वापसी और फिर शुरुआत, 40 साल बाद ! भारतीय हॉकी
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वर्ष २०२१। २०२० टोक्यो ओलम्पिक में पुरुष हॉकी के कांस्य पदक के लिए भारत और जर्मनी के बीच मैच बेहद रोमांचक स्थिति में पहुँच गया है। खाली स्टेडियम। स्कोर – भारत ५ , जर्मनी ४। खेल समाप्त होने में केवल ६ सेकण्ड शेष हैं। और तभी जर्मनी को मैच का १०वां पेनाल्टी कार्नर मिल गया। जर्मनी के पास स्कोर बराबर करने का मौका। लेकिन भारतीय गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने बेहतरीन बचाव करते हुए जर्मनी के इरादों को सफल नहीं होने दिया। एक लम्बा हूटर बजा और भारतीय खिलाडियों ने १३५ करोड़ हिन्दुस्तानियों के स्वप्नों को साकार कर दिया। जश्न शुरू हो चुका है, मैदान पर भी और टोक्यो से ६००० किलोमीटर दूर भारत में भी। ढोल, भांगड़ा, हाथों में मिठाइयां, सीने में गर्व और आँखों में ख़ुशी के आंसू …

यह जीत ऐतिहासिक है जो भारत में हॉकी के नए सुनहरे युग का श्रीगणेश करती है। टीम इंडिया ने ओलिंपिक में ४१ साल बाद कोई मेडल जीता है। भारत ने अंतिम बार १९८० के मॉस्को ओलिंपिक में गोल्ड जीता था। तब इस भारतीय टीम का कोई भी खिलाडी पैदा भी नहीं हुआ था। तब से एक पूरी पीढ़ी जवान हो गयी और इस पीढ़ी ने अभी तक हॉकी में भारत के जीत के किस्से ही सुने थे। आज सुबह-सुबह वह गौरवशाली क्षण भी आया जब इतने वर्षों के ख्वाब महज चंद लम्हों में सिमट गए। जीत की बाद खुशी इतनी विशेष थी कि भारतीय गोलकीपर तो गोल पोस्ट पर ही चढ़ गए मानो दुनिया को बता रहे हो कि यह किला हमने फतेह कर लिया है।
वर्ष २०१८। सहारा समूह ने कंपनी की खराब हालत के कारण भारतीय हाकी टीम से अपनी स्पॉन्सरशिप वापस ले ली। वैसे यह करार २०२१ तक का था। अब भारतीय हॉकी टीम (पुरुष और महिला) के सामने पैसे की समस्या उत्पन्न हो गयी। जब कोई भी कारपोरेट आगे नहीं आया, यहाँ तक कि केंद्र सरकार ने भी हॉकी की कोई सुध नहीं ली, तो फिर इस कहानी में एक हीरो की एंट्री होती है – नवीन पटनायक। दोनों हॉकी टीमों की प्रायोजक, उड़ीसा सरकार बन गई।बजट भी पहले से 3 गुना ज्यादा। यह इस देश में पहली बार हो रहा था कि राज्य सरकार एक राष्ट्रीय खेल की प्रायोजक कंपनी बनी हो। आम तौर पर राजनीतिक लोग इस देश में खेलों को उतनी प्राथमिकता नहीं देते हैं जितने कि “राजनैतिक खेला” को। केंद्रीय सरकार के खेलों के घटते बजट को देखकर यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।आज जब भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ४१ साल के पदक के सूखे को समाप्त कर देशवासियों को खुशी से झुमा दिया है और महिला हॉकी टीम भी पदक की दूरी को खत्म करने की दहलीज पर खड़ी है तो जश्न मनाते हुए एक मिनट रुक कर इस नए नायक “नवीन पटनायक” को भी सलूट करें और हाकी में फिर से जान फूंकने के लिए उड़ीसा सरकार को आभार व्यक्त करें क्योंकि इस खुशी में इनका भी हक है और बहुमूल्य योगदान।

