जो भोपाल के दोषी, वही विशाखापट्टनम के कसूरवार
लोग सो रहे थे, जैसे तब हम सो रहे थे…और फिर चारों और चीख-पुकार मच गई…लोग बदहवास भाग रहे थे, मानो तूफान आ गया हो। मैंने देखा, लोग बेहोश हो रहे थे, हांफ रहे थे, उल्टियां कर रहे थे। उनकी आंखें जल रही थी। सब कुछ ठीक, वैसे ही जैसे 36साल पहले भोपाल में हुआ था…
( रशीदा बी, president of Bhopal Gas Affected Persons’ Women Stationery Workers’ Union– साभार- https://www.livemint.com/)
कहते हैं, इतिहास खुद को दोहराता है, हमारे यहां हादसे दोहराए भी जाते हैं और इतिहास भी बनते हैं। बस इनके बारे में कहीं पढ़ाया नहीं जाता। हम इन्हें याद भी नहीं रखते…सीखना…सबक लेना तो दूर की बात है।
क्यों हुआ हादसा?
विशाखापट्टनम – टैंक का तापमान 20 सेल्सियस से कम रहना चाहिए। तापमान कम रखने वाला फ्रीजिंग यूनिट काम नहीं कर रहा था। तापमान बढ़ गया। न्यूट्रलाइजर फेल हो गया। लिक्विड स्टीरिन, गैस बनकर चारों और फैल गई।
भोपाल- टैंक का तापमान 5 सेल्सियस तक रहना चाहिए। फ्रीजिंग यूनिट बिजली बिल बचाने के लिए बंद थी। तापमान 200 सेल्सियस पहुंच गया। टैंक नंबर 610 से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ।
दोनों घटनाएं देर रात हुई, जब करीब रहने वाले लोग गाढ़ी नींद में सो रहे थे।
कानून का डर किसे है ?
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जज दीपक गुप्ता का कहना है कि …
देश का लीगल सिस्टम अमीरों और ताकतवरों के पक्ष में हो गया है कोई अमीर सलाखों के पीछे होता है तो कानून अपना काम तेजी से करता है लेकिन, गरीबों के मुकदमों में देरी होती है। अमीर लोग तो जल्द सुनवाई के लिए उच्च अदालतों में पहुंच जाते हैं लेकिन, गरीब ऐसा नहीं कर पाते।
अब इसे भोपाल के संदर्भ में देखिए
26 साल की कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने दुनिया के इतिहास की सबसे बड़े इंडस्ट्रियल हादसे के जिम्मेदार यूनियन कारबाइड के 8 भारतीय अधिकारियों को दो साल कैद की सजा सुनाई। कंपनी के अमेरिकी चेयरमैन ने तो आरोप का सामना करने के लिए भारत आने तक से इनकार कर दिया।
विशाखापट्टनम में LG के प्लांट के बारे में अब तक जो जानकारी आई है, उसके मुताबिक कंपनी ने बीते 22 साल में environmental clearance तक लेने की जहमत नहीं उठाई। इतना ही नहीं, कंपनी ने फैक्ट्री का विस्तार किया, प्रोडक्ट मिक्स जो बताए थे, उनमें बदलाव कर दिए…क्या इसके लिए उसे सरकार में किसी से पूछना चाहिए था ?
बड़े देश में ऐसी ‘छोटी-छोटी घटनाएं’ तो होती रहती हैं!
बात साल या महीनों की छोड़ दें, सिर्फ गुरुवार को यानी जिस दिन विशाखापट्टनम में त्रासदी हुई, उसी दिन छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में एक पेपर मिल में गैस के रिसाव से सात मजदूर बीमार हो गए। महाराष्ट्र के नासिक और तमिलनाडु के नेवेल्ली से भी फैक्ट्री और पावर प्लांट में हादसे की खबर आई ।
अगले हादसे का इंतजार ?
जिस दिन लोग विशाखापट्टनम में जिंदगी की जंग लड़ रहे थे, उसी दिन यूपी में सरकार ने एक आर्डिनेंस जारी कर चार को छोड़ तकरीबन सारे लेबर कानून ही खत्म कर डाले। इनमें फैक्ट्रियों में काम की जगह पर सेफ्टी के मानक तय करने वाले कानून भी शामिल हैं।
रशीदा बी कहती हैं- हमने चाहे जो भी सबक सीखे हों, हमारी सरकार ने भोपाल से कुछ नहीं सीखा…जनता की जिन्दगी की आज भी कोई कीमत नहीं है।