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एक जंग जिसे हम हर दिन चीन से हार रहे हैं…और खुश हैं!

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एक जंग जिसे हम हर दिन चीन से हार रहे हैं…और खुश हैं!

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हमें लगता है कि हम भी रेस में हैं….

15 जून को गलवान में चीनी सेना के साथ हुए झड़प से अवाम में इतना आक्रोश है, कि बात चीनी सामान के बहिष्कार तक आ गई, लेकिन एक जंग है, जो चीन हमसे 15 साल से लड़ रहा है और हम इस जंग को साल दर साल खुशी से हार रहे हैं- ये है ट्रेड वार।

भारत चीन व्यापार

सालभारत का चीन को निर्यात $ Bnभारत का चीन से आयात $ Bn व्यापार घाटा
201416.4154.2437.83
201513.3958.2644.87
201611.7559.4347.68
201716.3468.151.76
201818.8376.8758.04
2019 जनवरी-नवंबर16.326851.68
स्रोत:General Administration of Customs, China

स्रोत:- https://www.eoibeijing.gov.in/economic-and-trade-relation.php

इस आंकड़े को गौर से देखिए..चीन को हमारा निर्यात वहीं है, जहां 2014 में था, जबकि आयात 80 बिलियन डॉलर के करीब और हमारा व्यापार घाटा 60 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच चुका है।

Indian ExportsIndian Import
Organic Chemicals;
Ores, Slag and Ash;
Natural Pearls, Precious stones and Precious metals;
Cotton, Including Yarns and Woven
Fabrics thereof;
Fish and Crustaceans, Molluscs and Other Aquatic Invertebrates
Electric Machinery, Sound Equipment, Television Equipment and parts thereof;
Nuclear Reactors, Boilers, Machinery and Mechanical Appliances and Parts;
Organic Chemicals;
Plastics and articles thereof;
Articles of Iron and Steel
स्रोत: General Administration of Customs, China

चीन के साथ हमारा व्यापार कुछ वैसा ही है  जैसा ब्रिटिश शासन काल में भारत और ब्रिटेन के बीच था। हम कच्चा माल चीन को बेचते हैं और चीन से तैयार सामान खरीदते हैं।

और हां..अगर आप गौर से देखिए तो दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव के बावजूद हम न्यूक्लियर रिएक्टर तक चीन से खरीद रहे हैं।

टोटल ट्रेड वोल्यूम के नजरिए से हमारे लिए चीन नंबर वन व्यापारिक साझीदार है और चीन के लिए हमारा स्थान है 18वां।

स्रोत:- https://tradingeconomics.com/china/exports-to-india

चीन के लिए व्यापार… जंग का दूसरा मोर्चा है। दुनिया के बाकी देश व्यापार को व्यापार की तरह लेते हैं चीन व्यापार को युद्ध की तरह लेता है…उसकी वाणिज्य नीति उसकी युद्धनीति का एक हिस्सा भर है।

इसे इस तरह समझिए कि अगर हम चीन के खिलाफ सख्त व्यापार नीति अपनाते हैं तो चीन में मौजूद भारतीय कंपनियां ही हमारे सरकार के पास इसके खिलाफ लाबिइंग करने पहुंच जाएंगी। अब ये जान लीजिए कि ये कंपनियां हैं कौन ?

Reliance Industries, SUNDARAM Fasteners, Mahindra & Mahindra, TATA Sons, Binani Cements Dr. Reddy’s Laboratories, Aurobindo Pharma, Matrix Pharma, NIIT, Bharat Forge, Infosys, TCS, APTECH, Wipro, Mahindra Satyam, Dr. Reddy’s, Essel Packaging, Suzlon Energy

चीन किस तरह व्यापार को युद्ध की तरह देखता है, इसे मोबाइल की मिसाल से समझते हैं

सिर्फ पांच साल पहले तक हमारे देश में मोबाइल की कई नामचीन कंपनियां थीं। इनमें Micromax और karbonn काफी मशहूर थीं। फिर celkon ने विराट कोहली को ब्रांड अंबेसडर बनाया और lava ने धोनी को। इनके अलावा  intex थी जिसके पास IPL में गुजरात लायन्स की फ्रेंचाइजी थी। मुकेश अंबानी की  lyf के अलावा creo,  iball, onida, spice, Videocon  और zolo थी। इस दौरान यानी 2011 से 2017 तक कोरिया की सैमसंग हमारे यहां की सबसे बड़ी स्मार्टफोन मेकर थी। लेकिन तीन साल पहले 2017 के आखिरी तिमाही में हालात पूरी तरह बदल गए। तीसरी तिमाही में चीन की कंपनियां बहुत आक्रामक तरीके से भारत के मोबाइल बाजार में आईं और महज तीन महीने में उन्होंने भारत के मोबाइल बाजार पर दबदबा बना लिया।

असली कहानी ये है कि चीन ने ये किया कैसे ?