भारतीयों का इस खेल से भावनात्मक लगाव रहा है, इसलिए इस पदक के अन्य पदकों के मुक़ाबले अलग ही मायने हैं। सही मायनों में इस सफलता ने देश को खुशी से सराबोर कर दिया है। दूसरे क्वार्टर की शुरुआत में दो गोल खा जाने से एक बार तो लगा कि भारत मुकाबले से बाहर होने जा रहा है। भारतीय टीम ने एक बार फिर दिखा दिया कि उनमें वापसी करने की क्षमता है। भारत ने दूसरे क्वार्टर के आख़िरी चार मिनट में खेल की दिशा को एकदम से बदल दिया और ३-३ की बराबरी करके यह दिखाया कि ४१ सालों बाद “पोडियम फिनिश” का उनका जज़्बा खत्म नहीं हुआ है। भारत ने दूसरे हाफ़ यानी तीसरे कवार्टर की बहुत ही आक्रामक अंदाज़ से शुरुआत की और जर्मनी के डिफ़ेंस को छितराकर उन्हें दवाब में ला दिया। भारत ने शुरुआत में ही दो गोल जमाकर ५-३ की बढ़त बना ली। खेल समाप्ति से साढ़े चार मिनट पहले जर्मनी टीम ने पैनिक बटन दबाकर अपने गोलकीपर स्टेडलर को बाहर बुलाकर सभी ११ खिलाड़ियों को हमलों में उतार दिया। खेल समाप्त होने से ढाई मिनट पहले भी जर्मनी को पेनल्टी कॉर्नर मिला पर भारतीय डिफ़ेंस की मुस्तैदी ने जर्मनी के स्वप्नों को ध्वस्त कर दिया। जर्मनी के खिलाफ एक वक्त भारतीय टीम १-३ से पीछे चल रही थी लेकिन सात मिनट में ४ गोल करते हुए भारतीय खिलाड़ियों ने मैच का रुख ही पलट दिया। आखिरी वक्त में श्रीजेश ने जबर्दस्त डिफेंड कर देशवासियों को जीत की भावनाओं में बहा दिया।
जीत के बाद कप्तान मनप्रीत सिंह कहा – “हम सारे जोश में थे”। जर्मनी को हराकर 41 साल बाद ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम के ऑस्ट्रेलियाई कोच ग्राहम रीड ने गुरुवार को कहा कि भारत में हॉकी के पुनरोद्धार का हिस्सा बनना उनके लिए सौभाग्य की बात है। बार्सिलोना ओलिंपिक १९९२ में रजत पदक जीतने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम का हिस्सा रहे रीड २०१९ में भारत के कोच बने थे। उन्होंने ओलिंपिक जैसे मंच पर अच्छे नतीजे के लिए प्रक्रिया और युवाओं पर विश्वास पर हमेशा जोर दिया। रीड ने कहा, “यह अद्भुत अहसास है। इस टीम ने इसके लिए कई बलिदान दिए हैं।” कोरोना काल में अपने परिवार से दूर रहने और कुछ खिलाड़ियों के कोरोना संक्रमित होने का भी हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “जहां ये खिलाड़ी पहुंचे हैं, वहां तक पहुंचने में काफी समय लगता है । कई बलिदान जिनके बारे में किसी को पता भी नहीं होता।” रीड ने कहा, “देश के साथ साथ यह टीम भी लंबे समय से पदक का इंतजार कर रही थी। मुझे पता है कि भारत के लिये हॉकी के क्या मायने हैं और इसका हिस्सा बनकर मैं बहुत खुश हूं।”

भारत के लिए महज ये जीत या मेडल की बात नहीं है, ये खेल हमारी भावनाओं का प्रतीक है। एक वक्त हॉकी में हम अजेय रहते थे लेकिन वो दौर बीतता चला गया। फिर हम जीत के लिए तरसने लगे। अभी भी कुछ लोग इस जीत को इतना महत्व देने के पक्ष में नहीं है। उन्हें हॉकी में स्वर्ण से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। यह उनके खेल के प्रति भावनात्मक लगाव हो सकता है लेकिन उन्हें यथार्थ के धरातल पर उतर कर सोचने की जरूरत है। यह जीत कितनी महत्वपूर्ण है इसको हम ऐसे समझ सकते हैं।