मुझसे क्या भूल हुई?
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ये सिर्फ राजनीति के शतरंज में ही होता है, कि शह देते ही खुद मात हो जाए। जीता कौन है ये पता होना अभी बाकी है, लेकिन ये तय है कि गहलौत हार गए हैं…राजस्थान की सियासत में वो आज भी वजीर हैं, लेकिन इस वजीर को आगे की हर चाल अब तीन प्यादे बताएंगे। 69 साल के गहलौत के हाथ में घड़ी है, लेकिन वक्त आज सचिन पायलट के साथ है। राजनीति में बहुत सालों के अनुभव के बाद भी इनसान कुछ गलतियां कर जाता है जिसके लिए उसे शर्मसार होना पड़ता है। राजनीति वो रिश्ता है जिसमें कोई फरिश्ता नहीं होता…फिर भी सियासत में 43 साल के अनुभव के बावजूद गहलौत ने तीन बड़ी गल्तियां की। विधायक दल की बैठक में नहीं पहुंचने का हवाला देकर उन्होंने सचिन पायलट को राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से हटा दिया। तब उन्होंने ये नहीं सोचा कि सचिन को ये पद उनकी नहीं, पार्टी आलाकमान की मेहरबानी से मिला था. उनकी दूसरी गल्ती ये थी कि उन्होंने सचिन को सार्वजनिक तौर पर बुरा-भला कहा। हक से शक करने वाली राजनीति में भी इसकी गुंजाइश रखनी होती है कि जिससे आज आप अदावत कर रहे हैं, अगर उससे किसी दावत में मुलाकात हो तो नजरें झुकानी न पड़े। उनकी तीसरी गलती ये थी कि उन्होंने एक वक्त पर एक साथ दो मोर्चे खोल दिए। एक सचिन पायलट के खिलाफ तो दूसरा बीजेपी के खिलाफ। गजेंद्र सिंह शेखावत के कथित ऑडियो टेप को लेकर बीजेपी पर विधायक खरीदने का सीधा इल्जाम लगाकर उन्होंने एक तरह से अपने रिश्तेदारों के घर ईडी के छापे का न्योता ही दे डाला। कच्चे मकान वाले बारिश से दुश्मनी नहीं करते।
दिल्ली में खुद पार्टी महासचिव और राजस्थान में अपनी पसंद का डिप्टी सीएम ….सचिन की खिचड़ी वाली वापसी में स्वाद थोड़ा कम है, लेकिन भूख मिटाने के लिए फिलहाल ये काफी है।सचिन की वापसी का मतलब अभी ये नहीं है कि वो अगले कुछ महीने में राजस्थान के मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन इतना तय है कि अगली बार चुनाव में नतीजा कांग्रेस के पक्ष में रहा तो गहलौत अब मुख्यमंत्री नहीं होंगे और मुख्यमंत्री के संभावित कैंडिडेट्स में सबसे ऊपर नाम शायद सचिन पायलट का ही होगा। सचिन समर्थकों को गहलौत कैबिनेट में और खुद सचिन को चाहे जो पद मिले, इतना तय है कि पार्टी के अंदर उनका कद पहले से बढ़ा है, और गहलौत का कम हुआ है। गहलौत इतना तो जानते ही हैं कि जिन विधायकों के समर्थन पर उनकी राजनीति टिकी है, वो उनके साथ तभी तक हैं जब तक उन्हें हाईकमान का भरोसा हासिल है।
नाम राहुल-प्रियंका का और काम अहमद पटेल का। पर्दे के पीछे वाली खामोश सियासत से ये हुआ कि राहुल गांधी, सचिन पायलट और अशोक गहलौत तीनों ने पहली बार अपने-अपने इगो को परे रखा और पार्टी को आगे। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार शायद कभी खतरे में नहीं थी, लेकिन इस झटके से निकलने के बाद पार्टी पहले से ज्यादा मजबूत नजर आ रही है।
वसुंधरा की सलाह मान बीजेपी फिलहाल सरकार गिराने के बजाय गहलौत से अपने विधायकों को बचाने में जुट गई है। रिया चक्रवर्ती के बहाने उद्धव सरकार को निशाने पर लेने के अलावा पार्टी की नजर झारखंड में भी है, जहां कांग्रेस के कई विधायक हेमंत सरकार में अपने कद को लेकर आलाकमान के पास फरियाद पहुंचा चुके हैं।
Nice presentation