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कहीं दूर जब दिन ढल जाए…

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कहीं दूर जब दिन ढल जाए…

Remembering Mukesh, the singer
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‘एक प्यार का नगमा है’, ‘ मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने बुने’, ‘डम डम डिगा डिगा’, ‘हमने तुमको प्यार किया है इतना’, ‘सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी’, ‘छलिया मेरा नाम’, ‘चांदी की दीवार न तोड़ी’, ‘मैं तो ख्वाब हूँ’, ‘एक दिन बिक जायेंगे माटी के मोल’, ‘कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे’, ‘हम छोड़ चलें हैं महफ़िल को’, ‘आ लौट के आ जा मेरे मीत’, ‘कहता है जोकर’, ‘जीना यहाँ, मरना यहां’ ….जैसे संयोग, वियोग और दर्शन से लवरेज़ यादगार गीतों (songs) से लेकर भजन, ग़ज़ल, रामायण की चौपाइयां तक, हर रंग और ‘मूड’ के गीत गाने वाले सदाबहार और लोकप्रिय गायक (singer), श्री मुकेश (mukesh) चंद्र माथुर की आज ४४वीं पुण्यतिथि है।

मुकेश के गाने और उनकी दर्द भरी आवाज़ को याद करते हुए कुछ कहानियां याद आ रही हैं। दो कहानियां आपको सुनाता हूँ:

समय –  1940 के आस पास, स्थान: दिल्ली की एक शादी  

16-17 साल के एक ख़ूबसूरत नौजवान ने एक के बाद एक सहगल के गीतों से अपनी बड़ी बहन की शादी में समां बांध दिया। बारात में एक शख्स इस नौजवान के गीतों को बड़ी तन्मयता के साथ सुन रहा था। वो नौजवान गायक थे मुकेश और उस ख़ास श्रोता का नाम था मोतीलाल, जो उस दौर के एक बड़े अभिनेता थे। मोतीलाल ने ही मुकेश को मुंबई आने का आमंत्रण दिया। बस वहीं से शुरु हुआ मुकेश की संगीत यात्रा का सफ़र, और तब से लेकर मुकेश की स्वर लहरियों का जादू श्रोताओं के दिलोदिमाग में आज तक कायम है।

समय –  इस सदी का प्रथम दशक, स्थान: मॉरिशस में कोई जगह

गीतकार डॉ हरिराम आचार्य को मॉरिशस भ्रमण के दौरान फिल्म ‘भूल ना जाना’ (अप्रदर्शित फ़िल्म) का गाना ‘ग़मे दिल किससे कहूं’ सुनाई दिया। आवाज़ का पीछा करते हुए वे एक मकान में पहुंचे, तो वहां रिकार्ड पर ये गीत बज रहा था और सुनने वाला गीत सुनते हुए रो रहा था। बात करने पर पता चला कि वो व्यक्ति ज़िंदगी से परेशान है और रोज़ आत्महत्या करने को सोचता रहता है। मगर ये गीत सुनकर वो अपने दुःख भूल जाता है। मुकेश के बहुत से गीत हम सबकी ज़िंदगी में ऐसे ही सहारा देते हैं। 

मुकेश की मखमली आवाज़ की सबसे बड़ी विशेषता है उनके स्वर, श्रोता जन मानस से ऐसे संबंध स्थापित करते हैं  कि मानो उसकी स्वयं की आवाज़ हो।  श्रोताओं के दुख-दर्द और खुशी में शामिल हो जाते हैं मुकेश के गीत। विशेषकर उनके दर्द भरे स्वर, उदासी की सुगंध बिखरते हुए दर्द में भी आनंद की अनुभूति कराते हैं।  

मुकेश का पहला गीत जिन्होंने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई, उसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।  १९४५ के आस पास की बात है। अनिल बिस्वास के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ‘पहली नज़र’ में एक गीत था, जो मोतीलाल पर ही फ़िल्माया गया था। गीत रिकॉर्ड होने के बाद निर्माता मज़हर खान को पसंद नहीं आया और उन्होंने उसे फ़िल्म में ना रखने का निर्णय कर लिया था। लेकिन मुकेश के निवेदन के पश्चात एक सप्ताह के लिए इस गीत को फिल्म में रखने के लिए मजहर साहब तैयार हो गए। फिर फिल्म के इस गीत ने ऐसी धूम मचाई कि  फिल्म लोगों को भले ही याद न हो लेकिन गीत अभी भी सबके दिलों में गूंजता है, ‘दिल जलता है तो जलने दे’।