१९२८ से १९५६ तक भारत ने लगातार छह स्वर्ण पदक जीतकर अपनी बादशाहत कायम की थी। फिर १९६० के इटली ओलंपिक में पाकिस्तान ने फाइनल में भारत को हराकर हमसे यह ताज छीन लिया। १९६४ के टोक्यो ओलंपिक में भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान को फाइनल में हराकर सातवीं बार हॉकी में स्वर्ण पर कब्जा किया। १९६८ मैक्सिको ओलंपिक में पाकिस्तान ने एक बार पुनः ऑस्ट्रेलिया को फाइनल में हराकर स्वर्ण पदक जीता और भारत को कांस्य से संतोष करना पड़ा। १९७२ के म्यूनिख ओलंपिक में पश्चिमी जर्मनी ने पाकिस्तान को हराकर स्वर्ण पदक जीता था। यहाँ खेल भावना ठेस पहुँचाने वाली अजीब घटना घटी। पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने रजत पदक पहनने से इनकार कर दिया और जब पश्चिमी जर्मनी का राष्ट्रीय गान बज रहा था तो सारे खिलाड़ी पीठ करके खड़े हो गए थे। इस बार भी भारत को कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा था। यह भारत का आखिरी बार ओलंपिक में हॉकी में संतोषजनक प्रदर्शन था।१९७६ के मांट्रियल (कनाडा) ओलंपिक में पहली बार न्यूजीलैंड ने फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराकर स्वर्ण और पाकिस्तान ने कांस्य पदक जीता था।भारत इस वर्ष सातवें स्थान पर रहा था। १९८० के मास्को ओलंपिक में भारत ने स्पेन को हराकर आठवीं बार स्वर्ण पदक जीता जरूर था लेकिन गृह युद्ध के कारण केवल 5 टीमों ने ही ओलंपिक में भाग लिया था और ये कमजोर टीमें मानी जाती थी। तो १९८० के ४१ साल बाद भारत को पुरुष हॉकी में कोई पदक मिला है। इस बीच भारतीय पुरुष हॉकी इतने दयनीय हो गई थी कि २००८ के बीजिंग ओलंपिक में भारत ओलंपिक के लिए क्वालीफाई तक नहीं कर सका था और लंदन के २०१२ ओलंपिक में अंतिम स्थान तक खिसक गया था। वैसे तो हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है लेकिन ना तो इसे प्रायोजक मिलते हैं और ना ही भारतीय दर्शकों का साथ। हम ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने ओलंपिक के अलावा भारत के हॉकी मैच देखते होंगे। कितने लोगों को याद है कि उन्होंने आखिरी बार हॉकी के किसी अंतरराष्ट्रीय मैच को देखा था? क्या हम क्रिकेट, बैडमिंटन और टेनिस की तरह हॉकी के खिलाड़ियों के नाम जानते हैं या जब ओलंपिक नहीं हो रहा होता है तब 4 साल यह खिलाड़ी या टीम क्या कर रहे होते हैं, हम में से कितने लोगों को पता होता है? जिस देश में खेल अभी भी “एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज” में ही आता हो वहां ओलंपिक में हॉकी में क्या किसी भी खेल में स्वर्ण पदक की उम्मीद करना ही बेमानी है।

टीम के सभी खिलाड़ियों, स्टाफ, कोच, उड़ीसा सरकार और हॉकी टीम से जुड़े सभी को, हॉकी खेलप्रेमियों को, देशवासियों को इस यादगार जीत की हार्दिक बधाई। स्वर्णिम उम्मीद का जो सूर्य उदित हुआ है वो अगले ओलंपिक में मेडल का रंग भी बदले। महिला हॉकी टीम को भी कल के लिये शुभकामनाएं कि वो शानदार जीत दर्ज करें। एक पदक और भारत की झोली में डालकर भारतीय हॉकी इतिहास में हीरे की तरह चमकती रहें।