हमारे आसपास की दुनिया का आईना है ‘आश्रम’
वेब सीरीज़ ‘आश्रम’ का केंद्रीय चरित्र बाबा निराला एक पाखंडी और आपराधिक चरित्र वाला व्यक्ति है…लेकिन वह कहता है – “मैं उपदेश नहीं देता, संदेश देता हूं शांति का।” जबकि वह धन-दौलत, देह और सत्ता की वासना में गले-गले तक डूबा हुआ है, नशे के कारोबार से लेकर राजनीतिक सौदेबाज़ी और हत्या तक में शामिल है। लेकिन उसके अंधभक्तों की फौज है जो उसके ख़िलाफ़ एक शब्द भी सुनने को तैयार नहीं है।
सीरियल से बाहर की दुनिया में भी आज के तथाकथित साधु-संत-महात्मा उपभोक्तावाद की जकड़न से मुक्त नहीं हैं, लेकिन वे दुनिया की मुक्ति की बातें करते हैं और लोग सब कुछ देखते हुए यकीन भी कर लेते हैं। राम रहीम, आसाराम, रामपाल जैसे धूर्त बरसों तक लोगों की आंखों में धूल झोंकते रहे। आश्रम के ज़रिये प्रकाश झा ने उन जैसे ढोंगी बाबाओं की ही कहानी हमें याद दिलाई है।
समाज में अशांति फैलाने वाले ऐसे शांतिदूत आज सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिष्ठा पा चुके हैं। ख़बरों के नाम पर तमाशा करने वाले आज सबसे बड़े पत्रकार हैं। न्याय की कुर्सी पर बैठ कर पक्षपात करने वाले निष्पक्ष न्यायाधीश हैं। कानून को जेब में रखने वाले, उसे रौंदने वाले कानून के रखवाले हैं और अच्छे दिनों का वादा करके दुर्दिन लाने वाले देश के सबसे बड़े , सबसे लोकप्रिय रहनुमा हैं।
दरअसल हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जहां बड़बोलेपन, घमंड, धूर्तता, दिखावे और पाखंड को सफल ही नहीं सकारात्मक जीवनशैली का भी पर्याय स्वीकार कर लिया गया है। शालीनता, शिष्टता, नरमदिली, करुणा इत्यादि अब कमज़ोरी और नाकामी के लक्षण माने जाते हैं। हमारे लोकतंत्र के चारों स्तंभों में यह प्रवृत्तियां पसर चुकी हैं। समाज के तमाम प्रतिनिधि चेहरों में अधिकांश ऐसे ही मिलेंगे।
यही लोग नये दौर में रोल मॉडल हैं, सक्सेस गुरू हैं। नेता, अभिनेता, पत्रकार और अब तो जज भी । लोग अब ऐसे लोगों की जीवन शैली , उनके रंग-ढंग से शिक्षा लेते हैं, उन्हें अपनाना चाहते हैं। ऐसे में गांधी का रास्ता ही हमें निजी और सामूहिक बर्बादी से बचा सकता है। इसलिए गांधीवादियों को आगे बढ़कर लोगों के बीच गांधी की बातों को पुरजोर ढंग से रखना चाहिए…लेकिन मुश्किल यह है कि वहां भी यथास्थितिवाद हावी है।
अमिताभ श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार
(ये लेखक के निजी विचार हैं)