वर्ष 1946, मुकेश और भारतीय सिनेमा संगीत के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ।  राज कपूर की पहली फ़िल्म ‘आग'(1946) में मुकेश ने  गीत ‘ज़िंदा हूं जिस तरह’ गाया और राज कपूर के साथ एक नए रिश्ते की शुरुआत हुई । इसके बाद ताउम्र मुकेश… राज कपूर की आवाज़ के रूप में जाने जाते रहे। इस गायक-अभिनेता की सुपरहिट जोड़ी ने एक के बाद एक कई मशहूर गीतों को जनता के सामने पेश किया। बरसात, आवारा, आह, श्री 420, अनाड़ी, परवरिश, फिर सुबह होगी, जिस देश में गंगा बहती है, संगम, तीसरी कसम  से लेकर मेरा नाम जोकर तक। उनके कुछ कालजयी गानों पर एक नज़र :

  1. आवारा हूं, आवारा हूं या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं, आवारा हूं।  (फ़िल्म – आवारा)
  2. मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंगलिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी। (फ़िल्म – श्री ४२०)
  3. दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई. काहे को दुनिया बनाई तुने, (फ़िल्म – तीसरी कसम)
  4. जाने कहां गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में, नज़रों को हम बिछाएंगे।  (फ़िल्म – मेरा नाम जोकर)
  5. दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा, ज़िंदगी हमें तेरा एतबार नहीं रहा, ऐतबार ना रहा।  (फ़िल्म – संगम)
  6. चांद सी महबूबा हो मेरी, कब ऐसा मैंने सोचा था… (फ़िल्म – हिमालय की गोद में)
  7. इक प्यार का नगमा है.. मौजों की रवानी है….ज़िंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है।  (फ़िल्म – शोर)
  8. सावन का महीना..पवन करे शोर…(फिल्म – मिलन)
  9. कहीं दूर जब दिल ढल जाए..सांझ की दुल्हन नजर चुराए. (फ़िल्म – आनंद)
  10. कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है…कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिए।   (फ़िल्म – कभी-कभी)

मुकेश ने अनिल बिस्वास, नौशाद, एस डी बर्मन, रोशन, शंकर जयकिशन, ख़य्याम, सलिल चौधरी से लेकर जयदेव, एन दत्ता, कल्याण जी-आनंद जी, आर डी बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल तक सभी संगीतकारों के साथ अविस्मरणीय रचनाएं दीं। उन्हें चार बार सर्वश्रेष्ठ गायक का फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार मिला। 1974 में फ़िल्म रजनीगंधा के गीत ‘कई बार यूं भी देखा है’ के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। मुकेश ने रफ़ी, किशोर कुमार की तुलना में कम ही गाने गाए, लेकिन उनके गाए 1300 गानों का जादू ऐसा है कि लगभग हर रंग और अंदाज़ के गीत सुनने वालों के दिलों में उन्होंने जगह बनाई। उनके गानों की गूँज सीमाएं पार कर अमेरिका, रूस, इस्राइल, तुर्की और ईरान तक पहुंची।

27 अगस्त 1976 को वे अमरीकी शहर डेट्रायट में एक संगीत कार्यक्रम के लिए गए थे, तभी उनको दिल का दौरा पड़ा। मुकेश को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।

सलिल चौधरी ने मुकेश को याद करते हुए कहा था “मुकेश के होठों से निकला हर शब्द मोती था। सही उच्चारण, आवाज़ का उतार चढ़ाव और मोड़ उनकी गायकी को नये आयाम देते रहे। उनके जाने के बाद अब ऐसी आवाज़ मिलनी मुश्किल है।”

संगीतकार नौशाद ने मुकेश को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था –

महफ़िलों के दामनों से, साहिलों के आस-पास।

ये सदा गूंजेगी सदियों तक दिलों के आस पास।।”

मुकेश के असमय निधन पर द्रवित और अश्रुपूरित राज कपूर के शब्द थे, ‘मेरी आवाज़ चली गई, मैं गूंगा हो गया हूं’

मुकेश के गीत और दर्द भरी आवाज़ हमारे दिलों पर अमिट छाप छोड़ गए हैं जिन्हे सदियों तक हम सुनते और गुनगुनाते रहेंगे।

लेखक – मंजुल मयंक शुक्ल (manjul.shukla@gmail.com) 

Shailendra

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