अंतरराष्ट्रीय फोरम में कश्मीर पंडितों के दर्द की गूंज, ICHRRF ने नरसंहार
नई दिल्ली – कश्मीर में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को 30 साल से ज्यादा हो गए हैं लेकिन आज भी इस जुल्मो सितम से निकला घाव हरा है. जिस अमानीवयता के साथ कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगाया गया और उनकी हत्या की गई, अब उसके दर्द को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ने भी स्वीकार कर लिया है. वाशिंगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म को नरसंहार माना है और इसमें शामिल दोषियों को सख्त सजा देने का आह्वान किया है. आईसीएचआर ने इसे कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार माना है और कहा है कि यह जातीय और सांस्कृतिक नरसंहार था.
रविवार को इस संबंध में आईसीएचआरआरएफ में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान 12 कश्मीरी पंडितों ने अपने उपर हुए अत्याचार को बयां किया. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने पीड़ित लोगों और हिंसा में बचे हुए लोगों की गवाही के बाद यह बयान दिया है. आईसीएचआरआरएफ दुनिया भर में मानव अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए काम करने वाला संगठन है. आईसीएचएचआर ने कहा कि कश्मीर में कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार जातीय और सांस्कृति नरसंहार था. यह मानवता के खिलाफ अपराध था. इसमें बचे लोगों की गरिमा सुनिश्चित करने के लिए अपराध करने वालों को सजा दिलान में मानवाधिकर संगठन तत्पर है. गौरतलब है कि कश्मीर से 1989-90 के दौरान हजारों कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में अपने ही घर से भागना पड़ा. वे 30 साल बाद भी अपने घर नहीं लौट पाए हैं.
आयोग ने अन्य मानवाधिकार संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय निकायों और सरकारों से इस पर कार्रवाई करने और आधिकारिक रूप से इसे नरसंहार के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया. आयोग ने कहा, दुनिया को कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों की कहानियों को सुनना चाहिए. इसके साथ ही उन्हें इन अत्याचारों के प्रति पूर्व में बरती गई निष्क्रियता पर गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करने की दरकार है ताकि इस नरसंहार को आधिकारिक रूप से लेने के लिए विवश किया जा सके.
The pain of Kashmir Pandits echoed in the international forum, ICHRRF genocide