ते कानून बनाने में क्या परेशानी है?
आइए अब इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं। #MSP वो कीमत है जिस पर सरकार हर साल अनाजों की खरीद करती है। इससे कम से कम कुछ किसानों को एक तरह से प्राइस गारंटी मिल जाती है। हर साल केंद्र सरकार करीब 1.8 लाख करोड़ का गेहूं और चावल #MSP पर खरीदती है। इसमें से 65 हजार करोड़ सीधे तौर पर पंजाब के किसानो को मिलता है। अगर ये गारंटी न रहे तो बिहार के किसानों की तरह पंजाब के किसानो को भी गेहूं और चावल प्रति क्विंटल 1000-1200 पर बेचना पड़ सकता है। ऐसा नहीं है कि सरकार किसी अनाज का सारा का सारा उत्पादन #MSP की वजह से हर साल खरीद लेती है। जैसे दलहन और तिलहन का 10% से कम सरकार खरीदती है। जबकि कपास का 29% गेहूं का 36%, चावल का 43% सरकार ने पिछले साल खरीदा। और बाकी का फसल लेकर जब किसान बाजार में जाता है तो उसे क्या हासिल होता है?
मक्का का #MSP 1850 रुपया है, सरकारी खरीद न होने की वजह से किसानों को बाजार में मिलता है 700-900, इसी तरह दलहन और तिलहन के लिए हम ज्यादातर आयात पर निर्भर हैं।इनका आयात कम किया जा सके, इसलिए इनकी #MSP सरकार ऊंची रखती है, लेकिन क्योंकि वो किसानों से इन्हें खरीदती नहीं, लिहाजा मूंग की दाल का #MSP 6000 के करीब होते हुए भी, क्योंकि इन्हें सरकार खरीदती नहीं, लिहाजा किसानों को इन्हें 2700 के भाव पर बेचना पड़ता है।
सूरजमुखी का #MSP 7800 है जबकि किसान को बाजार में मिलता है करीब 3700 । इस तरह #MSP के होने के साथ-साथ सरकारी खरीद होने से किसान को भरपूर फायदा होता है। अगर #MSP न रहे और PDS की वजह से हर साल सरकारी खरीद जरूरी न हो तो बाजार किसान के प्रति कितना बेरहम हो सकता है, ये शायद आप सोच भी नहीं सकते।
पंजाब का किसान इसलिए #MSP के लिए आंदोलन में आगे है क्योंकि जिन राज्यों जैसे बिहार में APMC नहीं है, और सरकार ने फसल को बाजार के हवाले कर दिया है, वहां के किसानों से सस्ता अनाज खरीद कर, या भ्रष्ट PDS सिस्टम से उठा कर ठेकेदार पंजाब और हरियाणा की मंडियों में पहुंचकर वहां का स्थानीय बाजार खराब कर रहे हैं। पंजाब के आढ़तियों को पंजाब के किसानों से मिले अनाज पर महज 8.5% कमीशन ( जैसे गेहूं की #MSP 1925 पर कमीशन = 164 रु) मिलता है जबकि बिहार जैसे राज्यों से आया गेहूं उनके पास ट्रांसपोर्ट और डिलीवरी चार्ज समेत करीब 1100 का पड़ता है।
सबसे अहम सवाल तीसरा है कि केंद्र सरकार जब हर साल 23 अनाजों का #MSP जारी करती है तो उसे इस वास्ते कानून बनाने में क्या ‘व्यावहारिक परेशानी’ है?
कानून बनाने से होगा ये कि अब #MSP से कम पर अनाज की खरीद गैरकानूनी हो जाएगी। इससे निजी क्षेत्र की दिलचस्पी की वजह ही खत्म हो जाएगी। निजी क्षेत्र को गेहूं का व्यापार इसलिए पसंद है क्योंकि ये सालाना करीब 2 लाख करोड़ का व्यापार है, जिसमें अभी 36% सरकार खरीदती है जबकि बाकी का 64% गेहूं यानी 1.25 लाख करोड़ का गेहूं वो कम दर पर खरीद कर 40 से 50% का मुनाफा कमा सकता है। मंडी पर 8.5%टैक्स से जो छूट उसे मिलेगी उससे हर क्विंटल पर 164 रुपया का फायदा अतिरिक्त है। इसी तरह का व्यापार चावल का है और सबको मिला दें तो कुल 19.5 लाख करोड़ सालाना का कारोबार है। अगर आप ये समझ गए तो शायद आप बेहतर तौर पर समझ सकेंगे कि जब लोकसभा में विपक्ष वही सारे मुद्दे उठा रहा था जो आज किसान उठा रहे हैं तो क्यों सरकार उनकी नहीं सुन रही थी।
इसी तरह राज्यसभा में क्यों विपक्ष की मांग के बावजूद फार्म बिल को Voice vote से जल्दबाजी में पारित किया गया।
और इस दौरान कभी भी सरकार ने क्यों देश में किसानों के पांच सौ से ज्यादा संगठनों में से एक से भी जिनमें RSS का भारतीय किसान संघ भी है, किसी से राय-मशविरा करना जरूरी नहीं समझा.जब प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने #MSP की व्यवस्था शुरू की, तब हम अनाज आयात करते थे, लिहाजा आयात कम करने के लिए खेती को किसानों के लिए लाभकारी बनाना जरूरी था, लेकिन आज हम अनाजों के मामले में आत्मनिर्भर हैं। लिहाजा सरकार चाहती है कि वो अनाजों की सालाना खरीद उतनी ही रखे जितनी PDS के लिए जरूरी है। एक अहम मसला WTO के दबाव का भी है। 8 अप्रैल 2010 को कृषि क्षेत्र को खोलने के WTO के दबाव के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पांच मुख्यमंत्रियों की एक Working Group on Consumer Affairs का गठन किया था। इस कमेटी ने सुझाव दिया कि सरकार #MSP की गारंटी देने वाला कानून बनाए। इस कमेटी के मुखिया थे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी। जो बात उनके लिए मुख्यमंत्री रहते जरूरी थी, वो शायद अब इसलिए जरूरी नहीं रह गई है क्योंकि RCEP से बाहर होने के बाद हम WTO से बाहर होने का जोखिम मोल नहीं ले सकते।