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विवादों में ‘द कारगिल गर्ल’

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विवादों में ‘द कारगिल गर्ल’

review of film gunjan saxena
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नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई फिल्म गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल इन दिनों सुर्खियों में है…। फिल्म अपने किसी बेहतरीन काम के कारण नहीं बल्कि सेना द्वारा आपत्ति दर्ज कराए जाने के कारण खबरों में है…। भारतीय वायु सेना की शिकायत है कि इस फिल्म में वायु सेना की कार्य-प्रणाली को गलत ढंग से पेश किया है और इससे नकारात्मक संदेश जाता है…। तो क्या वाकई में फिल्म में सेना की छवि धूमिल करने की कोशिश की गई है…? आखिर क्या है ऐसा इस फिल्म में जिसकी वजह से इसे देखना चाहिए?

क्या है कहानी?

फिल्म की शुरुआत होती है कारगिल में ज़ंग के मैदान से, जब एक इमरजेंसी इवैक्यूएशन के लिए वायु सेना की जरुरत पड़ती है। बेस में उस वक्त एक ही पायलट मौजूद है गुंजन सक्सेना…। इसके बाद फ्लैशबेक में गुंजन की सारी कहानी दिखाई जाती है..उसके पायलट बनने का सपना देखना और उस सपने के पीछे दौड़ते हुए दुनिया की तमाम की परेशानियों का सामना करना…और फिर पायलट बनने के बाद मर्दों की इस प्रोफेशन में खुद को साबित करना.., और उसके पिता का उसके सपनों को पूरा करने में पूरा सहयोग देना…। यह फिल्‍म आपको देशभक्‍त‍ि के जज्‍बे और जीत के अभ‍िमान से भी भरती है, और बाप-बेटी के रिश्ते को भी शानदार तरीके से दिखाती है।

सेना को क्या है आपत्ति?

वायु सेना की ओर से लिखे गए पत्र के अनुसार – ‘पूर्व फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्‍सेना के स्‍क्रीन कैरेक्‍टर को महिमामंडित करने के लिए धर्मा प्रोडक्‍शंस ने कुछ ऐसी सिचुएशंस को पेश किया है जो भ्रमित करने वाली हैं और भारतीय वायुसेना में महिलाओं के खिलाफ अनुचित कार्य संस्‍कृति का चित्रण करती हैं।’

दरअसल, फिल्म की कहानी वायु सेना की महिला पायलट गुंजन सक्सेना की ज़िन्दगी पर आधारित है, जिसे कारगिल लड़ाई के दौरान असाधारण साहस और वीरता के लिए शौर्य चक्र से नवाजा गया था। चूंकि कहानी असली जिंदगी से प्रेरित है और इसलिए फिल्म में हीरो है गुंजन सक्सेना। जबकि विलेन के रोल में है… उसके राह में आनेवाली बाधाएं।

फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना, असली हीरो

फिल्म के मुताबिक गुंजन सक्सेना का तरक्की में बाधक है…. सेना के अधिकारियों की पुरुष सत्तात्मक मानसिकता और महिला कर्मचारियों के प्रति भेदभाव। और यहीं पर वायुसेना को आपत्ति है। वायु सेना की ओर से कहा गया है कि संगठन में महिलाओं और पुरूष कर्मचारियों में भेद नहीं किया जाता और उन्हें समान अवसर उपलब्ध कराये जाते हैं। इसके विपरीत फिल्म की पूरी कहानी इसी के इर्द गिर्द घूमती है कि एक महिला सेना में नहीं आ सकती…और अगर आती है, तो अधिकारियों की मेल इगो उसे आगे बढ़ने नहीं देता।

फिल्म में कई ऐसे तथ्य हैं जो वायुसेना की आपत्ति को उचित ठहराते हैं। कुछ ऐसी चीजें जो दर्शकों को भी हजम ना हों…जैसे किसी बेस में केवल एक महिला कर्मचारी का होना..ज़रुरी सुविधाओं मसलन, चेंजिग रुम, टॉयलेट वगैरह का ना होना…कैंप में खुलेआम अश्लील तस्वीरों का होना…। सेना में अनुशासन कितना अहम होता है, इससे सभी वाकिफ हैं। ऐसे में इन तथ्यों को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल लगता है।

कैसा है अभिनय?

फिल्म में मुख्य भूमिका में है जान्हवी कपूर…. जिनकी ये दूसरी फिल्म है…। उनका अभिनय सराहनीय है..एक जुझारु पायलट के तौर पर उन्होंने अपने रोल के साथ काफी हद तक इंसाफ किया है…। फिल्म में वो कहीं भी ग्लैमरस अवतार में नहीं दिखी है और इस वजह से फिल्म रियलिस्टिक दिखती है। गुंजन सक्सेना के पिता के रोल में पंकज त्रिपाठी ने एक बार फिर शानदार काम किया है। वो जब भी स्क्रीन पर होते हैं…अपना असर छोड़ जाते हैं। विंग कमांडर के रोल में विनीत सिंह हैं जबकि गुंजन के भाई के रोल में हैं अंगद बेदी…। दोनों ने गुंजन के रोल को उभारने में मदद की है।

जान्हवी कपूर के साथ निर्देशक शरण शर्मा

कैसा है निर्देशन?

निर्देशन की बात करें तो शरण शर्मा ने बतौर डायरेक्‍टर इस फिल्‍म से डेब्‍यू किया है। इस फिल्म में उन्‍होंने लैंगिक विषमता को पूरी ईमानदारी से पर्दे पर उकेरा है। कुछ एक सीन्स काफी कमज़ोर लगे हैं तो कई ऐसे भी हैं जो आपको झकझोर कर रख देते हैं..। फ्लाईंग सीन्स को पर्दे पर बहुत अच्छी तरह से उतारा गया है…और इमोशलन सीन्स बेहतर बन पड़े हैं, हालांकि इसका क्रेडिट जान्हवी और पंकज त्रिपाठी के अभिनय को जाता है।

क्या रह गई कमी?

फिल्म देखने से साफ पता चलता है कि ये निर्देशक की पहली फिल्म है। कहानी के मामले में भी ये कमजोर है। गुंजन सक्सेना की असली पहचान उनकी वो चालीस से ज्यादा उड़ानें हैं, जिसे उन्होंने कारगिल वॉर के दौरान काफी मुश्किल परिस्थितियों में भी सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। लेकिन फिल्म, उनकी इस बहादुरी को ढंग से छूती तक नहीं है। निर्देशक का सारा ध्यान पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को होनेवाली समस्याओं पर है। इनमें से कुछ समस्याएं सही हैं, तो कुछ कपोल-कल्पित। इसी दुराग्रह की वजह से कहानी कमजोर पड़ गई है। यदि इस फिल्म को केवल गुंजन के काम और बहादुरी के इर्द-गिर्द रखा जाता तो फिल्म बेहतर बनती।

क्यों देखें फिल्म?

सेना में अपनी जगह बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत करने वाली जान्हवी और उसका सपोर्ट करनेवाले पिता पंकज त्रिपाठी के लिए आप ये फिल्म एक बार देख सकते हैं…। साथ ही आसमान की दुनिया को भी फिल्म में खूबसूरती से पेश किया गया है…। कुल मिलाकर यह एक नारीवादी फिल्म है…और इसमें असल जिंदगी के इतर… नाटकीयता का अंश ज्यादा देखने को मिलेगा…। निर्देशक ने इस मामले में खासी लिबर्टी ली है…और इसी वजह से विवादों में भी है।

Shailendra

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