बंगाल चुनाव: TMC में दरार…BJP की ललकार!
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं…एक तरफ केन्द्र से तकरार तो दूसरी तरफ TMC में बढ़ती दरार…। एक तरफ अमित शाह का पश्चिम बंगाल दौरा…तो दूसरी तरफ केन्द्र सरकार का उनके अधिकारियों पर हथौड़ा…। ममता दीदी के लिए 2021 का विधानसभा चुनाव अब सिरदर्द बनता जा रहा है। मुश्किल ये है कि उनकी सत्ता में वापसी की राह भी आसान नहीं लग रही है।
TMC की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि एक के बाद एक उसकी पार्टी के दिग्गज नेता पार्टी का साथ छोड़ते जा रहे हैं। शुभेंदु अधिकारी, दीप्तांशु चौधरी और जितेंद्र तिवारी के बाद अब बैरकपुर से टीएमसी विधायक शीलभद्र दत्ता ने भी इस्तीफा दे दिया है। शीलभद्र दत्ता राजनीतिक रणनीतिकार कहे जाने वाले प्रशांत किशोर से नाराज थे और लगातार उनपर सवाल खड़े कर रहे थे। शुभेंदु अधिकारी और जितेंद्र तिवारी के बाद दत्ता पार्टी से इस्तीफा देने वाले तीसरे नेता हैं। शुक्रवार को टीएमसी नेता कबीरुल इस्लाम ने भी पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है।

TMC को कितना नुकसान?
TMC को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है शुभेंदु अधिकारी की बगावत ने। ममता सरकार में मंत्री रहे सुभेंदु अधिकारी को पार्टी में अच्छी पकड़ वाला नेता माना जाता रहा है। इन्होंने ममता बनर्जी को सत्ता तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इनके पिता शिशिर अधिकारी और भाई दिब्येंदु तृणमूल कांग्रेस के क्रमश: तामलुक और कांटी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सदस्य हैं। सिविक बॉडी का प्रतिनिधित्व भी अधिकारी परिवार के पास ही है। माना जाता है कि अधिकारी परिवार का पश्चिम मिदनापुर, बांकुड़ा, पुरुलिया, झारग्राम और बीरभूम के कुछ हिस्सों में अच्छा प्रभाव है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक वे 40 से 45 विधानसभा सीटों पर नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।
शुभेंदु अधिकारी ने टीएमसी के खिलाफ मोर्चाबंदी भी शुरू कर दी है। शुभेंदु अधिकारी, TMC के सभी नाराज नेताओं को एकजुट करने की कवायद में जुट गए हैं। यही वजह है कि शुभेंदु अधिकारी ने विधायक पद से इस्तीफा देने के कुछ ही घंटे बाद TMC सांसद सुनील मंडल के आवास पर आसनसोल विधायक जितेंद्र तिवारी समेत पार्टी के असंतुष्ट नेताओं के साथ मुलाकात की। जितेंद्र तिवारी ने गुरुवार को केंद्र द्वारा जारी फंड का सही इस्तेमाल न होने का आरोप लगाकर पार्टी से इस्तीफा भी दे दिया। अब बैरकपुर से टीएमसी विधायक शीलभद्र दत्ता ने भी इस्तीफा दे दिया है। इस बात की पूरी संभावना है कि 19 दिसंबर को अमित शाह के बंगाल दौरे के मौके पर इनके साथ-साथ कई अन्य TMC नेता बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।

अमित शाह ने संभाला मोर्चा
उधर पश्चिम बंगाल में बीजेपी लगभग साल भर से जोर-आजमाइश कर रही है। अमित शाह से लेकर बीजेपी के कई दिग्गज नेता यहां आ चुके हैं और बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश में जुटे हैं। पश्चिम बंगाल में बीजेपी के चुनाव प्रचार अभियान को रफ्तार देने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री एक बार फिर बंगाल के दो दिवसीय दौरे पर हैं। अमित शाह शनिवार को बंगाल पहुंचेंगे और एक रैली और रोड शो में शामिल होंगे। शनिवार को एक रैली को संबोधित करने के बाद अमित शाह मिदनापुर में एक किसान के घर पर भोजन करेंगे।
अपने दो दिवसीय दौरे में अमित शाह कम से कम तीन जिलों में रैलियों को संबोधित करेंगे, जिनमें पूर्वी मिदनापुर भी शामिल है। यहां सुभेंदु अधिकारी, उनके पिता और दो भाई दो लोकसभा क्षेत्रों और एक विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में संभावना है कि अमित शाह के मिदनापुर दौरे के मौके पर शुभेंदु अधिकारी समेत TMC के कई बागी नेताओं को बीजेपी में शामिल किया जा सकता है।

