संपूर्ण भारत के प्रतिनिधि हैं राम!
स च सर्व गुणोपेतः कौसल्यानंद वर्धनः ।
समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्येण हिमवानिव ॥
( कौसल्या के आनन्द को बढ़ाने वाले सर्वगुण संपन्न राम (Ram), सागर के समान गंभीर और हिमालय के समान धैर्यवान हैं।)
बालकांड, वाल्मीकि रामायण
हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के दस अवतारों) का उल्लेख है, जिसमें राम (Ram), भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। वैसे तो राम अवतारी पुरुष हैं, परन्तु उनका जीवन बिल्कुल मानवीय ढंग से बीता, बिना किसी चमत्कार के। आम आदमी की तरह वे मुश्किल में पड़ते हैं। समस्याओं से दो-चार होते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन चमत्कार नहीं करते। राम उसी तरह जूझते हैं जैसे आम आदमी।
राम ने सीता को वापस पाने के लिए जनजातीय लोगों को एकजुट किया और उनकी मदद से सेना बनाई। लंका पर चढ़ाई की तो एक-एक पत्थर जोड़कर पुल बनाया। रावण को भी ईश्वरीय शक्ति से नहीं बल्कि अपने अर्जित गुणों और पराक्रम से परास्त किया। यही वजह है कि राम (Ram) की भक्ति के लिए ईश्वरवादी होना भी जरुरी नहीं।
राम, तुम मानव हो? ईश्वर नहीं हो क्या?
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
विश्व में रमे हुए नहीं सभी कहीं हो क्या?
तब मैं निरीश्वर हूँ, ईश्वर क्षमा करे;
तुम न रमो तो मन तुम में रमा करे।
आदर्शों की स्थापना
राम का पूरा जीवन आदर्शों और उसकी स्थापना के लिए संघर्षों की गाथा है। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम, संयम, सत्य, धैर्य, धर्म, ज्ञान, नीति, सदाचार, विनय, विवेक और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं। राम दशरथ के लिए आदर्श पुत्र हैं, सीता के लिए आदर्श पति हैं, भरत के लिए आदर्श भाई हैं, जनक के लिए आदर्श दामाद हैं, विभीषण और निषादराज के लिए आदर्श मित्र हैं, प्रजा के लिए नीतिकुशल, न्यायप्रिय और आदर्श राजा हैं, ऋषियों और गुरुओं के लिए आदर्श शिष्य हैं, हनुमान के लिए आदर्श इष्ट हैं। राम हर रूप में पूर्ण, प्रेरणीय और अनुकरणीय हैं।
आसान नहीं ‘राम’ बनना
राम में ये गुण अपने महल में रहकर नहीं आये। राम (Ram) अपने सुविधा तंत्र से बाहर निकले और चुनौतियों को स्वीकार किया। अगर विश्वामित्र अपने साथ उन्हें वन में न ले जाते तो ताड़का वध, अहिल्या-उद्धार और शिव धनुष तोड़ने जैसी घटनाएं कभी घटित न होतीं। इसी तरह अगर कैकेयी की इच्छा पूरी करने के लिए राम खुद वनवास जाने का निश्चय नहीं करते, तो हो सकता है कि वो एक श्रेष्ठ राजा कहलाते, परन्तु राम में हमें वो दैवीय गुणों और प्रभुता के दर्शन नहीं होते जिन्होंने राम को नर से नारायण बनाया।
सभी के हैं राम (Ram)
राम(Ram) को ‘राम’ बनाया जंगल ने, जंगल में रहने वाले वनवासी, आदिवासी, दलित, शोषित, पीड़ित और वंचित समाज ने। राम का व्यवहार सभी के साथ दयापूर्ण और प्रेमयुक्त रहा। राम जाति और वर्ग से परे रहे। नर हों या वानर, मानव हों या दानव, सभी को उनके कर्मों के कसौटी पर जांचा, जाति या वंश के आधार के पर नहीं। और इसी के अनुसार उन्हें मित्र या शत्रु बनाया। राम के लिए कोई अछूत नहीं, चाहे वो मल्लाह केवटराज हो या गरीब भीलनी शबरी…रीक्ष जाति के जामवंत हों या वानर जाति के सुग्रीव…पक्षीराज जटायु हों या राक्षस कुल के विभीषण। राम का सभी के साथ यथायोग्य, प्रेमपूर्ण व्यवहार रहा।
