सुशांत की खुदकुशी: न्यूज चैनल्स का उत्सव
जमशेदपुर में एक व्यक्ति ने दिन भर सुशांत की खबर देखी और रात में फांसी लगा कर जान दे दी। अगर टीवी ने इस खबर को बस एक खबर की तरह दिखाया होता, उस शोक में डूबे परिवार की निजता का सम्मान किया होता, बगैर उनकी मर्जी के सारी दुनिया से उनका तारूफ नहीं कराया होता…. 34 साल के युवा की मौत का उत्सव नहीं मनाया होता…तो शायद जमशेदपुर में लॉकडाउन को लेकर नौकरी जाने की वजह से डिप्रेशन के शिकार शख्स ने खुदकुशी न की होती।
टीवी न्यूज में ये सिखाया जाता है कि इमोशन बिकता है, दर्द बिकता है, आंसू बिकते हैं, लेकिन अब हमारे मीडिया ने बहुत तरक्की कर ली है, अब वो मौत बेचता है। टीवी न्यूज चैनल्स के लिए एक युवा कलाकार की मौत सिर्फ एक मौत नहीं है, वो एक सेलिब्रिटी की मौत है..बहुत बिकाऊ मौत है…इसे लाइव दिखाया जाना जरूरी है, इसके परिवार के लोगों के आंसू सारा देश देखेगा…इसमें टीआरपी पोटेन्शियल है …हद है…
एक परिवार बिखर गया, लाखों फैन्स टूट गए..लेकिन टीवी न्यूज में ये संवेदना पूरी तरह से गायब थी। जिस पिता ने अपना जवान बच्चा खो दिया, क्या उसका घर से एयरपोर्ट जाना ब्रेकिंग न्यूज है…इसे लाइव प्ले किया जाना चाहिए? क्या बहनों को अपने भाई की मौत का गम निजी शोक की तरह मनाने का हक है? क्या एक लड़की को अपने दोस्त की खुदकुशी का शोक निजी रखने का हक है?
सुशांत के पिता कब पटना से चले, कब मुंबई पहुंचे, सुशांत की बहनें कब आईं…विले पार्ले के श्मशान से दाह संस्कार के विजुअल, सुशांत की दोस्त रिया चक्रवर्ती के विजुअल……संवेदनाहीन न्यूज एडीटर और एंकरों की दुनिया में आपका स्वागत है।
मौत को मसाला बना कर रख दिया। कोई चैनल शेखर कपूर के ट्वीट पर बहस कर रहा है कि तुम्हारे साथ छह महीने से बहुत गलत हो रहा था, कोई कंगना रनौत के बयान पर बहस कर रहा है कि सुशान्त की मौत एक प्लान्ड मर्डर है। कोई महेश भट्ट का बयान ले उड़ा कि सुशान्त की हालत परवीन बॉबी जैसी हो गई थी। एक चैनल नीली पॉलीथीन पर फोकस्ड था कि ये पॉलीथीन खोलेगा खुदकुशी का राज ..वो पॉलीथीन जिसमें सुशान्त की दवाइयां, मोबाइल जैसी चीजें रखी थीं। किसी के पास, सुशान्त के फोन कॉल की सारी डिटेल्स थी। उसने अपने दोस्त महेश शेट्टी से कब बात की, रिया से कब बात की … अब पुलिस इनसे पूछताछ करेगी…. ज्यादातर चैनल डिप्रेशन पर लाइव क्रैश कोर्स लेकर बैठ गए।
…भाई किसी को क्या मतलब है इन बातों से…न निजता का ख्याल, न गरिमा की फिक्र
हमारे यहां टीवी न्यूज चैनल्स को पत्रकारिता का बेसिक कोर्स सीखने की जरूरत है। लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी और गणेश शंकर विद्यार्थी ने अखबार को गुलाम देश में जन चेतना का जरिया बनाया था। आज टीवी न्यूज चैनल्स उसी निर्विकार भाव से खबर बनाते, दिखाते और चलाते हैं जैसे कोई कसाई बकरा काटता है।
कलाकार अक्सर बेहद जज्बाती होते हैं, इंडस्ट्री या परिवार के लोग उन्हें स्नेह, सम्मान और सावधानी से हैन्डल करते हैं, लेकिन कहीं कोई कमी रह जाती है..तब इस तरह सदमे में डालने वाली घटना सामने आती है। अगर हम उनके परिवार वालों को सांत्वना नहीं दे सकते, तो ठीक है , लेकिन कम से कम उनकी भावनाओं का कुछ तो ख्याल करें…उन्हें प्राइवेसी दें, उन्हें निजी तौर पर दर्द के समंदर से गुजरने दें …. सुशान्त आपका भी प्रिय रहा होगा…उसके लिए इतना तो कर ही सकते हैं …