Sushil modi: परमानेंट डिप्टी सीएम आउट ऑफ कैबिनेट कैसे हो गए?
नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के सीएम बने तो जेडीयू के 5, बीजेपी के 7, हम और वीआईपी से एक-एक मंत्री बने। लेकिन इन मंत्रियों के बनने से ज्यादा बड़ी खबर रही बिहार के एनडीए सरकार में पहली बार सुशील मोदी का मंत्री नहीं बनना। जिल्लत ऐसी कि 20 साल में पहली बार कैबिनेट के शपथ-ग्रहण में सुशील मोदी को पहली कतार में बैठने की जगह तक नहीं मिली।
आम तौर पर नेता आगे चलते हैं और पार्टी उनका अनुसरण करती है..पीछे चलती है…बिहार में अबकी बार कुछ नया हुआ है…बीजेपी आगे चली गई और सारे देश को GST का गुणा- भाग समझाने वाले सुशील मोदी जोड़-घटाव करते-करते… पीछे रह गए। 3 मार्च 2000 को जब नीतीश कुमार पहली बार महज सात दिन के लिए बिहार के सीएम बने थे, तब सुशील मोदी संसदीय कार्यमंत्री बने थे। सिवाय 2015-17 के जबकि वो नेता प्रतिपक्ष थे, 2005 से सुशील मोदी बिहार के परमानेंट डिप्टी सीएम रहे हैं।
सुशील मोदी के हटाए जाने की इनसाइड स्टोरी
करीब हफ्ते भर पहले… सुशील मोदी को दिल्ली बुला कर बता दिया गया था कि इस बार पार्टी कुछ नए लोगों को आगे बढ़ाना चाहती है। आपको राज्यसभा सांसद बनाने का विचार है। मायूस सुशील पटना लौटे तो काउन्टिंग के बाद पार्टी में अपने भरोसे के विधायकों के साथ मशविरा किया। ये तय हुआ कि जब बीजेपी के विधायकों के साथ राजनाथ सिंह रविवार को डिप्टी सीएम पद के लिए रायशुमारी तय करेंगे, तब मोदी के समर्थक विधायक गोलबंद हो कर नामित डिप्टी सीएम का विरोध और सुशील मोदी का समर्थन करेंगे।
दो तस्वीरों से आप सुशील मोदी के घटते कद को समझ सकते हैं। पहली तस्वीर में राजनाथ सिंह का एयरपोर्ट पर स्वागत करते सुशील मोदी हैं।
जबकि दूसरी तस्वीर में अमित शाह और जेपी नड्डा का स्वागत करने वालों में नित्यानंद राय सामने हैं, जबकि सुशील मोदी को आगे आने की इजाजत तक नहीं है।
पार्टी पर दबाव डालने की रणनीति के तहत सुशील मोदी शनिवार को दिल्ली से लौटने के बावजूद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ इस्तीफा देने राजभवन नहीं गए। इतना ही नहीं, वो पटना में रहने के बावजूद बीजेपी विधायक दल की बैठक में नहीं गए, जिसे पार्टी ने गंभीरता से लिया। राजनाथ सिंह ने बीजेपी विधायकों की राय लेना भी गवारा नहीं किया और गेस्ट हाउस से सीधे एनडीए की बैठक के लिए मुख्यमंत्री आवास के लिए रवाना हुए। सुशील मोदी को इशारा मिल चुका था। वो बाजी हार चुके थे और राजनीति हारने वालों को किस कदर जलील करती है, इसे इस तरह समझिए कि एनडीए की जिस बैठक में तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी का नाम नए डिप्टी सीएम के लिए तय करने के बाद नीतीश कुमार को सूचित करने के लिए बुलाई गई, उसमें शिरकत करने के लिए सुशील मोदी, नित्यानंद राय के साथ राजनाथ सिंह के काफिले में शामिल हुए। बैठक के बाद सिर्फ इतना ही बताया गया कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे। बीजेपी के दो नए डिप्टी सीएम बनाने और सुशील मोदी को हटाए जाने की बात जाहिर नहीं की गई। राजनीति में सबसे मुश्किल होता है अपनी सियासत के खत्म होने का खुद ऐलान करना…जो सुशील मोदी ने तीन ट्वीट के जरिए किया ….
सोशल प्रोफाइल से डिप्टी सीएम का पद हटा लेने के बाद किए गए इन ट्वीट्स में बिहार के एक कद्दावर नेता के दर्द और नाराजगी को महसूस किया जा सकता है। ट्वीटर पर सुशील मोदी के 21 लाख फोलोअर हैं, फेसबुक पर करीब तेरह लाख …फिर भी इनकी वाल पर इनके समर्थन का एक ट्वीट…एक कमेंट… आपको ढूंढने से नहीं मिलेगा। नीतीश से जनता की नाराजगी एक मिथक है, सुशील मोदी से नाराजगी हकीकत ।
सुशील मोदी से क्यों नाराज है बीजेपी ?
