नीतीश कुमार: अंतिम चुनाव या राजनीतिक दांव?
और जान लीजिए, आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है और परसों चुनाव है। और ये मेरा अंतिम चुनाव है…। अंत भला तो सब भला…। अब आप बताइए वोट दीजिएगा ना इनको..? हाथ उठाकर बताइये।
नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री बिहार
बिहार चुनाव में नीतीश (Nitish Kumar) के इस बयान ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल-सा खड़ा कर दिया है। एक तरफ विपक्षी पार्टियां इसे उनके संन्यास का ऐलान बता रही हैं तो दूसरी तरफ जेडीयू के नेता इसे जुबान फिसलना (slip of tongue) बता रहे हैं। वहीं राजनीतिक विश्लेषक, नीतीश के पुराने बयानों का हवाला देते हुए ये दावा कर रहे हैं कि नीतीश कभी अपनी पर बात कायम ही नहीं रहे, तो इस बात पर क्यों यकीन करें?
विपक्ष को मिला मौका
आरडजेडी और कांग्रेस समेत एलजेपी ने भी नीतीश (Nitish Kumar) के बयान को हाथों-हाथ लिया और उन्हें चुका, थका, हारा हुआ नेता साबित कर दिया। उदाहरण के लिए,
हम शुरू से कहते आ रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूर्णत: थक चुके हैं और आज आखिरकार उन्होंने अंतिम चरण से पहले हार मानकर राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर हमारी बात पर मुहर लगा दी।
तेजस्वी प्रसाद यादव, नेता प्रतिपक्ष, बिहार
बिहार की जनता ने उनकी विदाई का मन पूरी तरह से बना लिया है। 10 नवम्बर को जब चुनाव परिणाम आएगा तब इस पर मुहर भी लग जायेगी। यह चुनाव एक तरह से नीतीश कुमार की राजनीतिक पारी का अंत है।
दीपांकर भट्टाचार्या, माले महासचिव
नीतीश कुमार का एलान कि यह उनका आखिरी चुनाव है, से जदयू के नेताओं में हड़कंप मच गया है। जदयू के कई नेता बेरोजगार हो गये हैं। आगे भी वे बेरोजगार ही रहेंगे।
चिराग पासवान, लोजपा प्रमुख
नीतीश (Nitish Kumar) का बयान, जदयू की सफाई
सच क्या है?
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) जैसे धुरंधर राजनेता से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती, कि वो नशे की पिनक या चुनाव प्रचार की थकान में अंट-शंट कुछ भी बोल देंगे। नीतीश काफी पढ़े-लिखे, सुलझे हुए नेता हैं और उनमें ना समझ की कमी है और ना ही वाक-चातुर्य की। इसलिए माना जा रहा है कि भले ही उन्होंने इस बारे में बहुत सोचा ना हो, लेकिन ये बात उनके दिमाग में जरुर चल रही होगी कि बिहार विधानसभा का ये चुनाव उनका आखिरी चुनाव हो सकता है। अगर जीते तो ठीक, वरना हारे तो प्रदेश की राजनीति में दुबारा वापसी के लिए ना उम्र बची है ना धैर्य।
दूसरी ओर तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के खिलाफ एक तरह से मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ रहे हैं। उनकी हर चुनाव सभा में नीतीश के लिए ये संदेश जरुर होता है – ” चाचा, अब बुजुर्ग हो गये हो…थक गये हो…काम नहीं होता, तो क्यों कुर्सी पर बैठे हो? युवाओं के लिए जगह छोड़ो और आराम करो।” अपनी जनसभाओं में नीतीश ने भरसक इसका जवाब देने की कोशिश की है। हाल ही में उन्होंने बिना तेजस्वी का नाम लिए चुनौती दे डाली कि उनके साथ जरा चलकर तो दिखाएं, फिर पता चलेगा कि कौन कितना थक गया है। जो भी हो, तेजस्वी ने उनके मन में थकान और रिटायरमेंट का सवाल तो डाल ही दिया है।
जुबान फिसली या मन मचला?
बात सिर्फ तेजस्वी की नहीं….नीतीश की भी है। कहीं ना कहीं नीतीश (Nitish Kumar) को भी लगने लगा है कि अब रिटायरमेंट की उम्र हो गई है। वजहें कई हैं, लेकिन इनमें से सबसे बड़ी वजह है जनता। तमाम सर्वे और चर्चाओं में ये बात सामने आती रही है कि इस बार प्रदेश का एक बड़ा वर्ग नीतीश सरकार से नाराज है। नीतीश बिहार के अकेले ऐसे नेता हैं जिनकी सभाओं में जनता ने चप्पल दिखाये, रोषपूर्ण नारेबाजी की या किसी अन्य तरीके से विरोध जताया। नीतीश इतने अनाड़ी भी नहीं कि जनता की नब्ज ना समझ सकें। ऐसे में उनका जनता से आखिरी मौका मांगने का मन कर गया, तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
एक हक़ीकत ये भी है कि उनकी राजनीति अपने चरम पर है और यहां से आगे का रास्ता नीचे की ओर ही जाता है। 1974 के छात्र आंदोलन की उपज रहे नीतीश कुमार के सभी साथी अब राजनीति के मैदान से बाहर हो गये हैं। रामविलास पासवान रहे नहीं, लालू प्रसाद बीमार भी हैं और अंदर भी। शरद यादव सक्रिय राजनीति से दूर हैं। अपने ग्रुप में बस नीतीश बचे हैं। यूं भी बिहार की राजनीति में लगातार 15 साल तक शासन और राजनीतिक दांव-पेंच से भरा जीवन किसी के लिए भी थकाने वाला हो सकता है। ऐसे में अगर नीतीश कुमार को ये लगता है कि ये उनका आखिरी चुनाव है, तो इसमें कुछ भी झूठ या गलतबयानी नहीं है।
इस चुनाव में नीतीश (Nitish Kumar) अपनी सभाओं में जीत का दावा करते नहीं दिखते, याचना करते दिखते हैं। अगर जनता ने इस बार इज्जत बचा ली, तो अगली बार यकीनन आप मुख्यमंत्री की रेस में नीतीश कुमार को नहीं पाएंगे। और जहां तक राजनीति की बात है, तो कोई भी नेता इसे कभी नहीं छोड़ता….समय के साथ पार्टी, समर्थक, लोग ही साथ छोड़ देते हैं।