पार्टी बदलो, सत्ता पाओ!!
बिहार में होनेवाले विधानसभा चुनाव के पहले नेताओं की भागमभाग शुरु हो गई है। जिस नेता को लगता है…उसे इस बार टिकट नहीं मिलेगा…या पार्टी में अहमियत कम हो गई है…या पाला बदलने से ज्यादा सत्ता-सुख मिलेगा…..वो फौरन पार्टी बदल लेता है। फिलहाल बिहार में दो ही पार्टियां हैं, जिन्हें सत्ता हासिल करने लायक समझा जा रहा है – एक राजद (RJD) और दूसरा जद(यू)। इसलिए इन्हीं दो पार्टियों में इस्तीफा देने और सदस्यता लेने का खेल चल रहा है।
आरजेडी से जेडीयू
गुरुवार को राजद के निष्कासित तीन विधायकों ने जदयू का दामन थाम लिया। इनमें लालू प्रसाद के समधी चंद्रिका राय, फराज फातमी और जयवर्धन यादव शामिल हैं। जदयू कार्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में बीजेन्द्र यादव और मंत्री श्रवण कुमार ने तीनों विधायकों को पार्टी की सदस्यता दिलाई।
जयवर्धन यादव उर्फ बच्चा यादव पालीगंज से विधायक हैं और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामलखन सिंह यादव के पोते हैं। चंद्रिका राय लालू प्रसाद के समधी हैं, और उनकी बेटी ऐश्वर्या राय के साथ लालू के बेटे तेज प्रताप यादव की शादी हुई है। लेकिन तेज प्रताप यादव ने तलाक का मुकदमा दायर कर रखा है, जिसकी वजह से दोनों परिवारों में दूरियां बढ़ गई हैं।
केवटी विधायक फराज फातमी भी पूर्व केन्द्रीय मंत्री और राजद नेता एम.ए. फातमी के बेटे हैं। उन्होंने भी पिछले साल जदयू का दाम थाम लिया था, जब राजद ने उन्हें दरभंगा संसदीय सीट से टिकट नहीं दिया। मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने चार बार दरभंगा संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया है। फराज फातमी ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर राजद पर रुपये लेकर टिकट बेचने का भी आरोप लगाया।
इससे पहले राजद से तीन और विधायकों महेश्वर प्रसाद यादव, प्रेमा चौधरी और अशोक कुमार ने जदयू का दामन थाम लिया था। इन्हें भी पार्टी से निकाल दिया गया था। महेश्वर प्रसाद यादव तो पहले से ही पार्टी से असंतुष्ट चल रहे थे और कई बार उन्होंने पार्टी लाइन के खिलाफ काम किया था।
जदयू से राजद
वहीं, जदयू के निष्कासित मंत्री व विधायक श्याम रजक ने राजद का दामन थाम लिया। रजक नीतीश सरकार में उद्योग मंत्री थे और पूर्व राजद सरकार में भी मंत्री रहे थे। पटना जिले के फुलवारीशरीफ से विधायक श्याम रजक को आशंका थी कि इस साल विधानसभा चुनाव में उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया जा सकता है। श्याम रजक पहले भी राजद में रहे हैं और 11 सालों बाद वापस अपनी पुरानी पार्टी में शामिल हो गये हैं। ये लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री काल में मंत्री भी रहे। साल 2009 में उन्होंने राजद छोड़ी और जदयू में शामिल हो गये।
गठबंधन में दरार
उधर, बिहार के पूर्व सीएम एवं हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा (हम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन से अपना नाता तोड़ लिया है। मांझी काफी समय से एक समन्वय समिति के गठन की मांग कर रहे थे, लेकिन उनकी मांग लगातार अनसुनी कर दी गई।सियासी गलियारों में चर्चा है कि वे एक बार फिर एनडीए में शामिल हो सकते हैं। पार्टी प्रवक्ता ने भी बताया कि महागठबंधन में निरंतर उपेक्षा और समन्वय समिति की गठन करने की बात नहीं माने जाने की वजह से यह फैसला लिया गया है।
एनडीए को फायदा?
जीतनराम मांझी महादलित समुदाय के प्रतिनिधि हैं और मध्य बिहार के कुछ इलाकों में उनकी अच्छी पकड़ है। अगर वो एनडीए के साथ जाते हैं, तो जाहिर तौर पर अपने लिए अधिक सीटों की उम्मीद रखेंगे। वहीं एनडीए में महादलित समुदाय के नेता के रुप में चिराग पासवान पहले से ही मौजूद हैं। ऐसे में एनडीए के लिए इन दोनों नेताओं के बीच तालमेल बिठाना आसान नहीं होगा।
दूसरी तरफ चिराग पासवान ने चुनावों की घोषणा के बाद से ही विद्रोही तेवर अपना रखा है। पप्पू यादव के साथ उनके गठबंधन की चर्चा भी चल रही है। ऐसे में चिराग पासवान के एनडीए छोड़ने की स्थिति में, मांझी की मौजूदगी एनडीए के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
क्या है इसका मतलब?
राजनीतिक घटनाक्रमों से इतना तो साफ है कि बिहार चुनाव के खेल में कांग्रेस और बीजेपी जैसी बड़ी पार्टियां सिर्फ सहयोगी की भूमिका में हैं। सत्ता की रेस में जदयू और राजद सबसे आगे हैं। दूसरी बात ये कि नेताओं के दलबदल से ये भी पता चलता है कि इस रेस में दोनों पार्टियां बराबर की दावेदार हैं और फिलहाल किसी को कुछ खास बढ़त हासिल नहीं है।
लेकिन अगले कुछ महीनों में ये समीकरण बदल भी सकते हैं। बाढ़, मजदूरों का पलायन और कोरोना के दौरान स्वास्थ्य-सुविधाओं की कमी नीतीश सरकार की सत्ता हिला सकती है। वहीं दूसरी ओर, राजद के पुराने रिकॉर्ड और तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री पद के दावेदारी की वजह से विपक्षी गठबंधन को सत्ता हासिल करने में मुश्किल हो सकती है।