क्या ऐसे बदलेगी बिहार की तस्वीर?
देश के किसी भी प्रदेश में चुनाव हो तो नतीजों पर धनबल और बाहुबल का असर जरुर दिखता है। लेकिन जब बिहार (Bihar) की बात होती है, तो इस मामले में ये पिछड़ा प्रदेश सबसे आगे दिखने लगता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और इलेक्शन वॉच ने मंगलवार को एक ऑनलाइन प्रेस कांफ्रेंस की और बिहार (Bihar) में पहले फेज में होने वाले मतदान के लिए उम्मीदवारों से जुड़ी अपनी रिपोर्ट पेश की।
क्या कहती है ADR की रिपोर्ट?
- किसी भी पार्टी ने आपराधिक मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ध्यान में नहीं रखा।
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत सभी पार्टियों को क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों का ब्यौरा देना था। लेकिन इस आदेश का सही तरीके से पालन नहीं किया गया।
- पहले फेज में RJD के 41 में से 22, लोजपा के 41 में से 20 , भाजपा के 29 में 13, कांग्रेस के 21 में 9, जदयू के 35 में 10 और बसपा के 26 में से 5 उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
- इस चरण में 1064 में 328 उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये हैं।
- बिहार चुनाव के पहले फेज में 21 उम्मीदवारों ने अपने ऊपर हत्या के प्रयास से संबंधित मामला होना स्वीकार किया है।
- वहीं 29 उम्मीदवारों पर महिला से अत्याचार करने का और 3 उम्मीदवारों पर बलात्कार का आरोप है।
- पहले फेज में कुल 240 में 136 उम्मीदवार दागी छवि के पाए गए हैं।
- 71 विधानसभा क्षेत्रों में 61 सीटों पर 3 या 3 से अधिक उम्मीदवार दागी छवि के हैं।
- उम्मीदवारों में से 43 फीसदी ने अपनी शैक्षणिक योग्यता पांचवीं से 12वीं तक और 49 फीसदी ने ग्रेजुएट बताई है।
- पहले चरण में कुल प्रत्याशियों में सिर्फ 11 फीसदी महिला प्रत्याशी हैं।
- प्रत्याशियों द्वारा गलत हलफनामे देने के मामलों में भी चुनाव आयोग ने केवल गिने चुने केस में कार्रवाई की।
Bihar में धनबल का भी बोलबाला
बिहार (Bihar) चुनाव में बाहुबली ही नहीं, धनबली भी छाये हुए हैं। सभी पार्टियों ने ज्यादा से ज्यादा करोड़पति उम्मीदवारों को टिकट दिया है। राजद के 95% उम्मीदवार करोड़पति हैं, तो जदयू के 89%। बीजेपी के उम्मीवारों में 83% करोड़पति हैं तो लोजपा के 73%, कांग्रेस के 67% और बसपा के 46% उम्मीदवार करोड़पति हैं। जाहिर है, पार्टियों की भी कुछ मजबूरी रही होगी, तभी इन धनबलियों को टिकट दिया होगा। वहीं इनके जीतने की संभावना को भी ध्यान में रखा होगा। ऐसे में साफ लगता है कि बिहार में सभी पार्टियों की आम धारणा यही है कि बिना पैसे के चुनाव लड़ना मुश्किल है, और जीतना तो लगभग असंभव।
अपराधियों को पार्टियां क्यूं देती हैं टिकट?
दरअसल चुनावों में अपराध और जीत का सीधा कनेक्शन है। चुनावी राजनीति पर नज़र रखने वाली संस्था एडीआर (ADR) और बिहार (Bihar) इलेक्शन वॉच ने हाल ही में पिछले 15 सालों (2005 से अब तक) में हुए चुनाव के आधार पर एक रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में साफ छवि वाले उम्मीदवारों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है, जबकि दागी और बाहुबलियों की जीत का प्रतिशत काफी अच्छा रहा है। 2005 से अब तक चुनाव लड़नेवाले उम्मीदवारों के विश्लेषण के आधार पर बिहार में आपराधिक मामलों के आरोपी उम्मीदवारों के जीतने की संभावना 15 प्रतिशत होती है, जबकि साफ छवि वालों की सिर्फ पांच प्रतिशत। वहीं अगर उम्मीदवार दागी होने के साथ अमीर भी है, तो उनकी जीत की संभावना और ज्यादा हो जाती है।
दागियों की जीत का रिकॉर्ड बेहतर
रिपोर्ट के मुताबिक, 2005 के बाद से अब तक बिहार (Bihar) में 10,785 उम्मीदवारों ने लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ा, इनमें 30 प्रतिशत के खिलाफ क्रिमिनल रिकॉर्ड थे। इनमें से 20 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ तो हत्या, हत्या की कोशिश, रेप, किडनैपिंग, धन-उगाही जैसे गंभीर मामले दर्ज थे। जीत हासिल करने वाले 820 सांसद और विधायकों के विश्लेषण में पता चला है कि इनमें 57 प्रतिशत पर आपराधिक मामले थे, जिसमें से 36 प्रतिशत पर काफी गंभीर किस्म के आरोप लगे थे। वहीं इनमें से कई दाग़ी उम्मीदवार काफी पढ़े-लिखे भी थे, यानी यहां अपराध का शिक्षा-दीक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। कुल मिलाकर बिहार में स्थिति ये है कि जो जितना बड़ा बदमाश, उसके जीतने की गुंजाइश उतनी ही अधिक!!
जीत के बाद खर्चे की पूरी वसूली
विश्लेषण में यह भी पता चला कि जीत के बाद दागी उम्मीदवारों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई। 2005 से अब तक बिहार (Bihar) में उम्मीदवार…औसतन 1.09 करोड़ रुपये संपत्ति के मालिक थे। लेकिन जीत के बाद यह आंकड़ा औसतन 2.25 करोड़ रुपये हो गई। यानी जनता को कुछ मिले ना मिले, नेताजी के लिए सत्ता के साथ-साथ कमाई के सारे रास्ते खुल जाते हैं।
बिहार (Bihar) चुनाव में इस बार भी बाहुबलियों और धनबलियों का ही बोलबाला है। विधानसभा चुनाव के पहले चरण का बात करें, तो 71 विधानसभा क्षेत्रों में से 61 विधानसभा क्षेत्रों को रेड एलर्ट श्रेणी में रखा गया है। यानी ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां राजनीतिक दलों ने 3 या उससे ज्यादा आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवार को टिकट दिया है। यानी पहले चरण में 86 फ़ीसदी सीटें रेड अलर्ट क्षेत्र में आती हैं। आपको बता दें कि अब तक कभी किसी चुनाव में 50 फ़ीसदी से ऊपर रेड अलर्ट वाले चुनाव क्षेत्र (constituency) रजिस्टर नहीं हुए थे। अब ये गर्व की बात है या चिंता की???