हम आप के लिए पीते हैं…आपके लिए पिलाते हैं!
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सोमवार को लॉकडाउन में ढील के बाद आपने शराब को लेकर लोगों की दीवानगी की खबरें देखी होंगी। खास बात ये है कि शराबियों का दावा है कि हम अपने लिए नहीं, देश के लिए पीते हैं, क्योंकि हमारी वजह से देश की अर्थव्यवस्था चलती है। ये बात हंसी-मजाक की नहीं, इसमें कुछ सच्चाई भी है। खुद राज्य सरकारें इसी तरह का तर्क देती हैं। इनका कहना है कि हम तो चाहते हैं कि कोई शराब ना पीए, लेकिन शराब की बिक्री से ही सबसे ज्यादा आमदनी होती है, जनहित की योजनाएं चलती हैं। इसलिए मजबूरन हमें दुकानें खोलने पड़ती हैं, लाइसेंस देना पड़ता है। यानी जनहित में, जनता के लिए अहितकर कदम उठाने को मजबूर है सरकारें।
उधर, देश में लोगों को शराब की ऐसी लत है कि करीब 40 दिनों के बाद जब कुछ राज्यों में शराब की दुकानें खुलीं, तो लोगों की लंबी-लंबी कतारें लग गईं। दिल्ली में तो भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा। शराब दुकानों पर भीड़ को संभालने के लिए डीएसपी स्तर के अधिकारियों की तैनाती करनी पड़ी। नैनीताल में आंधी-पानी और ओलों की बारिश के बीच भी लोग शांति से लाइन में खड़े रहे। इनका शराब को लेकर समर्पण ऐसा है कि राज्य सरकार ने 70 फीसदी तक टैक्स बढ़ा दिए, तब भी ना तो किसी ने विरोध किया और ना ही लाइनें छोटी हुई। आखिर ये शराब है क्या चीज? क्या वजह है कि शराबी ही नहीं, सरकारें भी इसके पक्ष में हैं?

इससे पहले एक बार नीचे दिए गये आंकड़ों का तरफ ध्यान दीजिए। गौर करनेवाली बात ये है कि जिस तरह शराब खरीदने के लिए लोग तमाम तरह के दांव-पेंच लगा रहे हैं, मशक्कत कर रहे हैं, उसी तरह सरकारें भी इन्हें लूटने-खसोटने के तमाम उपाय कर रही हैं। लोग कोरोना के बहाने पी रहे हैं, और सरकारें कोरोना के नाम पर ज्यादा से ज्यादा वसूली कर रही हैं।
डिमांड और वसूली का खेल?
- उत्तर प्रदेश में सोमवार को शराब की दुकानों के खुलते ही एक दिन में 300 करोड़ से ज्यादा शराब की बिक्री हुई।
- कर्नाटक सरकार ने सिर्फ एक दिन में शराब की बिक्री से 45 करोड़ रुपये कमाए, वहीं आंध्र प्रदेश में पहले दिन की कमाई 40 करोड़ रुपये रही।
- दिल्ली सरकार ने शराब की डिमांड को देखते हुए इस पर 70 फीसदी का अतिरिक्त कोरोना टैक्स लगा दिया, फिर भी भीड़ कम नहीं हुई।
- दूसरी राज्य सरकारों को इससे अतिरिक्त कमाई करने में कोई बुराई नहीं दिखती। हरियाणा सरकार ने डिमांड को देखते हुए प्रति बोतल 2 से 20 रुपये तक अतिरिक्त टैक्स लगाने का फैसला किया है। आंध्र प्रदेश में भी नया शराबबंदी टैक्स लगाया जा रहा है।
- राजस्थान सरकार ने हाल ही में भारत में बनने वाली विदेशी शराब (आईएमएफ़एल) पर टैक्स बढ़ाकर 35 से 45 फीसदी कर दिया था।
- राजस्थान में बियर पर टैक्स भी 35 फ़ीसदी से बढ़ाकर 45 फ़ीसदी कर दिया गया था। यानी अगर आप सौ रुपए की बियर ख़रीदते हैं तो हर बोतल पर 45 रुपए सरकार को देते हैं।
बोतलों में बंद है राज्यों की अर्थव्यवस्था?
- दरअसल, शराब और पेट्रोल यही दो ऐसे उत्पाद हैं, जिन्हें जीएसटी से बाहर रखा गया है। राज्य सरकारें इन पर मनमाना टैक्स लगाकर सबसे ज़्यादा राजस्व वसूलती हैं।
- जिन राज्यों में शराब बिकती हैं, वहां सरकार के कुल राजस्व का 15 से 30 फ़ीसदी हिस्सा शराब से ही आता है। यूपी, कर्नाटक और उत्तराखंड अपने कुल राजस्व का बीस फ़ीसदी से अधिक हिस्सा सिर्फ़ शराब की बिक्री से हासिल करते हैं।
- हालांकि केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में शराब की बिक्री से कुल राजस्व का 10 फ़ीसदी से कम ही हासिल होता है, क्योंकि यहां शराब पर टैक्स दूसरे प्रांतों के मुक़ाबले कम है। वहीं, गुजरात और बिहार में शराब की बिक्री पर रोक है और इन्हें शराब से कोई राजस्व हासिल नहीं होता।
- देश के शराब बिक्री की अनुमति वाले राज्यों की बात की जाए तो पिछले वित्त वर्ष में इन्होंने शराब की बिक्री से करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की कमाई की है।
- वित्त वर्ष 2019-20 में शराब बिक्री से महाराष्ट्र ने 24,000 करोड़, उत्तर प्रदेश ने 26,000 करोड़, तेलंगाना ने 21,500 करोड़, कर्नाटक ने 20,948 करोड़, पश्चिम बंगाल ने 11,874 करोड़, राजस्थान ने 7,800 करोड़, पंजाब ने 5,600 करोड़ और दिल्ली ने 5,500 करोड़ का राजस्व हासिल किया था।
- साल 2018-19 में यूपी सरकार को शराब की बिक्री से करीब 24,000 करोड़ का टैक्स मिला था। महाराष्ट्र आबकारी विभाग ने सिर्फ मई महीने में शराब की बिक्री से लगभग 2000 करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य रखा है।

क्या है नुकसान?