कोरियाई सैमसंग और फिनलैंड की नोकिया को भारत के बाजार से बाहर करने के लिए चीन की सरकार ने रणनीति के तहत BBK को भारी सबसिडी दी। BBK ग्रुप ने कई नाम से मौजूद अपनी अलग-अलग फैक्ट्रियों के जरिए माइक्रोमैक्स और कार्बन जैसी कंपनियों को बहुत सस्ती मोबाइल बेची। सिर्फ  चार साल में यानी 2014 आते-आते माइक्रोमैक्स दुनिया की टॉप 10 मोबाइल कंपनी में जगह बना चुकी थी। 2016 में माइक्रोमैक्स का रिवेन्यू 10 हजार करोड़ पार कर गया था, लेकिन 2017 में चीनी कंपनियों के आने के बाद 2018 में माइक्रोमैक्स का टर्नओवर महज ₹104 करोड़ रह गया।

चीन की सरकार ने BBK को टैक्स ब्रेक दिया, सबसिडी दी। इसके अलावा तिब्बत और सिनजियांग की जेल में मौजूद कैदियों से मुफ्त में मोबाइल बनाने की इजाजत भी दी। भारत सरकार ये नहीं जानती थी कि चीन में कम से कम दस मोबाइल कंपनियां थीं जिनके पास हर साल एक करोड़ से ज्यादा मोबाइल बनाने की क्षमता थी और चीन की सरकार इस क्षमता को युद्ध के औजार की तरह फिनलैंड, कोरिया और जापानी मोबाइल कंपनियों का बाजार तबाह करने के लिए इस्तेमाल कर रही थी।

2017 से 2019 के बीच भारत के मोबाइल बाजार के 70% पर चीन की सिर्फ एक कंपनी BBK ने कब्जा कर लिया और हममें से ज्यादातर लोग ये जानते तक नहीं कि Vivo, Oppo और Realme दरअसल सिर्फ एक कंपनी BBK की सबसिडियरी कंपनियां हैं। अगर दूसरी चीनी कंपनी Xiaomi की बात करें तो ये आज भारत की नंबर वन मोबाइल कंपनी है जिसका 28% मोबाइल बाजार पर कब्जा है।

आज मोबाइल में चीन के पास अपना बाजार तो है ही, भारत के तौर पर दुनिया में मोबाइल का दूसरा सबसे बड़ा बाजार (15.25 करोड़ हैंड सेट- 2019 ) भी उसी के पास है। जिस दिन गलवान में बिहार रेजीमेंट के सैनिक देश की खातिर शहादत दे रहे थे, उसी दिन अमेजन पर OnePlus 8 Pro की सेल मिनटों में खत्म हो गई।

चीन को पता है भारत का कंज्यूमर इतना प्राइस सेन्सिटिव है कि उसे ये परवाह ही नहीं है कि ये प्रोडक्ट किस देश में बना है?

और बात सिर्फ मोबाइल की नहीं है, आम नागरिक की भी नहीं है जिसे बहुत चीजों की जानकारी नहीं होती। फार्मा सेक्टर में चीन के युद्ध से ये बात और साफ हो जाएगी।

हम अपनी जरूरत का 65% से ज्यादा bulk drugs और intermediates चीन से खरीदते हैं। हमारे पास तकनीक है, कैपिसिटी है, लेकिन वो प्राइस सपोर्ट नहीं है जो चीन की सरकार अपनी API (Active Pharmaceutical Ingredient) बनाने वाली कंपनियों को देती है। नतीजा ये है कि हमारी दवा कंपनियों ने ibuprofen, paracetamol, metronidazole जैसे बेसिक ड्रग्स भी बनाने छोड़ दिए हैं और इन्हें सीधा चीन से इम्पोर्ट किया जा रहा है। हाल तक Hindustan Antibiotics और  Torrent जैसी पचासों कंपनियां देश में Penicilin G बना रही थीं।  फिर चीन की सरकार ने रणनीति के तहत अपनी कंपनियों को टैक्स में रियायत और इंपोर्ट करने वाली भारतीय कंपनियों को 6 महीने तक क्रेडिट देने की पॉलिसी शुरू कर दी । नतीजा ये हुआ कि चीनी कंपनियों ने Penicilin G की बहुत बड़ी मात्रा भारत में डंप कर दी। हार कर भारतीय कंपनियों ने Penicilin G का निर्माण करना ही छोड़ दिया। ठीक ऐसा ही citric acid में हुआ, जहां एक्सपोर्टर भारत अब अपनी जरूरत का एक लाख टन भी सारा का सारा चीन से इम्पोर्ट कर रहा है।

चीन की सरकार किस तरह से भारत के बाजार को युद्ध के एक मोर्चे के तौर पर देखती है इसे टायर के बाजार की मिसाल से समझिए

