बिहार का बदला बंगाल में लेगी JDU?
सियासी गलियारी में BJP के साथ अपनी दोस्ती का दम भरने वाली JDU ने अगले साल 2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव में अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है। जिससे बिहार की राजनीति में बयानबाजियों का दौर शुरू हो गया है। माना जा रहा है कि JDU बिहार विधानसभा चुनाव में LJP के कारण मिली हार का बदला…पश्चिम बंगाल में लेना चाह रहा है। दरअसल बिहार चुनाव में लोजपा ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान जेडीयू को हुआ। पश्चिम बंगाल में JDU भी इसी रणनीति के तहत बीजेपी के वोट शेयर में सेंध लगाने की कोशिश करेगा।
JDU के पश्चिम बंगाल प्रभारी गुलाम रसूल बलियावी ने बताया कि पिछले तीन साल से पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। हर गांव-गांव और शहर-शहर घूमकर अपने लिए 75 सीटें चिन्हित की गई हैं, जहां JDU चुनाव लड़ सकता है। अन्य पार्टियों से गठबंधन करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल इकाई का 75 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला है, इसके बाद अध्यक्ष को तय करना है। भाजपा के साथ आमने-सामने की लड़ाई के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि जब चुनाव होगा, तब जनता इसका फैसला करेगी, अभी से क्या कहना।
पहले भी अलग लड़ा है चुनाव
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब JDU ने BJP से अलग होकर किसी राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया हो, इससे पहले 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में JDU ने BJP और काँग्रेस के खिलाफ 38 विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि पार्टी 6 सीटों के अलावा, बाकी सभी सभी सीटों पर अपनी जमानत तक बचा नहीं पाई थी। फिर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी हार न मानते हुए कहा था कि वे पार्टी के प्रदर्शन से खुश हैं।
वहीं 2019 में हुए झारखंड विधानसभा में भी JDU ने BJP से अलग 40 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया, लेकिन एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई। JDU को मात्र 0.73% वोट मिले और ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। झारखंड में 2014 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने अपने दम पर चुनाव लड़ा था और तब भी पार्टी का खाता नहीं खुला था।
BJP को कितना हो सकता है नुकसान?
वैसे, JDU का अपने दम पर किसी अन्य राज्य में चुनाव लड़ने का फैसला कभी भी फायदेमंद नहीं रहा है। लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ने के फैसले पर JDU के अपने तर्क हैं। वो उन क्षेत्रों पर फोकस कर रही है, जहां बिहार से आए लोगों की संख्या अधिक है। लेकिन अगर उनके उम्मीदवार ऐसे क्षेत्रों में खड़े होते हैं, जहां BJP और TMC में सीधा मुकाबला है, तो जेडीयू उम्मीदवारों को बीजेपी समर्थकों के वोट नहीं मिलेंगे। वहीं सत्ता-विरोधी मत भी बीजेपी के ही पक्ष में पड़ेंगे, क्योंकि जनता हमेशा सरकार बनानेवाले दल को वोट देना चाहती है। दूसरी ओर अगर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हुआ, तो भी जेडीयू अल्पसंख्यकों के वोट ही काटेगी, जो TMC के लिए ज्यादा नुकसानदेह होगा। बिहार में LJP को सत्ता-विरोधी मतदाताओं का समर्थन मिला था, लेकिन पश्चिम बंगाल में सत्ता-विरोधी मत सीधे तौर पर बीजेपी को मिल सकते हैं।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार कभी कुछ नहीं भूलते, खासकर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को कब और किस तरह मात देना लेना है, ये वो अच्छी तरह जानते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में जेडीयू उम्मीदवारों के खड़े होने से बीजेपी को कम, TMC को ज्यादा नुकसान होने का अंदेशा है। कुल मिालकर बिहार में LJP को बीजेपी की बी टीम कहा जा रहा था, पश्चिम बंगाल में यही बात JDU के लिए कही जाएगी।