इनकाउंटर से शुरु…इनकाउंटर पर खत्म!!!
आखिरकार यूपी पुलिस ने वही किया…जिसके लिए वो जानी जाती है…यानी इनकाउंटर…। पुलिस की मानें तो विकास दुबे को कानपुर की सीमा में घुसते ही सनक सवार हो गई, और गाड़ी पलटने पर, घायल होने के बावजूद उसने भागने की कोशिश की। इस दौरान उसके हाथ भी बंधे थे (होने चाहिए), फिर भी उसने पुलिसवाले की पिस्टल छीन ली। गाड़ी में दूसरा पुलिसवाला भी था, लेकिन विकास दुबे को उसकी पिस्टल का कोई डर नहीं था। गाड़ी से निकलकर उसने पुलिसवालों पर फायरिंग की, भागने की कोशिश की, ये जानते हुए कि पीछे की गाड़ी में राइफल के साथ एसटीएफ की टीम है। इसे सच मानने चाहें, तो आपकी मर्जी..।
क्या ऐसे होता है इनकाउंटर?
जो अपराधी इनकाउंटर से बचने के लिए मारा-मारा फिर रहा हो, उज्जैन में निहत्थे गार्ड के सामने बिना विरोध सरेंडर कर रहा हो, वो हाथ में हथकड़ी होने और पुलिस जीप में दो-तीन सिपाहियों से घिरे होने के बावजूद भागने की कोशिश करेगा? खास तौर पर तब जब उसे पता हो कि पीछे एसटीएफ की पूरी टीम है, जिनकी पास असॉल्ट राइफल्स और एक-47 जैसे हथियार हैं? ये जानते हुए भी कि कि पूरी यूपी पुलिस उसकी जान के पीछे पड़ी है, वो यूपी की सीमा में…दिन के उजाले में, अकेले खेतों में भागने की कोशिश करेगा? पुलिस को जाननेवाला मामूली चोर-उचक्का भी ऐसी गलती नहीं करेगा, बशर्ते उसकी आत्महत्या की ख्वाहिश ना हो ।
कितनी पुरानी है स्क्रिप्ट?
दरअसल ये सारा खेल ही इनकाउंटर का है…शुरुआत से ही। वो कहते हैं ना…वर्तमान की कहानी….हमेशा इतिहास से शुरु होती है। इस पूरे तमाशे के पीछे पुलिस, अपराधी और राजनेता का आपसी संतुलन है। बिकरु गांव में ये संतुलन बिगड़ गया और भारी कांड हो गया। पूछताछ में विकास दुबे और उसके सहयोगियों ने स्वीकर किया था कि उन्हें बाकी पुलिस से कोई परेशानी नहीं थी, सिर्फ सीओ देवेन्द्र मिश्रा से थी, जो विकास दुबे के लिए लगातार मुसीबत खड़ी कर रहे थे। देवेन्द्र मिश्रा की चौबेपुर थाने के एसओ विनय तिवारी से भी नहीं बनती थी। आखिर इसकी वजह क्या थी?
दो गुटों में वर्चस्व की लड़ाई?
सूत्रों के मुताबिक, सीओ देवेंद्र मिश्रा और एसओ विनय तिवारी…दोनों अलग-अलग राजनीतिक खेमों से जुड़े हुए थे। चौबेपुर एसओ विनय तिवारी, विकास दुबे का करीबी था। वहीं, सीओ देवेंद्र मिश्रा को विकास के चचेरे भाई अनुराग दुबे का खास माना जाता था। अनुराग 2017-18 तक विकास के साथ ही काम करता था, लेकिन जमीन के विवाद के बाद दोनों अलग-अलग हो गए। दोनों ने एक-दूसरे पर हमला भी करवाया। सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल अनुराग दुबे राजनीतिज्ञों और पुलिसवालों की मदद से किसी तरह विकास को रास्ते से हटाना चाह रहा था।
अवैध वसूली का नेटवर्क?
इसकी वजह क्या थी? दरअसल विकास दुबे प्लॉटिंग, खनन, अवैध वसूली का नेटवर्क चला रहा था। उसे लंबे समय से राजनीतिक और पुलिस अफसरों की शह मिली हुई है। कानपुर जिले के चौबेपुर, बिठूर, बिल्हौर और शिवली में पिछले कुछ सालों से बड़े पैमाने पर खनन हो रहा है। कहा तो ये भी जाता है कि इस खनन को जिले के दो सत्ताधारी विधायकों का संरक्षण भी हासिल है, और फ्रंट पर इस अवैध धंधे का सारा कामकाज विकास दुबे संभालता था। अनुराग दुबे इस धंधे पर कब्जा जमाना चाहता था, और इसके लिए विकास दुबे को रास्ते से हटाना जरुरी था।
अपराधी और खाकी का कनेक्शन?
