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रात के 12 बज गए क्या ?

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रात के 12 बज गए क्या ?

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1987 या 88 का साल था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने देर रात एक अहम बैठक बुलाई। अगले दिन दूरदर्शन पर ये खबर चली तो कैमरा जूम करके पीएम के पीछे गया जहां दीवार घड़ी दो बजे का वक्त बता रही थी। प्रधानमंत्री का देर रात तक काम करना सबूत था कि वो देश के लिए किस कदर समर्पित थे। ये महज इत्तेफाक ही होगा कि, तब बोफोर्स का मुद्दा सुलगने लगा था।

देश के लिए किसी नेता का समर्पण उसके काम से जाना जाए या घड़ी से? …

रेल मंत्री को प्रवासी मजदूरों की इतनी चिंता है कि वो रात के 12 बजे तक जाग कर इंतजार कर रहे हैं कि कब महाराष्ट्र सरकार जरूरी कागजी कार्रवाई पूरी करें ताकि वो फौरन इन मजदूरों को उनके राज्य भेज सकें।

अगला ट्वीट रेल मंत्री ने रात के 2:11 बजे किया । उनकी तैयारी 125 ट्रेन चलाने की थी, लेकिन महाराष्ट्र सरकार सिर्फ 46 ट्रेनों की लिस्ट ही दे पाई।

केंद्रीय मंत्री और किसी राज्य के मुख्यमंत्री के बीच संवाद हो तो ये मोबाइल से भी हो सकता है, लेकिन विवाद हो तो ट्वीटर कहीं ज्यादा कारगर है। गोयल ने शाम के सात बजे से रात के दो बजे तक करीब दर्जन भर ट्वीट किए। लेकिन इसमें सबसे अहम ट्वीट शायद ये है

रेलमंत्री ने खुद से तय कर लिया कि वो 125 ट्रेनें महाराष्ट्र को देंगे, ये तय करने के बाद उन्होंने ये भी तय कर लिया कि महाराष्ट्र सरकार को कितने वक्त में इन 125 ट्रेनों की सारी जानकारी देनी है। इसमें मुसाफिरों का मेडिकल सर्टिफिकेट( ये कब हुआ?) भी शामिल है। अब इससे पहले कि आप इन ट्वीट्स को पढ़कर अपनी राय बना लें, ये ज्यादा अच्छा होगा कि पहले आप समझ लें कि हमारे यहां ट्रेनों के चलने की प्रक्रिया है क्या ?

16 अप्रैल 1853 यानी देश में बॉम्बे से ठाणे के बीच चली पहली ट्रेन से लेकर 30 अप्रैल 2020 तक ट्रेनें केंद्र सरकार के अधीन थीं। होली, दीवाली या छठ जैसे मौकों पर स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला रेलवे खुद करता था, इसके लिए न तो अलग से किसी अधिकारी की बहाली होती थी, न राज्यों से किसी तरह की सलाह ली जाती थी। लेकिन 31 मार्च को सु्प्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर केंद सरकार के ये बताने के बाद कि देश में सड़कों पर एक भी प्रवासी मजदूर नहीं है… 1 मई को स्थिति बदल गई। गृह मंत्रालय से जारी आदेश के मुताबिक ये तय हुआ कि प्रवासी मजदूर समेत देश भर में लॉकडाउन की वजह से फंस गए लोगों को अपने राज्य पहुंचाने के लिए रेलवे मंत्रालय एक नोडल अफसर बनाएगा जो इस मूवमेंट को लेकर राज्यों से कोआर्डिनेट करेगा।

MoR would designate nodal officer(s) for coordinating with State/ UTs for their movement. It

would also issue detailed guidelines for sale of tickets; for social distancing and other safety

measures to be observed at train stations, train platforms and within the trains.

आदेश साफ है स्पष्ट है …रेलवे के मूवमेंट को लेकर सारी जिम्मेदारी रेलवे की ही है

लेकिन सिर्फ एक दिन बाद यानी 2मई को नया गाइडलाइन आया।

इस गाइडलाइन में 19 बिन्दु हैं, लेकिन सिर्फ 11(2), 15 और 16 रेलवे के लिए है, बाकी सारा काम राज्य सरकारों के जिम्मे डाल दिया गया

श्रमिक स्पेशल में  अब रेलवे की जिम्मेदारी क्या रह गई ?

रेलवे टिकट छापेगा -11(2),

12 घंटे से ज्यादा दूरी की रेल यात्रा हुई तो रेलवे एक वक्त का खाना मुहैया कराएगा-15

जहां से ट्रेन चलेगी वहां का रेलवे दफ्तर जहां ट्रेन जाएगी वहां के रेलवे दफ्तर को इसकी सूचना देगा जो उस राज्य के नोडल अफसर को इसकी सूचना देगा

1मई और 2मई के गृह मंत्रालय के दोनों सर्कुलर को गौर से देखने से साफ हो जाता है कि अब ट्रेन चलाने की करीब-करीब सारी जिम्मेदारी राज्यों की हो गई, रेलवे की भूमिका सिर्फ फैसिलिटेटेर की रह गई। 8 मई को औरंगाबाद के पास ट्रेन हादसा हुआ जहां रेलट्रेक पर सोए हुए 16 प्रवासी मजदूर ट्रेन से कुचल कर मारे गए। सकते में आई सरकार ने एक नया नोटिफिकेशन जारी किया।

इस आदेश में कहा गया कि अब से ये राज्यों की जिम्मेदारी होगी कि वे देखें कि कोई प्रवासी मजदूर सड़क पर या रेल ट्रैक पर नहीं जा रहा है। इसके अलावा सभी राज्य सरकारों से कहा गया कि वो श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने में रेलवे का सहयोग करें।

 all State/ UT Governments should cooperate with the railways in running of more number of ‘Shramik’ special trains without any hindrance to facilitate faster movement of stranded migrant workers.

