जब एक शहर मरता है तो वो बंगलुरू हो जाता है!
1984 में फिल्म आई थी मशाल... …समाज के अंधेरे के खिलाफ अखबार की ‘मशाल’ लिए पत्रकार विनोद…फिर एक दिन उसकी पत्नी सुधा की तबीयत खराब होती है…
…तब उसे पता चलता है कि वो जिस शहर को बदलने चला था, दरअसल वो शहर अब इतना बदल गया था कि उसमें किसी बदलाव की गुंजाइश ही नहीं बची थी… वर्धान के खिलाफ लड़ता-लड़ता विनोद एक दिन खुद वर्धान बन जाता है। पत्रकार आखिर में कातिल बन जाता है, वो वर्धान का खून कर देता है और खुद भी मारा जाता है।
एक शहर जब मरता है तो पहले उसकी रूह दफन होती है..फिर सड़े जिस्म से मवाद आने लगता है …फिर भी मुर्दा शहर … एक बार लाशें गिनता है और फिर ऊंची इमारतों और चौड़ी सड़कों को …उसे इत्मीनान होता है …अब तक उसे खाने में … सीमेंट और कोलतार मिल रहा है, इनसान का क्या है, एक मरता है… दो पैदा होते हैं
एक शहर के मरने की तीन कहानियां टेक सिटी बंगलुरू से
1. ऐ भाई……….ऐ भाई साहब गाड़ी रोको…………….. ..अस्पताल पहुंचा दो भाई….कोई है?
कर्नाटक की राजधानी बंगलुरू में 55 साल का एक कोरोना मरीज अपने घर में आखिरी सांसें ले रहा था, घरवालों की गुहार के बाद भी दो घंटे तक एंबुलेंस नहीं आया, पड़ोसियों में से किसी ने मदद नहीं की, दो घंटे बाद एक ऑटो वाला बड़ी रकम ले कर अस्पताल ले जाने को तैयार हुआ, मरीज ऑटो में बैठ पाता…इसके पहले ही उसने सड़क पर दम तोड़ दिया…ऑटो वाला सड़क पर शव को छोड़ अगले ग्राहक की तलाश में चला गया …..
कोरोना मामले के इंचार्ज मंत्री R Ashok का कहना है कि जिम्मेदार अस्पताल कर्मियों पर सख्त कार्रवाई होगी। बंगलुरू में अनलॉक 2 में ज्यादा रियायतें देने का असर ये हुआ है कि पहले जहां कोरोना के सौ-दो सौ मामले आया करते थे, अब यहां हजार के करीब मामले रोज आ रहे हैं। रोजान संक्रमण की दर यहां मुंबई और दिल्ली से सात गुनी ज्यादा (15%) चुकी है। अस्पतालों पर बहुत ज्यादा दबाव है। सवाल है क्या एक मरीज तभी अस्पताल जाएगा, जब अस्पताल से एंबुलेंस आएगा.. रिश्तेदार, दोस्त या मोहल्लेवालों की क्या कोई जिम्मेदारी नहीं ?
2. 36 घंटों तक लगाया अस्पतालों के चक्कर, आखिर में एक अस्पताल के गेट पर तोड़ा दम
52 साल के एक कोरोना मरीज को गंभीर हालत में लेकर उसके घर वाले 36 घंटे तक एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर लगाते रहे, 18 अस्पताल में उन्हें बेड नहीं मिला, 32 अस्पताल ने उन्हें फोन पर ही इनकार कर दिया। आखिरकार 120 किलोमीट का चक्कर लगाने के बाद… एक अस्पताल के गेट पर ही मरीज ने दम तोड़ दिया।
खबर से समूचे शहर में हंगामा मचने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने अस्पतालों को नोटिस जारी किया है।
पहली खबर में मरीज को एंबुलेंस नहीं मिल पाई थी। इस मामले में एंबुलेस तो मिला, लेकिन इलाजनहीं मिला। यहां खास बात ये है कि उन्हें हर बार अस्पताल के गेट पर ही रोक लिया गया। आगे हम पर मरीज की मौत की जिम्मेदारी आएगी, इस आशंका से किसी अस्पताल ने मौत से लड़ रहे, आखिरी सांस ले रहे मरीज को अपने यहां दाखिल ही नहीं किया।
हमारे यहां अस्पतालों के लिए बीमार मरीज… तिजोरी की चाबी है, लेकिन आखिरी सांस ले रहा मरीज, ताला है जिसकी चाबी लोकल थाने में होती है।
3. मेरे पति को कोरोना है !
बंगलुरू में जांच के बाद कोरोना की पुष्टि होने पर एक मरीज को अस्पताल ले जाया गया। इसके बाद उसकी पत्नी और पांचवीं और तीसरी क्लास में पढ़ने वाली बेटियों पर क्या गुजरी ये सुनिए उस पत्नी की जुबानी।
रविवार की रात मेरे पति को जब घर से एंबुलेंस में ले जाया जा रहा था, तब मेरे कई पड़ोसी मोबाइल से उनका वीडियो बना रहे थे। कोरोना मरीज को देखने अस्पताल जाने की इजाजत नहीं है। आप हर वक्त मोबाइल पर एक बुरी खबर सुनने का इंतजार करते हैं। मुझे लगातार मकान मालिक और पड़ोसियों के फोन आ रहे थे। वो चाहते थे कि मैं सरकारी क्वारंटीन सेंटर चली जाऊं। मेरी दो छोटी-छोटी बेटियां हैं, मैं उन्हें किसके पास छोड़ती? कोरोना जांच के लिए सरकार ने 45सौ की रकम तय की थी, पति की जांच करवाई तो प्राइवेट डायगनोस्टिक ने 7500 लिए। अब मैं अपना और दोनों बेटियों की टेस्ट करवाऊं तो मुझे 22500 चाहिए, जो मेरे पास नहीं हैं। मकान मालिक ने पुलिस कंप्लेन की धमकी दी। हार कर मैंने म्युनिसिपिल कॉरपोरेशन से अपील की। दो दिन बाद मुझे सरकारी क्वारंटीन मिला। यहां इतनी गंदगी है कि रहना मुश्किल है। मैं बस यही दुआ करती हूं कि मुझे कोरोना न हो… अगर मैं न रही तो मेरी बेटियों का क्या होगा ?
कोरोना मरीज की पत्नी
बंगलुरू में ये हालत तब है जबकि अभी कोरोना केसेज की कुल तादाद सात हजार के करीब है। जिस रफ्तार से मामले बढ़ रहे हैं, अगर ये तादाद पांच से दस गुनी ज्यादा बढ़ गई तब इस शहर का क्या होगा ?