ये विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि चाहे वाल्मीकि रामायण हो या तुलसीकृत रामचरितमानस, दोनों महाकाव्यों में राम कथा, राम के अयोध्या वापस लौटने और उनके राज्याभिषेक पर समाप्त हो जाती है। (बहुत से विद्वान मानते हैं कि रामायण में उत्तर काण्ड बाद में जोड़ा गया और सीता त्याग और शम्बूक वध जैसे घटनाएं रामकथा का हिस्सा नहीं है। ) वैसे भी असली राम कथा, राम के राम बनने में है, राम के राजा बनने में नहीं।
अखंड भारत की संकल्पना
भगवान राम (Ram) को 14 वर्ष को वनवास हुआ था। उनमें से सीता हरण और रावण युद्ध के अंतिम दो वर्षों को छोड़ दें, तो 12 वर्ष उन्होंने जंगल में रहकर ही काटे। इस दौरान उन्होंने भारत की सभी जातियों , कबीलों और संप्रदायों को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया। ऋषि-मुनियों और शोषित समाजों को बर्बर लोगों के आतंक से बचाया। दंडकारण्य क्षेत्र, जहां आदिवासियों-वनवासियों की बहुलता थी, राम ने 10 वर्षों का समय व्यतीत किया और इस दौरान ना सिर्फ राक्षस जाति के लोगों से जनजातियों की रक्षा की बल्कि उन्हें धर्मनिष्ठ और एकजुट किया। यही वजह है कि आज देशभर के आदिवासियों के रीति-रिवाजों में समानता पाई जाती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक अखंड भारत की संकल्पना राम ने ही दी थी।
महान व्यक्तित्व, महान उद्देश्य
राम (Ram) की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए थी ही नहीं। उनके वनवास का उद्देश्य था, भविष्य के लिए आदर्श की स्थापना करना। वो घर से निकले तो ये पूरे विश्व के लिए ये आदर्श स्थापित कि माता-पिता की अवांछनीय इच्छाओं को भी पूरा करना भी धर्म है। वन में रहे तो ये संदेश दिया कि कोई जाति अछूत नहीं, किसी के जूठे बेर खाने से भी धर्म भ्रष्ट नहीं होता, और सभी से प्रेम और आदर से पेश आना ही मानव का धर्म है। उन्होंने साबित किया कि गरीबों, दलितों, आदिवासियों में क्षमता की कमी नहीं होती। सही दिशा और नेतृत्व मिले तो आदिम जनजातियां भी रावण जैसे शत्रु पर भारी पड़ती हैं। तो ये हैं राम, जो सिर्फ सवर्णों के नहीं… शोषितों, वंचितों, दलितों और आदिवासियों के भी भगवान हैं।
श्रीराम का व्यक्तित्व और चरित्र मानवता के लिए तेजोमय दीपस्तंभ है। राम हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत तथा देश की एकता और अखंडता के प्रतीक हैं। राम सनातन धर्म की चेतना और सजीवता का प्रमाण हैं। यही वजह है कि मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में श्रीराम सर्वत्र व्याप्त हैं और दक्षिण भारत के राज्यों सहित नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में भी जिंदा हैं।
राम (Ram) के जीवन को, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपने काव्य-ग्रंथ ‘साकेत’ में सिर्फ दो वाक्यों में पूर्णता के साथ व्यक्त किया है –
राम, तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है॥
मैथिलीशरण गुप्त
लेखक : मंजुल मयंक शुक्ल (manjul.shukla@gmail.com )