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राम मंदिर से बड़ा फैसला, जिसके बारे में आप कुछ नहीं जानते

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राम मंदिर से बड़ा फैसला, जिसके बारे में आप कुछ नहीं जानते

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सरकार कुछ फैसले इस तरह लेती है जैसे महाजन किसान को ब्याज के फायदे समझाता है…जैसे हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन…कोरोना ठीक हो न हो, मलेरिया ठीक होने की गारंटी है, ये साइड इफेक्ट की बेनिफिट स्कीम फिर से लेकर आ गई है सरकार…बस ये है कि आपको अभी ये स्कीम बताई नहीं गई है

राममंदिर से ज्यादा बड़ा, कड़ा और विवादित फैसला देश में क्या हो सकता है? ये है सरकारी नौकरी में रिजर्वेशन की नीति।

क्या सरकारी नौकरी में रिजर्वेशन खत्म हो सकती है।

सवाल ये नहीं है कि क्या ऐसा होना चाहिए, ज्यादा जरूरी सवाल है कि क्या ऐसा हो रहा है?

जवाब है हां…खत्म हो रहा है रिजर्वेशन

इसे इस तरह समझिए कि  सरकार कुछ फैसले इस तरह भी लेती है जिसका वो ऐलान नहीं करती, लेकिन उस दिशा मे काम शुरू हो जाता है। सरकारी नौकरियां खत्म होने का बाई डिफॉल्ट मतलब है रिजर्वेशन का भी खत्म होना। ये कैसे हो रहा है इसे सिलसिलेवार तौर पर 6 खबरों के जरिए समझिए।

सपनों की सिलाई, तस्वीर -oleg oprisco

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14 फरवरी यानी वेलेंटाइन डे के दिन खबर आई कि BSNL के 1.53 लाख में से 78,569 और MTNL के 18 हजार में से 14,400 लोगों ने केंद्र सरकार का VRS कबूल कर लिया । यानी एक झटके में टेलीकॉम सेक्टर से 92,300 सरकारी नौकरियां खत्म हो गईं। जियो के आने से, टेलीकॉम सेक्टर में नौकरियां बढ़ी हैं, लेकिन सरकारी नौकरियां कम हो रही हैं। क्या इससे रिजर्वेशन पर फर्क पड़ा ?

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2019-20 में देश में महज 32,173 TMT हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ। बीते 18 साल में सबसे कम…क्या इससे आपको फर्क पड़ना चाहिए। देश में पेट्रोलियम सेक्टर में 12 PSU हैं। इनमें ONGC और Oil India जैसी upstream हैं तो IOC, BPCL and HPCL जैसी downstream यानी  oil refining और fuel marketing कंपनियां हैं। इन 12 को मिलाकर अब सिर्फ चार कंपनियां रहने वाली हैं। सरकार BPCL की 53% हिस्सेदारी बेचने जा रही है। IOC और OIL के मर्जर की योजना पर काम हो रहा है। ONGC जो अपने इतिहास में कभी कर्ज में नही रही, अब उसका कर्ज ऐसे स्तर पर पहुंच गया है जहां मूडीज को भी लगने लगा है कि ये कंपनी कूड़ा हो गई है। क्या इससे ये नहीं माना जाए कि पेट्रोलियम सेक्टर मे एक तरह से रिजर्वेशन खत्म हो रहा है।

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न्यूज एजेंसी रॉयटर के हवाले से जुलाई में आई खबर में बताया गया कि 27 से 12 करने के बाद अब सरकार PSU बैंकों की तादाद 4 करने पर विचार कर रही है।  जिन बैंकों के निजीकरण की बात कही गई, वो हैं-

  • बैंक ऑफ इंडिया
  • सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
  • इंडियन ओवरसीज बैंक
  • यूको बैंक
  • बैंक ऑफ महाराष्ट्र
  • पंजाब एंड सिंध बैंक 

क्या इससे बैंकों में नई और मौजूदा सरकारी नौकरियों पर फर्क पड़ेगा ?