जनवरी 2019 में आईपीएस अनंत देव तिवारी ने कानपुर एसएसपी का कार्यभार संभाला था। इसी साल विनय तिवारी को चौबेपुर थाने का इंचार्ज बना दिया गया, जिनके एसएसपी अनंत देव से अच्छे संबंध थे। विकास ने पहले चौबेपुर थाने और फिर एसएसपी तक अपनी पहुंच बना ली, और उनके शह से उसका खुला खेल फर्रुखाबादी चलने लगा। इनके आपसी संबंधों की पुष्टि इससे भी होती है कि, ये एसएसपी, जो बतौर एसटीएफ डीआईजी कानपुर शूटआउट की जांच कर रहे थे, वह उनसे वापस ले ली गई। साथ ही उनका तबादला भी डीआईजी स्टाफ से डीआईजी पीएसी, मुरादाबाद कर दिया गया।
इसी साल, यानी 2019 में ही देवेंद्र मिश्र कानपुर में बतौर सीओ पहुंचे। सिपाही से सीओ तक पहुंचने वाले देवेंद्र मिश्र महकमे की तिकड़मों से वाकिफ थे और जल्द ही समझ गए कि चौबेपुर के एसओ विनय को ऊपर से शह मिली हुई है। उनकी जो चिट्ठी और ऑडियो वायरल हो रही है, उससे साफ है कि देवेंद्र ने विनय की तत्कालीन एसएसपी से कई मामलों में शिकायत भी की थी। लेकिन, कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
मिल गया ट्रिगर?
इसी बीच, राहुल तिवारी और विकास दुबे के बीच झगड़ा हुआ। पंचायत में इस मामले में समझौता भी हो गया, लेकिन अनुराग दुबे ने राहुल को भड़काया और विकास के खिलाफ शिकायत करने को उकसाया। अनुराग के करीबी सीओ देवेंद्र मिश्रा ने भी इस मामले को हवा दी, और आखिरकार राहुल ने एसएसपी ऑफिस में शिकायत की। लेकिन लाॅकडाउन के चलते कुछ हुआ नहीं और इसी बीच एसएसपी अनंतदेव का ट्रांसफर हो गया। राहुल को एक बार फिर नए एसएसपी दिनेश कुमार प्रभु के पास भेजा गया। इस बार एसएसपी ने शिकायत दर्ज करने के निर्देश दे दिए।
मिल गया मौका!
शिकायत दर्ज होने के बाद सीओ देवेंद्र ने चौबेपुर एसओ विनय तिवारी पर दबाव बनाना शुरू किया कि वह विकास के खिलाफ एक्शन लें। उधर, विनय तिवारी लगातार ये कोशिश करते रहे कि राहुल शिकायत वापस ले ले। विनय तिवारी को टालमटोल करता देख, सीओ देवेंद्र ने विकास के आपराधिक इतिहास और एसओ विनय से उसके संबंधों का पूरा काला चिट्ठा नए एसएसपी के सामने रख दिया। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और एसएसपी ने सीओ देवेंद्र को विकास के घर पर दबिश का निर्देश दिया। इसी की तामील करने के लिए देवेन्द्र मिश्रा 2 जुलाई की रात को पांच थानों की पुलिस के साथ बिकरू गांव में दबिश के लिए पहुंचे थे।
सारा खेल इनकाउंटर का !!
लेकिन सवाल ये है कि पुलिस की दबिश की सूचना पाकर भी विकास दुबे फरार क्यों नहीं हुआ? उसने पुलिस के साथ लड़ने-मरने की योजना क्यों बना ली? इसका जवाब भी इसी कहानी में छुपा था। सूत्रों के मुताबिक, रात के वक्त पांच थानों की पुलिस के साथ दबिश का असली मकसद विकास दुबे को पकड़ना नहीं, बल्कि उसका इनकाउंटर करना था। विकास ने दबिश की सूचना के बाद, जिनसे भी बात की, उन्होंने उससे यही कहा कि भागना मत, क्योंकि पुलिस का इरादा तुम्हें चारों तरफ से घेर कर इनकाउंटर करना है। विकास को देवेन्द्र मिश्रा पर बिल्कुल भरोसा नहीं था और उसे लगा कि अगर पकड़े गये या सरेंडर भी किया, तो ये सीओ बिना इनकाउंटर के मानेगा नहीं। ऐसे में उसने अपने और लोगों को बुला लिया और सीओ को ही सबक सिखाने की ठान ली। इसके बाद की कहानी तो सभी जानते हैं।
परिणाम क्या हुआ?
विकास दुबे के साम्राज्य को खत्म करने की कोशिश करनेवाले पुलिस अधिकारी देवेन्द्र मिश्रा शहीद हो गये… उसे बचाने की कोशिश करनेवाले एसओ विनय तिवारी जेल पहुंच गये…और पुलिस से पंगा लेनेवाले विकास दुबे और उसके साथी घटना के हफ्ते भर के भीतर ही जहन्नुम में। वहीं, विकास दुबे की अवैध कमाई में हिस्सा लेनेवाले और उसे संरक्षण देनेवाले नेताओं-अधिकारियों का ना तो कोई बाल भी बांका हुआ है, और ना ही उनका नाम सामने आया है। साल भर रुकिये….इस इलाके में फिर एक विकास दुबे (किसी और नाम से) खड़ा होनेवाला है..। क्योंकि केवल फसल कटी है, इसे उगानेवाले अब भी वहीं हैं, और जमीन तो तैयार है ही।