बेनतीजा रही एक और वार्ता!
नए कृषि कानूनों (New Farm Laws) को लेकर किसानों और सरकार के बीच सोमवार को चल रही बैठक भी बेनतीजा खत्म हो गई। किसान नेताओं और सरकार में सिर्फ इस बात पर सहमति बनी कि 8 जनवरी को अगले दौर की वार्ता में फिर से समाधान निकालने की कोशिश की जाएगी। दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में हुई इस बैठक में सरकार की ओर से कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और रेलमंत्री पीयूष गोयल ने किसानों से बातचीत की।
बैठक में क्या हुआ?
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बैठक के बाद कहा कि ‘किसानों के कानून वापस लेने पर अड़े रहने की वजह से कोई रास्ता नहीं निकल पाया। हमें उम्मीद है कि अगली बैठक में सार्थक चर्चा होगी और हम समाधान तक पहुंच पाएंगे। किसानों को सरकार पर भरोसा है और सरकार के मन में किसानों के प्रति सम्मान और संवेदना है।’
उधर, किसान नेता राकेश टिकैत ने बैठक के बाद कहा, ‘8 जनवरी को सरकार के साथ फिर से मुलाकात होगी और तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने और MSP दोनों मुद्दों पर बात होगी। हमने बता दिया है कि कानून वापसी नहीं तो घर वापसी भी नहीं होगी।’ ऑल इंडिया किसान महासभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि हम कानून वापसी के अलावा किसी अन्य मुद्दे पर चर्चा नहीं चाहते हैं। जब तक कानून वापस नहीं होते, हमारा आंदोलन जारी रहेगा।
अब तक कितनी प्रगति?
30 दिसंबर की मीटिंग में सरकार और किसानों के बीच 2 मुद्दों पर सहमति बनी थी।
- मौजूदा कानूनों में पराली जलाने केस दर्ज करने, एक करोड़ रुपए तक जुर्माना और 5 साल की कैद का प्रावधान है। सरकार ने इस मामले में सहमति जताते हुए किसानों पर केस नहीं करने और वायु गुणवत्ता अध्यादेश में बदलाव की बात मान ली।
- किसानों को आशंका थी कि बिजली संशोधन अधिनियम से उन्हें नुकसान होगा और उनकी सब्सिडी खत्म हो जाएगी। सरकार ने इस मामले में स्वीकार किया कि अब ऐसा कोई कानून या संशोधन नहीं लाया जाएगा।
अब तक क्या हुआ?
- पहला दौर (14 अक्टूबर) – मीटिंग में कृषि सचिव के आने पर किसान संगठनों ने बैठक का बहिष्कार कर दिया। उनकी मांग थी कि कृषि मंत्री खुद बात करने के लिए सामने आएं।
- दूसरा दौर (13 नवंबर) – कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने किसान संगठनों के साथ बातचीत शुरु की। 7 घंटे तक चली ये बातचीत बेनतीजा रही। किसान नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े रहे।
- तीसरा दौर (1 दिसंबर) – सरकार ने कृषि कानूनों में संशोधन के लिए एक्सपर्ट कमेटी बनाने का सुझाव दिया, लेकिन किसान संगठन तीनों कानून रद्द करने की मांग पर अड़े रहे।
- चौथा दौर (3 दिसंबर) – सरकार ने MSP को लेकर वादा किया कि इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। लेकिन किसानों की मांग थी कि सरकार MSP पर गारंटी दे।
- 5वां दौर (5 दिसंबर) – बातचीत बेनतीजा रही। सरकार MSP पर लिखित गारंटी देने को तैयार हुई, लेकिन किसानों की मांग थी कि सरकार कृषि कानूनों को रद्द करने को लेकर हां या ना में जवाब दे।
- 6वां दौर (8 दिसंबर) – किसानों के भारत बंद के बाद सरकार दबाव में थी। गृहमंत्री अमित शाह की निगरानी में सरकार ने 22 पेज का प्रस्ताव पेश किया, लेकिन किसान संगठनों ने इसे ठुकरा दिया।
- 7वां दौर (30 दिसंबर) – नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल ने किसान संगठनों के 40 प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। दो मुद्दों पर सहमति बनी, लेकिन किसान MSP गारंटी से संबंधित विधेयक लाने और कृषि कानूनों को वापस लिये जाने की मांग पर अड़े रहे।
- 8वां दौर (4 जनवरी) – बातचीत एक बार फिर बेनतीजा रही। सरकार ने MSP को ‘कानूनी रूप’ देने पर बातचीत का प्रस्ताव रखा, लेकिन किसान नेताओं ने इस पर चर्चा से इनकार कर दिया। किसान संगठन कृषि कानूनों को रद्द किये जाने की मांग पर अड़े रहे।
आगे क्या होगा?
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछली बैठक में किसान संगठनों से अनुरोध किया था कि कृषि सुधार कानूनों के संबंध में अन्य विकल्प दें। लेकिन किसान संगठनों ने बैठक से पहले ही कह दिया कि वो सरकार के सामने कोई नया विकल्प नहीं रखेंगे। जाहिर है, सरकार कृषि कानूनों में बदलाव के लिए तो तैयार है, लेकिन पूरी तरह वापस लेने को नहीं। उधर किसान संगठन इस बात पर अडिग हैं कि जब तक कृषि कानून रद्द नहीं होंगे, उनका आंदोलन खत्म नहीं होगा।
ऐसी स्थिति में बीच का कोई रास्ता नहीं बचता। तो मान कर चलिए कि दोनों पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहेंगे और इंतजार करेंगे कि कौन पहले झुकता है। ये आंदोलन अब किसानों के हित-अनहित से नहीं, बल्कि इस जिद से जुड़ा है कि सरकार झुकती है या नहीं। मान कर चलिए कि अभी कई दौर की बातचीत बेनतीजा रहेगी।