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इससे पहले इस साल  मई में वित्तमंत्री ने 20 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर भारत पैकेज का पांच दिन में ऐलान किया था। बताया गया कि सभी सेक्टर निजी क्षेत्र के लिए खोले जाएंगे। स्ट्रेटजिक सेक्टर में पब्लिक सेक्टर की एक या अधिकतम चार कंपनियां रहेंगी, जबकि नॉन स्ट्रेटजिक सेक्टर अब पूरी तरह निजी क्षेत्र के हवाले होगा। मतलब ये कि कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद अब देश में पब्लिक सेक्टर यूनिट की कुल तादाद 18 और अधिकतम 72 होगी। अभी देश में कुल 277 पब्लिक सेक्टर यूनिट्स हैं। इनमें से 98 बेहद अहम हैं, जिन्हें महारत्न(10), नवरत्न(14) और मिनिरत्न(74) केटेगरी दी गई है। अब सरकार कम से कम 205 और अधिकतम 259 पब्लिक सेक्टर यूनिट्स बेचने का मन बना चुकी है।

लाखों लोगों को रोजगार देने वाली पब्लिक सेक्टर यूनिट्स के बिक जाने से क्या रिजर्वेशन पॉलिसी को नुकसान होगा ?

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मई में मिनरल्स, स्पेस और डिफेंस को निजी क्षेत्र के लिए खोलने का ऐलान किया था।  रक्षा क्षेत्र में स्वत: मंजूरी मार्ग से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 49 % से बढ़ाकर चौहत्तर%  किया गया। जबकि 50 कोल ब्लॉक और 500 माइनिंग ब्लॉक निजी सेक्टर के लिए खोले जाने का ऐलान हुआ। 12 एयरपोर्ट्स में भी निजी निवेश की इजाजत दी गई। केंद्र शासित प्रदेशों में पावर डिस्ट्रिब्यूशन का काम निजी कंपनियों के हाथों में देने का ऐलान हुआ। सोशल इंफ्रा जैसे स्कूल, अस्पताल में निजी निवेश को बढ़ावा देने का ऐलान किया गया।

सवाल है जहां सरकार नहीं होगी, वहां क्या रिजर्वेशन रहेगा ?

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28 जुलाई को वित्त मंत्री ने बताया कि 23 पीएसयू में विनिवेश के लिए कैबिनेट से मंजूरी मिल चुकी है। 

क्या इससे रिजर्वेशन पॉलिसी को नुकसान होगा ?

ये जानना और समझना आपके लिए इसलिए जरूरी है क्योंकि रिजर्वेशन एहसान नहीं है सरकार का फर्ज है, जिससे उन लोगों को हक मिलता है जो किसी दूसरे रास्ते से नहीं मिल सकता।

ये इसलिए भी अहम है क्योंकि सरकारी क्षेत्र में जितना रोजगार दूसरे देशों में मिलता है उसके मुकाबले हमारे देश में ये संख्या बहुत कम है। तुलना करें तो चीन में हमारे यहां के मुकाबले तीन गुना और अमेरिका में पांच गुना ज्यादा तादाद में सरकार लोगों को नौकरी देती है। नार्वे में तो ये तादाद दस गुनी ज्यादा है। इससे भी ज्यादा बुरी स्थिति ये है कि हमारे यहां जितने सरकारी पद हैं भी, उनमें भी बहुत सारे खाली रह जाते हैं।

2014 में केंद्र सरकार में 7.5 लाख और राज्य सरकारों में 38.8 लाख पद खाली थे। इससे भी ज्यादा चिंता की बात ये है कि जो पद सरकार में हैं भी, उनमें भी बहुत कटौती की जा रही है। साल 2011 से 2017 के बीच 2.2 लाख लोगों की नौकरियां छिन गई। इनमें सबसे ज्यादा नौकरियां अफसरों की नहीं छोटे पदों पर काम करने वालों की गई।

इतने के बाद भी जो नौकरियां बची रह गई हैं उनमें परमानेंट वर्कर की जगह कांट्रैक्ट वर्कर की तादाद बहुत तेजी से बढ़ रही है।

रेल हो या एविएशन, टेलीकॉम हो या डिफेंस, सरकार बहुत साहस के साथ निजी कंपनियों को बढ़ावा दे रही है। हमारे यहां अमेरिका की तरह प्राइवेट सेक्टर के लिए एफर्मेटिव एक्शन जैसी कोई पॉलिसी नहीं है।

अब आप ही तय कीजिए हमारी सरकार रिजर्वेशन के साथ है या खिलाफ ?

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