कुछ साल पहले तक टायर का मतलब था मेड इन चाइना। हमारे यहां, टायर बाजार के 90% पर चीन का कब्जा था। फिर सरकार को चिंता हुई, चीन से आने वाले टायर पर एंटी डंपिंग ड्यूटी में इस तरह इजाफा किया गया ताकि चीन के टायर भारत के बाजार से बाहर हो जाएं। यही हुआ भी, महज दो साल में टायर बाजार में चीन की हिस्सेदारी 90% से घटकर 15% पर आ गई। लेकिन असली कहानी इसके बाद शुरू होती है। DGFT की जांच से पता चला कि अब थाइलैंड बन गया है नया चीन। दरअसल हमारी सरकार के एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाने से पहले ही चीन की सरकार ने इसका इंतजाम कर लिया था। भारत में एक्सपोर्ट के लिए चीन की बहुत सारी कंपनियों ने थाइलैंड में फैक्ट्री लगाई। आज हमारे देश के 80% टायर बाजार पर थाइलैंड का कब्जा है, लेकिन दरअसल वो कंपनियां चीन की ही हैं। चीन ने सोच रखा है कि आप आगे थाइलैंड के टायर पर ड्यूटी लगा सकते हैं। अब वो वियतनाम को थाइलैंड  से रिप्लेस कर रहा है। वियतनाम के बाद अगला नंबर होगा मलेशिया का। आप आज की सोच रहे हैं, चीन दस साल आगे की सोच रहा है। ये युद्ध नहीं है तो और क्या है?

चीन इतना चतुर है कि वो हमारे सपने भी हमसे छीन लेना चाहता है। बीते पांच साल में सरकार ने सोलर पावर पर काफी जोर दिया है। नतीजा ये हुआ है कि दुनिया में सबसे सस्ती सौर ऊर्जा हमारे देश में तैयार होती है। 2019 में सोलर पावर के 80%बाजार पर चीनी कंपनियों का कब्जा था। भारत सरकार ने सरकारी सोलर पॉवर प्रोजेक्ट में चीनी कंपनियों के हिस्सा लेने पर रोक लगा दी। इसके बाद चीन की सबसे बड़ी सोलर पैनल कंपनी LONGi भारत में फैक्ट्री लगाने पहुंच गई।

आइए कार की बात करते हैं

हमारे यहां टाटा और महिन्द्रा जैसी शानदार कार कंपनियां हैं, कोरियाई ह्यूंडे, जापानी टोयोटा, अमेरिकी फोर्ड और मलेशियाई किया  ने इस बाजार में अपनी पहचान बनाई है। लेकिन अब इनसे मुकाबला करने आ रही हैं चीन की 6 टॉप कार कंपनियां। क्या टाटा और महिन्द्रा ग्रेट वाल और SAIC के सामने टिक पाएंगी, ये एक बड़ा सवाल है।

और नहीं ‘बस’!

कार बाजार में तो उम्मीद है कि भारतीय कंपनियां दो से पांच साल तक और टिक सकती हैं, लेकिन अगर बात बस की की जाए…टाटा मोटर्स और अशोक लेलेन्ड की की जाए तो आपको शायद पता भी नहीं, लेकिन हमने अपना बस का बाजार पूरी तरह चीन के हवाले कर दिया है।  पिछले साल हिमाचल सरकार ने इलेक्ट्रिक बस का आर्डर दिया तो उसे हासिल किया चीनी कंपनी BYD ने। इसी कंपनी को मुंबई की Brihanmumbai Electric Supply and Transport (BEST) का करार भी मिल गया। तब अशोक लेलेन्ड के चेयरमैन ने कहा था –

इस ठेके में छह भारतीय कंपनियां शामिल थीं। सबसे कम  बोली हमारी थी। ठेका मिला सातवीं कंपनी को…. जो चीनी थी ..उनकी बोली हमारी बोली की आधी थी। हम उनसे मुकाबला नहीं कर सकते थे।

हरियाणा की PMI Electro Mobility Solutions को अब तक देश में एक हजार इलेक्ट्रिक बसों का आर्डर मिल चुका है। इस कंपनी का चीन की कंपनी Beiqi Foton से करार है। गुरुग्राम की कंपनी Mozev को Maharashtra State Road Transport Corporation से  मुंबई पुणे लक्जरी इलेक्ट्रिक बस का बड़ा करार मिला है। Mozev चीन से बस की चेसिस से लेकर powertrain तक इंपोर्ट करती है।

1988 में राजीव गांधी की चीन यात्रा के बाद बने पहले JEG joint economic group की 11 बैठकों  से लेकर 2010 में चीनी प्रीमियर वेन जियाबाओ के भारत दौरे से शुरू हुए SED Strategic economic dialogue की 6 बैठकों , मई 2015 में नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के समय नीति आयोग और चीन के DRC -Development Research Center of China की नवंबर 2019 में वुहान में पांचवीं बैठक तक का इस्तेमाल चीन ने अपनी कंपनियों की भारत में पहुंच बनाने में मदद करने के लिए किया है, जबकि सॉफ्टवेयर और फार्मा में भारत दुनिया के बाजार का लीडर होने के बावजूद चीन के बाजार में जगह बनाने में कामयाब नहीं हुआ है।

हम इसे व्यापार कहते हैं, चीन के लिए ये जंग है।

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