इसमें बड़ी बात क्या है?
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ये खबर छोटी सी है, लेकिन असर में बहुत बड़ी है। किसी की मदद करना कौन सी बड़ी बात है, लेकिन मुफलिसी में दरियादिली दिखाना बड़ी बात है। और शायद इसलिए बिहार के एक छोटे से गांव की कहानी हर जगह छाई हुई है।
30 मई को एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन, बेगूसराय के पास लखमिनियां रेलवे स्टेशन के आउटर सिग्नल पर रुकी। इस ट्रेन में उत्तर-पूर्वी राज्यों को लौट रहे प्रवासी मजदूर सवार थे। ट्रेन के रुकते ही हुसैनीचक गांव के लोग खाना और पानी लेकर ट्रेन की तरफ दौड़ पड़े। सभी यात्रियों को बड़े प्यार से खाने का पैकेट और पानी दिया गया। भूखे-प्यासे प्रवासी मजदूरों और उनके परिवारों के लिए ये बड़ी राहत की बात थी। मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने जब इसका वीडियो देखा, तो उन्होंने इस वीडियो को ट्वीट किया और बिहार के लोगों की जमकर तारीफ की।
कैसे हुई शुरुआत?
इसकी शुरुआत भी लोगों की दरियादिली से ही हुई। करीब एक हफ्ते पहले, रात के वक्त जब एक ट्रेन इसी जगह रुकी तो कुछ महिला-पुरुष ट्रेन से उतर कर रेलवे लाइन के बगल में रहनेवाले मोहम्मद मुमताज के घर के पास पहुंचे और चापाकल से पानी पीने लगे। इनमें से कुछ महिलाओं ने घर के दरवाजे खटखटा कर भूखे बच्चों के लिए दूध और खाना मांगा। उनकी हालत देखकर मोहम्मद मुमताज की पत्नी का दिल पसीज गया और उन्होंने फौरन घर से बाहर निकलकर बच्चों के लिए दूध-भोजन और नाश्ते का इंतजाम किया।
घटना की जानकारी मिलने पर गांववालों ने तय किया कि इस इलाके से जब भी श्रमिक स्पेशल ट्रेन गुजरेगी, तो वो ट्रेन में सवार प्रवासियों को खाना-पीना देंगे, ताकि उनको सफर में कम से कम भूख-प्यास की परेशानी ना हो। फौरन गांव में एक सोसायटी बन गई और अब रोजाना दर्जनों युवक और बुजुर्ग, चिलचिलाती धूप में भी ट्रेन के आने का इंतजार करते हैं और ट्रेन के रुकते ही सवारियों को भोजन-पानी-फल-दूध आदि देते हैं।
नेक काम को मिली तारीफ
वैसे तो थोड़ी-बहुत मदद की भी तारीफ हो ही जाती है, लेकिन जब ये तारीफ किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री की ओर से आये तो इसका वजन कुछ ज्यादा होता है। मिजोरम के मुख्यमंत्री के द्वीट के बाद, बेगूसराय के इस गांव के लोगों की दरियादिली की हर तरफ चर्चा हो रही है। बिहार सरकार और बेगूसराय के डीएम ने भी इन ग्रामीणों के जज्बे की तारीफ की है और उन्हें बधाई दी है।
इसमें खबर क्या है?
खबर ये नहीं है कि कुछ लोगों ने ट्रेन में सवार लोगों को खाने के पैकेट दिए। बल्कि खबर ये है कि इस गांव के लोग मुस्लिम हैं। खबर ये है कि इन्होंने मदद करने से पहले किसी की उसकी जाति या धर्म नहीं पूछा। खबर ये है कि ये खुद भी गरीब हैं, लेकिन मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करने में पूरे जोशो-खरोश से जुटे हैं। खबर ये है कि ये लोग बिहारी हैं लेकिन नार्थ-ईस्ट के लोगों को भी हिन्दुस्तानी मानते हैं, अपना मानते हैं, इंसान मानते हैं।
खबर ये भी है कि हर बिहारी मजदूर नहीं होता, हर बिहारी गरीब-भिखमंगा नहीं होता, हर बिहारी बेईमान नहीं होता। खबर ये भी है हर मुस्लिम कोरोना का कैरियर नहीं होता, हर मुस्लिम तबलिगी नहीं होता, हर मुस्लिम दंगाई या पत्थरबाज नहीं होता। और सबसे बड़ी खबर ये है कि इंसानियत किसी धर्म, जाति या वर्ग की बपौती नहीं होती।