Property Buying Tips : खरीदने से पहले जरूर चेक करें ये 9 कानूनी दस्तावेज
नई दिल्ली – हम घर या फ्लैट खरीदते वक्त लोकेशन, कीमत और पजेशन डेट के बारे में बात करते हैं। यह अहम बातें तो हैं ही लेकिन कोई घर-फ्लैट लेने से पहले आपको कुछ जरूरी दस्तावेज भी देख लेने चाहिए। ये दस्तावेज आपको घर पर कानूनी और जायज हक दिलाने के लिए बेहद अहम हैं। फ्लैट खरीदना हो या जमीन उसके मालिक और संपत्ति से जुड़ी जानकारियां जुटाना बहुत जरूरी है. अगर वह संपत्ति किसी विवाद में है तो आपका पूरा पैसा डूब सकता है. लिहाजा ऐसे किसी चीज में पैसे लगाने से पहले उसकी पूरी जांच कर लेना बहुत जरूरी है.
कंस्ट्रक्शिन क्लियरेंस –
किसी भी प्रॉपर्टी पर निर्माण शुरू करने के लिए एक ‘सर्टिफिकेट ऑफ कमेंसमेंट’ जरूरी होता है। यह सर्टिफिकेट टाउन प्लानिंग और इंजिनियरिंग डिपार्टमेंट जारी करते हैं।
संपत्ति के मालिकाना हक की जांच –
टाइटल डीड सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों में से एक है जिसे घर या जमीन खरीदने से पहले सत्यापित किया जाना चाहिए. इससे पता चलता है कि संबंधित संपत्ति के स्वामित्व हस्तांतरण, विभाजन, रूपांतरण, उत्परिवर्तन आदि के संबंध में कोई समस्या नहीं है. साथ ही जिस भूमि पर मकान या फ्लैट बना है वह कानूनी रूप से खरीदी गई है. आप चाहें तो किसी वकील से इस दस्तावेज को सत्यापित कर सकते हैं.
लैंड यूज सर्टिफिकेट –
कमर्शल या इंडस्ट्रियल जोन पर रेसिडेंशल कॉम्प्लैक्स बनाना अवैध है। इसीलिए जरूरी है कि आप प्रॉपर्टी या फ्लैट लेने से पहले लैंड यूज सर्टिफिकेट देख लें। अगर आपकी प्रॉपर्टी ‘कंन्वर्टेड’ जोन में आती है तो रेसिडेंशल निर्माण के लिए तहसीलदार या कमिश्नर की ओर से दी गई इजाजत देख लें।
लोन से जुड़े दस्तावेजों की पड़ताल –
संपत्ति खरीदने से पहले यह जरूर देख लेना कि उस पर किसी बैंक का कर्ज बकाया तो नहीं है . साथ ही नगर निगम की टैक्स देनदारी की भी पड़ताल कर लेनी चाहिए. आप संपत्ति से जुड़ी इस तरह की जानकारियां सब रजिस्ट्रार ऑफिस से प्राप्त कर सकते हैं. इससे आपको संपत्ति के 30 साल का इतिहास पता चल जाएगा.
कमेंसमेंट सर्टिफिकेट –
इसे कंस्ट्रक्शन क्लीयरेंस सर्टिफिकेट के रूप में भी जाना जाता है. यह दस्तावेज अनिवार्य है जब आप किसी डेवलपर से निर्माणाधीन संपत्ति खरीद रहे हों. यह किसी बिल्डर का फ्लैट, जमीन या मकान हो सकता है. इस सर्टिफिकेट में स्थानीय अधिकारियों से आवश्यक मंजूरी, लाइसेंस और अनुमति मिलने के बाद ही निर्माण शुरू होने के प्रमाण होते हैं.
लेआउट या भवन योजना –
लेआउट योजनाओं को उपयुक्त योजना अधिकारियों की ओर से पास किया जाता है. लेआउट को लेकर मकान खरीदारों को सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि डेवलपर्स अतिरिक्त मंजिलों को जोड़कर या खुले क्षेत्रों को कम करके पास किए गए लेआउट से अलग निर्माण करा लेते हैं. इससे बाद में संपत्ति पर विवाद या सरकारी पेंच फंस सकता है.
अप्रूव्ड प्लानिंग –
एक ऐडिशनल चेक और कर लें। वेरिफाई करें कि आपका बिल्डिंग, फ्लोर और लेआउट प्लान, अप्रूव्ड है या नहीं। लेआउट नैशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया के हिसाब से ही होना चाहिए।
नो ऑबजेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) –
बिल्डर से मांगने पर आपको अर्बन लैंड सीलिंग एनओसी (जरूरी हो तो), इन्वायरनमेंट क्लियरेंस एनओसी के साथ-साथ इलेक्ट्रिसिटी, वॉटर और लिफ्ट (अगर हो तो) अथॉरिटीज से मिली अलग-अलग एनओसी की कॉपी मिल सकती है।
कब्जा (ऑक्यूपेंसी) या ओसी प्रमाणपत्र –
यह सर्टिफिकेट प्रोजेक्ट का निर्माण पूरा होने के बाद ही स्थानीय अधिकारियों की ओर से जारी किया जाता है. इससे यह तस्दीक रहती है कि निर्माण की गई संपत्ति किसी भी तरह के कानूनी नियम का उल्लंघन नहीं करती. इसमें पानी, सीवेज और बिजली कनेक्शन से जुड़ी जानकारी भी रहती है.
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