मुंबई के लिए चुनौती खत्म नहीं, शुरू हुई है
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मौसम विभाग को अभी और बेहतर होना है
IMD का अनुमान था कि साइक्लोन निसर्ग 12 बजे के करीब मुंबई में कहीं लैंडफॉल( समंदर से जमीन पर आएगा) करेगा, उस वक्त तूफान की गति 110-120किमी प्रति घंटा होगी। अब ये पता चला है कि रायगड के श्रीवर्धान में निसर्ग का लैंडफॉल हुआ तब वक्त था 12.30 बजे। करीब तीन घंटे तक यहां तूफान का तांडव हुआ। रायगड में मुरुड और श्रीवर्धान के तटीय इलाकों से लेकर पचास किलोमीटर अंदर तक बस्तियों में इसका असर हुआ। चार लोगों की मौत हो गई। इसके अलावा फसलों को भारी नुकसान की खबर है। हालात से निबटने के लिए NDRF की पांच टीमों को रायगड में लगाय गया है।
बीते दस साल में भारत सरकार खास कर मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज ने मौसम का अनुमान बेहतर करने के लिए रडार नेटवर्क, सैटेलाइट डाटा एनालिसिस, मानसून और साइक्लोन की ट्रेकिंग एंड ऑबजर्बेशन, क्लाउड मॉडलिंग पर बहुत निवेश किया है। इससे निसर्ग का असर काफी हद तक कम किया जा सका और हजारों लोगों की जिन्दगी बचाई जा सकी। लेकिन साइक्लोन के टाइम, लैंडफॉल लोकेशन, और विंड स्पीड प्रेडिक्शन को अभी और बेहतर किए जाने की संभावना और जरूरत है। अगर हम अनुमान बेहतर कर पाते, तो मुंबई में कोविड कंटेनमेंट जोन जैसे वरली, माहिम, कुरला और सायन की झुग्गियों से चालीस हजार लोगों को महफूज ठिकानों की ओर ले जाने की जगह शायद रायगड और अलीबाग में रेस्क्यू का काम कर पाते। रायगड में एनडीआरएफ की पांच टीम तूफान के जाने के बाद भेजी गई। इससे साफ है कि हमारी तैयारी आई ऑफ द स्टॉर्म में ही नहीं थी।
मुंबई को साइक्लोन के लिए तैयार करना होगा
सारी दुनिया में जितने भी अहम शहर समंदर के पास बसे हैं, उनमें मुंबई साइक्लोन के लिए सबसे कम तैयार है। अगर आप मुंबई जाएं तो गौर करेंगे कि समूचे शहर में समंदर के बिल्कुल किनारे सटी हुई यहां हाई राइज कालोनियां बसी हैं। साइक्लोन से बचने के नाम पर सारे शहर में ट्राइपोड्स -तीन मुंह वाले सीमेंट की भारी सी आकृति लगी है। हजारों साल में कुदरत ने यहां तूफान से बचने के लिए कई इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किए थे, अब उनकी जगह कंक्रीट की इमारतों ने ले ली है। अभी आप जहां साहिल के करीब हाई राइज बिल्डिंग्स देखते हैं, पहले वहां मैन्ग्रोव के जंगल थे, जिनमें समंदर के तूफान का सामना करने की अद्भुत ताकत होती है। इसके अलावा ओपन बीच थे जो समंदर से आए तूफान और ज्वार को साहिल से दूर ले जाते थे। अब बीच कम रह गए हैं, कहीं उनकी जगह हाईराइज बिल्डिंग्स आ गई हैं तो कहीं स्लम्स। यानी तूफान और इनसान के बीच मुंबई में अब कोई बफर नहीं रहा।
मुंबई के लिए चुनौती खत्म नहीं शुरू हुई है
साइक्लोन तो चला गया लेकिन मानसून का इम्तिहान अब शुरू होगा। कोरोना की वजह से बीएमसी का मार्च का बजट मई में पारित हुआ है। हर साल बीएमसी 140 करोड़ रुपये नालों की सफाई पर खर्च करती है और ये काम मई तक खत्म हो जाता है। इस साल ये अब तक शुरू भी नहीं हुआ है। बजट तो देर से पास हुआ ही, परेशानी ये भी है कि ज्यादातर सफाई कर्मी कंटेनमेंट जोन में रहते हैं। अब तक न नाले साफ हुए हैं, न पंपों से पानी की निकासी का काम हुआ है, न सैनिटाइजेशन का काम हुआ है। और ये सब कुछ होना है ऐसे वक्त में जबकि देश में कोरोना के एक तिहाई मामले अकेले मुंबई में हैं। हिन्द महासागर का औसत तापमान 27 डिग्री सेल्सियस रहता है जो साइक्लोन के लिए मुफीद माना जाता है। अरब सागर हो या बंगाल की खाड़ी, इनके पास बसे हमारे शहरों की चिंता में तूफान कभी शामिल नहीं रहा है।
ये किस्मत की बात है कि उत्तर भारत में कम दबाव का क्षेत्र बनने से साइक्लोन मुंबई से थोड़ा शिफ्ट हो गया। ये भी किस्मत की बात ही है कि इस बार भारी बारिश और समंदर में ज्वार एक साथ नहीं आए..जो मुंबई में अक्सर होता रहता है। लेकिन बात साइक्लोन का मुकाबला करने की हो तो समझदारी इसमें है कि किस्मत की जगह हम मौसम के मिजाज की बेहतर पुर्वानुमान की तैयारी पर दांव लगाएं।