क्यों दबाव में है TMC?
विधायकों के साथ छोड़ने की समस्या कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ममता बनर्जी ने शुक्रवार को आनन-फानन में एक मीटिंग बुलाई है। हालांकि, पार्टी के सूत्रों का कहना है कि यह इमरजेंसी नहीं, रेग्युलर मीटिंग का ही हिस्सा है। लेकिन माना जा रहा है कि इस मीटिंग में अमित शाह के दौरे और बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश पर चर्चा होगी। ममता बनर्जी की परेशानी के कई वजहें हैं –
- नंदीग्राम सीट पर टीएमसी की पकड़ सिर्फ शुभेंदु अधिकारी के हाथ में थी, अब ऐसे में ममता बनर्जी के सामने चुनौती है कि इस क्षेत्र पर फिर से कैसे पकड़ बनाई जाए।
- सूत्रों के मुताबिक, शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से नाखुश थे, जिन्हें 2019 चुनाव में बीजेपी को मिली बड़ी सफलता के बाद उतारा गया। पार्टी के कई अन्य नेता भी सार्वजनिक मंचों से अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।
- बीजेपी पूरी कोशिश कर रही है कि TMC के असंतुष्ट नेताओं को अपने पाले में लाया जाए। ऐसे में ममता बनर्जी के लिए अपने नेताओं को एकजुट रखने के लिए कई तरह की कोशिशें करनी पड़ेगी।
- उधर, केंद्र सरकार ने बीजेपी नेताओं पर हमले के मामले को काफी गंभीरता से लिया है। केन्द्र ने बंगाल के मुख्य सचिव और पुलिस चीफ को दोबारा तलब किया है। उन्हें शुक्रवार शाम तक दिल्ली में पेश होने का आदेश दिया गया है।
- केन्द्र ने पश्चिम बंगाल में तैनात 3 IPS अफसरों का तबादला भी कर दिया है। होम मिनिस्ट्री ने गुरुवार को उनके डेपुटेशन के आदेश जारी किए। चुनाव से पहले दिल्ली के दबाव और अपने अधिकारियों के ट्रांसफर की संभावना से TMC की परेशानी और बढ़ गई है।
- पश्चिम बंगाल में बीजेपी नेताओं पर हमले से कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार की किरकिरी हो रही है और पार्टी की छवि खराब हो रही है। बीजेपी भी इस मुद्दे को लेकर कोलकाता से दिल्ली तक हवा बना रही है।

कहते हैं, युद्ध में हार…दुश्मन की ताकत से नहीं, अपनी कमजोरियों से होती है। ममता बनर्जी के लिए भी यही बात सही है। तृणमूल कांग्रेस 2014 से ही लगातार अपना प्रदर्शन बेहतर करती आ रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी, मोदी की लहर के बावजूद TMC के वोट प्रतिशत में इज़ाफा हुआ। उसे बीजेपी के 4 सीटें ज्यादा मिली और बीजेपी से 3 फीसदी ज्यादा वोट शेयर। बीजेपी के पास आज भी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टक्कर का कोई नेता नहीं है।
लेकिन प्रशांत किशोर के मैनेजमेंट और ममता बनर्जी के भतीजे के बढ़ते प्रभाव ने पार्टी में असंतोष पैदा कर दिया है। दूसरी ओर, बीजेपी की आक्रामक चुनावी रणनीति और उकसाने वाली राजनीति को ममता बनर्जी ना तो समझ पाईं और ना ही संभाल पाईं। ऐसे में अगर अब भी उन्होंने राजनीतिक सूझबूझ नहीं दिखाई, तो पार्टी की अपनी कमजोरियां और रणनीतिक भूल ही उनकी हार का कारण बन सकती है। बीजेपी ने अपनी जीत की जमीन तैयार नहीं की है, बल्कि TMC के खोदे गड्ढ़ों में ही उसे गिराने की कोशिश कर रही है।