स्लम के लिए कितना बड़ा खतरा है कोरोना ?
Clichy-sous-Bois ( क्लिशी शू ब्वा ) पेरिस के उत्तर में गरीबी से बेसब्र, अपराध के लिए बदनाम गरीबों की बस्ती है। 70 फीसदी से ज्यादा आप्रवासियों वाले, फ्रांस के इस सबसे गरीब इलाके में जरुरी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं और लॉकडाउन को लेकर बहुत सारे लोग बेरोजगार हो गए हैं। अब यहां भूख है, बेरोजगारी है, अपराध है और तेज रफ्तार से बढ़ते कोरोना के मामले हैं। हजारों लोग दिन भर कतार में लग कर पका खाना लेने को मजबूर हैं। जर्जर घर, ड्रग्स की लत, नस्ली भेदभाव काफी नहीं था कि कोरोना ने दस्तक दे दी।
उधर कोलंबिया की राजधानी बोगोटा में एक सब्जीवाली रोज दुआ करती है कि उसे कोरोना न हो जाए। अगर बच्चों का पेट भरना है तो उसका काम करते रहना जरूरी है। वो बीमार है, एक वक्त ही खाती है, वो नर्क जैसे हालात मे जीती है, लेकिन फिर भी भारी खतरा उठा कर सब्जियां बेचने रोज निकलती है, क्योंकि वो जानती है कि जिस दिन सब्जी नहीं बिकेगी उस दिन घर में चूल्हा नहीं जलेगा। लैटिन अमेरिका की 11.30 करोड़ आबादी में ये एक अकेली महिला नहीं हर तीसरी महिला की कहानी है। यहां हर पांचवां शख्स स्लम्स में जीता और मरता है।
स्लम में रहने वालों को काम रोज नहीं मिलता, लेकिन भूख रोज लगती है
मुंबई में धारावी हो, ब्राजील में रोसिन्हा, मनीला में टोन्डो या न्यूयॉर्क में क्वीन्स और ब्रॉन्कस..स्लम में वायरस वैसे ही फैल रहा है जैसे जंगल में आग
कोरोना आया तो एयरोप्लेन और शिप से लेकिन आ कर बस गया है स्लम्स में।
गरीबी पहले भी थी लेकिन इस बार एक वक्त का खाना लेने के लिए जितने लोग दुनिया भर में कतार में लगे हैं, वो नजारा पहले कभी देखने को नहीं मिला था। दुनिया भर में सफाईकर्मी, बाई, सड़कों पर सामान बेचने वाले, कंस्ट्रक्शन वर्कर की जिंदगी यों भी आसान नहीं थी, लेकिन स्लम में रहने वाला ये तबका अभी जिन्दगी के सबसे मुश्किल हालात से दो चार हो रहा है।
2014-15 में इबोला वायरस ने सबसे ज्यादा तबाही लाइबेरिया, गिनी और सियरा लियोन के स्लम्स मे ही मचाई थी।
कोरोना के साए में 120 करोड़ लोग
दुनिया में 33 मेगासिटीज हैं जहां 1 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं, 48 बड़े शहर हैं जहां 50 लाख से 1 करोड़ के बीच लोग रहते हैं। इन 81 शहरों में कई स्लम हैं जहां 120 करोड़ लोग रहते हैं। इन पर कोरोना कहर बन कर टूटा है।
कैसे ये बड़ी परेशानी है ?
अकेले मुंबई के धारावी में प्रति मील 8.5लाख लोग रहते हैं। यहां सोशल डिस्टेन्सिंग और आइसोलेशन तो मुश्किल है ही, सरकार के लिए केसेज की ट्रेकिंग और कांटैक्ट ट्रेसिंग बहुत बड़ी चुनौती है।
कोरोना का कहर स्लम्स पर क्यों ?
एक कमरे के घर में जहां 10-12 लोग रहते हों, न अलग कमरा है न अलग बाथरूम वहां आइसोलेशन और क्वांरटीन कैसे हो
तंग गलियों में प्रदूषण और कुपोषण के बीच सोशल डिस्टेन्सिंग मुश्किल है
महीने भर का राशन एक साथ खरीदने के पैसे नहीं
पानी समय देख कर आता है, बार-बार साबुन से हाथ धोना विलासिता है
डिजिटल पेमेंट की दुनिया में अभी नहीं पहुंचे हैं
उधार और कैश वाली दुनिया में जीते हैं
संक्रमण की अधिक आशंका वाला काम
उपाय क्या है ?
सोशल डिस्टेंसिंग का नया फार्मूला जो स्ल्म में कारगर साबित हो
कोरोना को फैलने से रोकने वाले उपायों पर जोर
चीन ने जिस तरह हजारों बेड वाले क्वारंटीन सेंटर स्टेडियम्स में बनवाए, उस तरह के अस्थायी अस्पताल स्लम के करीब बनाए जाएं
केस आने का इंतजार न करें, टेस्टिंग किट में स्लम को प्राथमिकता दें
अमेरिका में जार्जटाउन यूनिवर्सिटी ने स्लम्स के लिए खास टूल तैयार किया है RUHSA यानी Rapid Urban Health Security Assessment – इस तरह के टूल्स की मदद से स्लम एरिया में खतरे की पहचान कर उसके उपाय कर सकते हैं।
महामारी के लिए तैयारी का इंडेक्स – 2019 में दुनिया भर के मेयरों की संसद में इसे बनाने की बात उठी थी। नगर निकायों को इस पर गौर करन चाहिए।