- पूरी दुनिया में कोरोना की वजह से लोग मर रहे हैं, अर्थव्यवस्था तबाह हो रही है, फिर भी लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे। डॉक्टरों के मुताबिक शराब के सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है, और अगर संक्रमण हुआ, तो जान जाने की आशंका बढ़ जाती है।
- लॉकडाउन की वजह से यूं भी लोगों में चिड़चिड़ापन बढ़ गया है और घरेलू हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी की आशंका है। ऐसे में घर में एक शराबी अपनी बोतल के साथ बंद पड़ा हो, तो महिलाओं और बच्चों पर क्या बीतेगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
- सोशल मीडिया पर इस तरह की अफवाहें भी चल रही हैं कि अल्कोहल से कोरोना खत्म हो जाएगा। लेकिन ये खतरनाक सोच है, और विदेशों में इसकी वजह से कई लोगों की जानें जा चुकी हैं। अगर यहां भी लोगों ने यही सोचकर पीना शुरु किया, तो स्थिति गंभीर हो सकती है।
- शराब पीने के बाद लोगों के व्यवहार में आक्रमकता आ जाती है। ऐसे में लॉकडाउन का उल्लंघन, पुलिस के साथ अभद्रता, शांति-भंग जैसी शिकायतें बढ़ सकती हैं।
- लॉकडाउन के दौरान सड़क हादसों में भारी कमी आई थी। रोड-रेज के मामले भी खत्म हो गये थे। लेकिन अब शराब के नशे में गाड़ी चलाने और सड़क हादसों के बढ़ने की आशंका है।
पिछले साल एम्स के एक सर्वे में ये बात सामने आई थी कि दिल्ली में करीब एक तिहाई लोगों को शराब की लत है। यूं समझिये कि यहां हर पांचवां व्यक्ति शराब पीता है। दूसरे राज्यों में भी कमोबेश यही स्थिति होगी। इस लत से तब तक नुकसान नहीं है, जब तक आप घर की चारदीवारी में शांति से पीते हैं। लेकिन जब ये लत गरीब तबके तक पहुंचती है, तो घरेलू हिंसा, मारपीट, अपराध, परिवार पर संकट और गंभीर बीमारियां जैसे खतरे पैदा करती है। सरकारों को जब इसकी कमाई की लत लगती है, तो अवैध शराब के अड्डे, जहरीली शराब और कानून-व्यवस्था की समस्याएं पनपने लगती हैं।
जिस देश की आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे हो….जहां ऐसे लोगों की आमदनी इतनी कम हो कि एक क्वार्टर देसी खरीदने में पूरे दिन की कमाई चली जाती हो, जहां सबसे बड़ा मध्य वर्ग हो…जिसे परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने में लगातार जद्दो-जहद करनी पड़ती हो, वहीं उन्हीं लोगों द्वारा चुनी गई सरकार कहती है कि शराब नहीं बिके, तो सरकार कैसे चलेगी। यानी जनता के पास तो कमाई के कई सीधे तरीके हैं, लेकिन सरकार के पास गलत धंधों से कमाई के अलावा कोई चारा नहीं।
शुक्र मनाइये कि सरकारों का ध्यान दूसरे फायदे के धंधों जैसे ड्रग्स, अफीम, वेश्यावृत्ति, जुआ-सट्टा आदि पर नहीं गया है, वरना इन्हें भी लीगल कर दिया जाता और फिर इंतजार होता कि कितनी बड़ी आबादी को इसकी लत लगी। जितने लोगों को लत लगेगी, सरकार को उतनी कमाई होगी। सरकारों के पास इसके लिए कई तर्क भी हैं – जैसे विदेशों में तो लोग ज्यादा शराब पीते हैं, कई देशों में जुआ, वेश्यावृत्ति लीगल है। कई देशों की अर्थव्यवस्था इसी पर टिकी है। लेकिन इस तर्क में वो इस बात का ख्याल नहीं रखते कि वो विकसित देश हैं, वहां लोगों को रोटी की चिंता नहीं होती, पैसे उड़ाने पर बच्चों के भूखे रहने की चिंता नहीं होती और इन सबसे ऊपर उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।
फिलहाल तो लोगों को शराब की लत है, और सरकारों को इससे कमाई करने दीजिए। क्योंकि इससे कमाई नहीं होगी, तो सरकार का खर्च कैसे चलेगा, प्रदेश का विकास कैसे होगा, जनता का भला कैसे होगा???