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एक लाख करोड़ का ‘ठाकुर का कुआं’!

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एक लाख करोड़ का ‘ठाकुर का कुआं’!

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वेल डन अब्बा बना रहे श्याम बेनेगल की, ठाकुर का कुआं लिख रहे प्रेमचंद से मुलाकात हुई . तब क्या हुआ ?….

एक था गांव, और एक थे  गांव के ठाकुर साहब और एक था गांव में ठाकुर का कुआं

अब क्योंकि इस गांव की धरती ठाकुर साहब की उपस्थिति मात्र से धन्य हो गई थी …लिहाजा ये गांव… ठाकुर गांव कहलाता था। गांव में पानी का अकाल था, पानी सिर्फ ठाकुर साहब के कुएं में था। ठाकुर साहब किसी को अपने कुएं के पास फटकने भी नहीं देते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि… लोगों का दुख दर्द उनसे देखा नहीं गया …उन्होंने ऐलान किया …जिसे पानी चाहिए मेरे कुएं के पास आ सकता है।  गांव के सारे लोग कुएं के पास आ खड़े हुए। अब ठाकुर साहब बोले- देखो…तुम सबके दुख से मैं बहुत दुखी हूं, लेकिन क्या करूं …पानी नहीं दे सकता …हां ये कर सकते हो कि तुम बाल्टी कुएं में डालो और बगैर पानी लिए निकाल लो। अब इस बाल्टी पर मैं एक स्टीकर लगा दूंगा –जिस पर लिखा होगा… एक लाख लीटर पानी…देखो पानी का ऐसा है कि …..न हमको देना है… न तुमको मिलना है…लेकिन दिल की खुशी के लिए चाहो तो बाल्टी में स्टीकर लगवा सकते हो…इससे तुम्हारी प्यास तो नहीं मिटेगी, लेकिन जब तुम एक लाख लीटर वाली बाल्टी देखोगे तो प्यास का एहसास थोड़ा कम हो जाएगा।

वक्त बीता और ठाकुर साहब का कुआं एक दिन  चोरी हो गया। हैदराबाद के करीब एक गांव में रहने वाली मुस्कान ने अपने अब्बा अरमान अली के साथ इस कुएं की तलाश शुरू की तो पता चला कि कुआं का एड्रेस तो सेम है बस नेम बदल गया है। अब एक लाख करोड़ के इस कुएं का नया नाम है …. एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड…. ये जानकर बेटी ने कहा- वेल डन अब्बा !

एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड क्या है?

इस फंड की सबसे बड़ी खूबी ये है कि ये देश का पहला फंड है जो इतना लचीला है कि  इसे सरकार चाहे तो एक करोड़ का फंड भी कह सकती है या एक लाख करोड़ का फंड भी बता सकती है। पहले साल दस हजार करोड़ और आगे के तीन साल किसानों को तीस हजार करोड़ सालाना कर्ज दिया जाएगा।  सबसे अच्छी बात ये है कि …सरकार खुद  किसी किसान को एक धेला भी नहीं दे रही। एक लाख करोड़ का ये फंड देंगे निजी बैंक। जिनके साथ सरकार तीन फीसदी ब्याज सबसिडी के लिए एमओयू साइन करेगी और नाबार्ड इस फंड को कोआर्डिनेट करेगा। यानी ईश्क महेश का, रिस्क सुरेश का।

 इस फंड का मकसद है किसानों को व्यापारी बनाना। अब किसान चाहे तो कोल्ड चेन बनाएं, प्रोसेसिंग प्लांट लगाएं, पैकेजिंग यूनिट लगाएं और अनाज, फल और सब्जियों से भारी मुनाफा कमाएं।

समझने वाली बात ये है कि हमारे यहां दस में से नौ किसान सीमांत कृषक है, यानी उसके पास इतनी कम जमीन है कि वो किसी तरह बंटाई पर दूसरे की जमीन पर खेती करता है तब उसे दो वक्त की रोटी नसीब होती है। जो कोल्ड चेन आज तक सरकार नहीं बना पाई, निजी सेक्टर नहीं बना पाया, वो कोल्ड चेन ये किसान बना पाएगा, इतनी दूरदर्शिता हममें कभी न आती अगर देश में नीति आयोग न होता। अभी हाल में सरकार ने किसान योजना के तहत 8.5 करोड़ किसानों के खाते में 2 हजार की छठी किस्त डाली है। इस फंड की बुनियाद ये सोच है कि …तीन महीने तक जो किसान 2 हजार के लिए टकटकी लगाए रहता है, बैंक से मुखिया और बीडिओ के दफ्तर तक अपना नाम जोड़ने के लिए दौड़ता रहता है, एडवांस में रिश्वत चुकाता है वो 8.5 करोड़ किसान या उसके परिवार से कोई अगले चार साल में कोई न कोई प्रोसेसिंग प्लांट जरूर लगाएगा ।  

इस कहानी में बस एक ही पेंच है, वो ये कि अब तक सरकार उस कर्ज मुक्त किसान का पता लगा नहीं पाई है, जिसे फिर से नया सस्ता कर्ज चाहिए।

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