#संसद :- शीतगृह में शीत सत्र
कानून के बारे में सबसे अच्छी जानकारी जजों को होती है, लेकिन लोकतंत्र में कानून बनाने का हक़ सिर्फ जनता (#संसद) का होता है, उसके निर्वाचित नुमाइंदों यानी विधायिका का होता है। अभी जबकि सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक खुले हैं, संसद का शीतसत्र आहूत न कर कई जरूरी मुद्दों पर जनता की सहभागिता का मौका सरकार ने गंवा दिया है। इससे कोरोना वैक्सीन को लेकर कई सवाल अनुत्तरित रह गए हैं।
जैसे-
- FICCI-EY knowledge paper के मुताबिक कोरोना की वैक्सीन देने के लिए देश में 1.3 से 1.4 लाख वैक्सीनेशन सेंटर, टीका देने वाले 1 लाख हेल्थ केयर प्रोफेशनल और 2लाख सपोर्ट स्टाफ की जरूरत है। ऐसे में क्या हमें प्राइवेट हेल्थकेयर इंडस्ट्री का सहयोग लेना चाहिए या पोलियो ड्राप्स के लिए पहले से चल रही परंपरागत टीम ही काफी होगी?
- ऐसी खबर सामने आ रही है कि महंगी होने की वजह से तैयार फाइजर वैक्सीन की खरीद शायद हम न करें। भारत बायोटेक, जायडस कैडिला और सीरम इंस्टीट्यूट की स्वदेशी वैक्सीन सस्ती तो होगी, लेकिन उसके आने में अभी थोड़ा वक्त बाकी है और उन्हें फाइजर और माडर्ना के मुकाबले शायद थोड़ा कमतर भी आंका जा रहा है। एक करोड़ के करीब संक्रमण और 1.5 लाख मौत के आंकड़े के करीब होने के बाद जब मौका लाखों जिंदगियां बचाने का हो, तब क्या कीमत और efficacy पर समझौता करना ठीक रहेगा?
- कई देश पूरी आबादी को कोरोना वैक्सीन देने की योजना पर काम कर रहे हैं। लेकिन स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण का कहना है कि – सरकार ने कभी नहीं कहा कि हर किसी को वैक्सीन दी जाएगी। ICMR के Director General बलराम भार्गव का कहना है कि आबादी के एक निश्चित हिस्से को वैक्सीन दे कर हम वायरस की चेन तोड़ सकते हैं, तब हमें सबको वैक्सीन देने की जरूरत नहीं होगी। सवाल है ये तय कैसे होगा कि हमारे लिए वो critical mass of people आबादी का कितना प्रतिशत है और ये कैसे पता चलेगा कि इस तारीख को कोरोना वायरस की चेन टूट चुकी है?
- बच्चों को वैक्सीन दिया जाएगा या नहीं, दिया जाएगा तो कब? माडर्ना और फाइजर ने बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू कर दिया है। ब्रिटेन में हाई रिस्क बच्चों को टीका देने की इजाजत सरकार ने दे दी है। स्वदेशी वैक्सीनों में से किसी का न तो अब तक ट्रायल बच्चों पर हुआ है न जल्द शुरू किए जाने की संभावना है, ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? बूढों को वैक्सीन देना और बच्चों को नहीं देने के फैसले का असर बहुत बड़ा हो सकता है।
- 1995 में जब पोलियो का टीकाकरण शुरू हुआ तब दुनिया ने इसे असंभव लक्ष्य करार दिया था। भारत ने इसे कर दिखाया। लेकिन इसे करने में हमें 16 साल लगे। कोरोना के लिए हमें पहले से ज्यादा वैक्सीन, पहले से बहुत कम वक्त में लोगों को देना है। पोलियो की ओरल ड्रॉप आंगनबाड़ी की महिलाएं भी दे सकती हैं, देती रही हैं, लेकिन इंजेक्शन वाली कोरोना वैक्सीन हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स ही दे सकते हैं। ये चुनौती ज्यादा बड़ी है और इसकी तैयारी में वैक्सीन के रखरखाव की अतिरिक्त चिंता भी शामिल है।
- चार दिसंबर तक खबर थी कि हम वैक्सीन की 1.6 बिलियन डोज खरीद रहे हैं, सात दिन बाद ये घट कर 1.5 बिलियन डोज रह गई। सत्तर करोड़ लोगों यानी देश की आधी आबादी से कुछ ज्यादा लोगों के लिए वैक्सीन की खरीद के फैसले पर सरकार कैसे पहुंची? दस करोड़ कम वैक्सीन की खरीद का फैसला किस वजह से किया गया? ये जनता को जानने का हक है।
- 50 साल की उम्र से पहले से बीमारियों वाले लोगों को वैक्सीन में वरीयता देने से हुआ ये है कि कम आबादी वाले राज्य तमिलनाडु को ज्यादा आबादी वाले राज्य बिहार, मध्य प्रदेश या राजस्थान से ज्यादा वैक्सीन मिलेगी। ऐसे में वैक्सीन को लेकर नई सियासत शुरू होने का अंदेशा है।
- मुंबई में 1.25 लाख हेल्थ वर्कर्स को वैक्सीन दिया जाना है। लेकिन कई डाक्टर और नर्स कह रहे हैं कि वो वैक्सीन अभी नहीं लेना चाहते। वो दो से तीन महीने रूक कर इसका असर देखने के बाद वैक्सीन लेना चाहते हैं। ऐसे में क्या करे सरकार ? क्या हेल्थ केयर वर्कर्स को जिसमें पढ़े लिखे डाक्टर भी शामिल हैं, जबरन वैक्सीन दी जा सकती है?
कई देशों ने कोरोना आपदा और आर्थिक संकट के लिए संसद के सत्र बुला कर जरूरी बहस के बाद आम राय बनाकर जरूरी फैसले किए, जिससे जनता में सरकार के प्रति भरोसा और बढ़ा। जर्मनी में एंजेला मर्केल, न्यूजीलैंड में जसिंदा आरडेन, ताइवान में साई इंग वेन और फिनलैंड में सना मारिन की लोकप्रियता इससे बढ़ी है।