सुशील मोदी की नीतीश कुमार के साथ जबरदस्त ट्यूनिंग एक वक्त उनकी सबसे बड़ी ताकत थी…2017 में नीतीश के बीजेपी के साथ सरकार बनाने में ये ताकत काम भी आई, लेकिन बदले हालात में सुशील मोदी की यही ताकत उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई।
अब बीजेपी जय-बीरु वाली टीम नहीं चाहती। वो नीतीश कुमार को हर दिन ये एहसास दिलाना चाहती है कि एनडीए की इस सरकार में भले ही वो मुख्यमंत्री हैं, लेकिन ये सरकार नीतीश सरकार के तौर पर नहीं बिहार की बीजेपी सरकार के तौर पर जानी जाएगी। सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप और दबाव वाले इस नए रोल में सुशील मोदी फिट नहीं बैठते थे। पंद्रह साल से बीजेपी के सबसे कद्दावर शख्सियत के तौर पर सुशील मोदी की उपलब्धि यही रही है कि बीजेपी हमेशा जेडीयू की बी टीम नजर आती रही है।
दोगुने मैनडेट के साथ पार्टी नए कलेवर और नए तेवर के साथ आना चाहती है। बीजेपी सुशील मोदी को हटा कर और तारकेश्वर प्रसाद और रेणु देवी को सामने कर दो संदेश दे रही है
- बीजेपी नए चेहरों को मंत्रिमंडल में आगे ला कर ये संदेश दे रही है कि पार्टी कुछ खास नेताओं की जागीर नहीं है, समर्पित कार्यकर्ताओं को शीर्ष पद मिल सकता है
- नीतीश की ईबीसी समीकरण के समांतर बीजेपी पिछड़ों का नया समीकरण तैयार करना चाहती है।
सुशील मोदी के हटाए जाने और तारकेश्वर प्रसाद और रेणु देवी के आगे आने से बीजेपी के अंदर खलबली सी मच गई है।
परिवर्तन से नाराजगी
बीजेपी में कई नेता, खास कर पुराने कद्दावर नेता एकाएक हुए इन बदलावों से हतप्रभ हैं। तारकिशोर के डिप्टी सीएम बनने से नंद किशोर यादव के समर्थक आहत महसूस कर रहे हैं। डिप्टी सीएम की रेस में नित्यानंद राय भी आखिर तक शामिल थे। रेणु देवी के डिप्टी सीएम बनने से डॉ प्रेम कुमार के समर्थक आहत हैं। बीजेपी में अगड़ों का बोलबाला है। अमरेंद्र प्रताप सिंह और मंगल पांडे के समर्थक मात्र मंत्री पद से संतुष्ट नहीं हैं। उनकी दलील ये है कि नीतीश कुमार से लेकर उनके डिप्टी सीएम तक सभी पिछड़े समुदाय से हैं। इस बार जिस तरह अगड़ी जातियों ने बीजेपी का साथ दिया है, उसके मद्देनजर पार्टी को कम से कम एक डिप्टी सीएम अगड़ी जातियों से बनाना चाहिए था।
सुशील मोदी रिश्ते और संपर्क वाली पुरानी पीढ़ी की सियासत के नुमाउंदे थे। 2002 में संसदीय कार्यमंत्री बनने के चार साल बाद वो भागलपुर के सांसद बने, लोकसभा पहुंचे। लेकिन अगले साल इस्तीफा दिया, पहले एमएलसी और फिर डिप्टी सीएम बन गए। इसके बाद नीतीश कुमार की तरह चुनावी राजनीति से हट गए। 2012 और 2018 में फिर एमएलसी बन कर ही डिप्टी सीएम के पद पर काबिज रहे। नए दौर की नई राजनीति में बीजेपी पहली पंक्ति में ऐसे नेताओं को देखना चाहती है जो न सिर्फ खुद चुनाव जीत सकते हैं, बल्कि पार्टी को कुछ सीट अपने बदौलत जितवा भी सकते हैं। राजनीति में डिप्टी होने का सबसे बड़ा साइड इफेक्ट यही है कि जब पार्टी अपने शीर्ष पर आती है तब डिप्टी किनारे कर दिए जाते हैं – सुशील मोदी आज लाल कृष्ण आडवाणी की व्यथा बेहतर तौर पर समझ सकते हैं। राजनीति में एक ऐसा भी वक्त आता है जब बधाई स्वीकार करने की जगह, अब काम बधाई देना भर रह जाता है।
सुशील मोदी को लेकर ट्वीटर पर कई तरह के मीम्स और कमेंट वायरल हो रहे हैं