इसी दिन गृह मंत्रालय का एक और आदेश आया। इस आदेश से रेल से लोगों की आवाजाही को लेकर SOP यानी Standard Operating Protocol जारी किया गया।

Movement of trains shall be permitted by Ministry of Railways (MoR), in a graded manner, in consultation with Ministry of Health & Family Welfare (MoHFW) and MHA.

गौर कीजिए  इसमें क्या लिखा है? क्या कहीं राज्य सरकार की बात है ? साफ है कि राज्य सरकार के पास प्रवासी मजदूरों को लेकर तमाम जिम्मेदारियां हैं और केंद्र सरकार के पास तमाम अधिकार

इसके पांच दिन बाद एक और बेहद अहम आदेश आया।  16 मई को गृह सचिव के सर्कुलर में बताया गया कि NDMA यानी National Disaster Management Authority ने एक ऑनलाइन डैशबोर्ड बनाया है- National Migrant Information System (NMIS)

ये क्या काम कर रहा है ये जान लीजिए

The online portal would maintain a central repository on migrant workers and help in speedy

inter-State communication/co-ordinationto facilitate their smooth movement to native places.

इसका मतलब है कि प्रवासी मजदूरों के बारे में जो डाटा किसी भी एक राज्य सरकार के पास है, वो डाटा तो केंद्र सरकार के पास है ही, केंद्र सरकार के पास सभी राज्यों में प्रवासी मजदूरों का पूरा डाटा है। इसके बाद सिवा ट्रेन में जा रहे पैसेंजर्स के टिकट के पैसे चुकाने के, राज्य सरकारों की ट्रेन चलाने को लेकर क्या भूमिका रह जाती है ये सोचिए। साफ है कि ट्रेनों को चलाने से लेकर प्रवासी मजदूरों के बारे में तमाम जानकारी और अधिकार केंद्र सरकार के पास हैं।

19 मई को गृह मंत्रालय का नया SOP आया

इस आदेश के साथ ही ट्रेन को चलाने का पूर्ण अधिकार गृह मंत्रालय की सलाह लेकर रेल मंत्रालय के पास आ गया। नए सर्कुलर में राज्यों की भूमिका क्या है ये देखिए

All States/ UTs should designate nodal authorities and make necessary arrangements for receiving and sending such stranded persons.

Based on the requirements of States/UTs, the train schedule, including stoppages and destination would be finalized by MoR. The same would be communicated by MoR to the States/UTs for making suitable arrangements for sending and receiving such stranded workers.

• Publicity of train schedule, protocols for entry and movement of passengers, services to be provided in coaches, and arrangements with States/UTs for booking of tickets would be done by MoR.

 राज्य सरकार  के पास अब दो ही काम हैं । डिपार्चर स्टेट का काम है देखना वो भी रेल मंत्री के साथ देखना कि सभी मुसाफिरों की स्क्रीनिंग हो। और अराइवल स्टेट का काम है हेल्थ प्रोटोकॉल बनाना

बस इतना ही।

अब 19 मई की रात यानी सर्कुलर जारी होने के बाद रेल मंत्री के इस ट्वीट पर गौर कीजिए

रेल मंत्री का कहना है कि राज्य सरकार को चाहिए कि जो मजदूर जहां है, वहां करीब के स्टेशन को इन मजदूरों की लिस्ट तैयार कर दे दे बस इतना ही। लेकिन छह दिन बाद यानी ट्वीटर वार के दौरान उनकी मांग है कि राज्य सरकार एक घंटे में सारे मजदूरों की डिटेल्स, हेल्थ रिपोर्ट समेत रेलवे के जीएम को सौंपे।

ये है रात के 12 बजे और 2 बजे ट्वीट के पीछे की कहानी

अब उद्धव ठाकरे के स्टैंड को समझिए।

महाराष्ट्र सरकार का इल्जाम है कि जो लोकल ट्रेन मुंबई की लाइफलाइन है, उसे रेलवे चला नहीं रहा, मजबूरी में राज्य सरकार को जरूरी सेवा में लगे लोगों को बस से पहुंचाना पड़ रहा है। प्रवासी मजदूरों को लेकर उनकी सरकार 22 अप्रैल से रेलवे से ज्यादा ट्रेन चलाने की मांग कर रही है, लेकिन रेलवे उनकी मांग पर गौर नहीं कर रहा..हम 80 ट्रेन मांगते हैं, वो 40ट्रेन देते हैं।

.उद्धव पीसी- सौजन्य- इंडिया टुडे –https://www.youtube.com/watch?v=tucN9b3n6-0

जब 24 मार्च की रात देश में लॉकडाउन शुरू हुआ था तब कुल कोरोना मामले में 20% महाराष्ट्र से थे, अब ये बढ़कर 33% हो चुका है। चिंता की बात ये है कि हर दिन एक नया पीक लेकर आ रहा है। उद्धव भारी दबाव में हैं। उनके निशाने पर जरूर रेल मंत्री हैं, लेकिन इल्जामों की इस सियासत के जरिए, सफाई वो अपनी जनता के सामने पेश कर रहे हैं।

कोरोना ने हमारे समाज और हमारी राजनीति का अच्छा और बुरा दोनों चेहरा आपके सामने रख दिया है।

 बेवक्त का ट्वीट…. इशारा है कि…. पास में घड़ी रखने का ये कतई मतलब नहीं कि वक्त आपके साथ है।  

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