अब क्या करेगा चीन ?
पिछले कुछ महीनों से दुनिया कोरोना में उलझी रही और चीन ने अपने पड़ोसियों की सीमा में खुलेआम दखल देना शुरु कर दिया। इसने अपनी सैन्य शक्ति के प्रदर्शन से ना सिर्फ एशिया को बल्कि अमेरिका को भी हैरान और एलर्ट कर दिया। जिस हफ्ते भारत और चीन सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई, उसी हफ्ते चीन की एक पनडुब्बी ने जापान की समुद्री सीमा में प्रवेश किया और घंटों जापान के जंगी जहाजों को छकाता रहा। पिछले कुछ हफ्तों से चीनी फाइटर जेट रोजाना ताइवान के एयर स्पेस में चक्कर लगा रहे हैं। चीन की सैन्य आक्रामकता एक तरफ उसकी बढ़ती झमता और उसका आत्मविश्वास दिखाता है, तो दूसरी ओर सीधे अमेरिका से भिड़ने वाली मानसिकता भी दिखाता है।
दरअसल हांगकांग, ताइवान और दक्षिणी चीन सागर से जुड़े मुद्दों को चीन अपने राष्ट्रीय अभिमान और संप्रभुता से जोड़कर देखता है। इन मामलों में उसे किसी दूसरे देश की दखलअंदाजी पसंद नहीं। यूं तो चीन दावा करता है कि उसके हाल-फिलहाल के सभी ऑपरेशन रक्षात्मक हैं, लेकिन उसके हर कदम से टकराव की आशंका बढ़ती जा रही है, चाहे उसका ऐसा इरादा हो या ना हो। हो सकता है, 15 जून की रात ऐसा ही कुछ गलवान घाटी में हुआ हो, जब भारत और चीन के सैनिकों में सीमा पर हिंसक झड़प हो गई।
चीन हमेशा से ही अपनी सीमाओं और हितों की रक्षा के लिए ताकत का इस्तेमाल करता रहा है, लेकिन अब वो ज्यादा सैन्य ताकत का इस्तेमाल कर रहा है। चीनी मामलों के विशेषज्ञों के मुताबिक चीन की सैन्य शक्ति दूसरे क्षेत्रीय शक्तियों के मुकाबले काफी तेजी से बढ़ी है, और इसने चीन के नेताओं को ज्यादा आक्रामक एजेंडा अपनाने और उस पर अमल करने का हथियार दे दिया है।
सैन्य शक्ति में भारी बढ़ोतरी
विशेषज्ञों की मानें तो, सीमाओं पर चीन की आक्रामकता के पीछे उसका सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम है, जिसे 1990 के दशक में शुरु किया गया था और मौजूदा नेता शी जिंगपिंग के शासनकाल में तेजी से बढ़ाया गया। शी जिंगपिंग ने सेना के भ्रष्ट और काहिल अधिकारियों को धीरे-धीरे कर बाहर का रास्ता दिखाया और चीनी सेना को भारी-भरकम जमीनी युद्ध के बजाए तेज गति से प्रहार करने की क्षमता वाले संयुक्त अभियानों के लिए तैयार किया। इसमें वायु सेना, नौ सेना और साइबर हथियारों का भी प्रयोग शामिल है। शी जिंगपिंग ने कोरोना के दौरान भी सेना पर ज्यादा ध्यान दिया। पिछले महीने सेना के बजट में 6.6 फीसदी की बढ़ोतरी की गई और उसका रक्षा बजट बढ़कर 180 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच गया है। दूसरी तरफ आर्थिक स्लोडाउन की वजह से अन्य सरकारी खर्चों में कमी की गई है।
अमेरिका से मुकाबले को तैयार
मोटे तौर पर चीन की सैन्य शक्ति अमेरिका के मुकाबले काफी पीछे है, लेकिन कुछ मामलों में वो अमेरिका के करीब पहुंच गया है। खास तौर पर नौसेना के विस्तार और एंटी-शिप, एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलों की तैनाती के मामले में। वाशिंगटन की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल के अंत तक चीन के पास करीब 335 युद्धपोत थे, जबकि अमेरिका के पास केवल 285। रिपोर्ट के मुताबिक चीन अब अमेरिका को समुद्र में चुनौती देने की स्थिति में आ गया है और शीत युद्ध के बाद ये पहला मौका है, जब अमेरिका को समुद्र में किसी से चुनौती मिली है।
ताइवान को दिखाई ताकत
चीन ने ताइवान के आसपास सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी हैं, खास तौर पर जब मई में चीनी समर्थक उम्मीदवार को हराकर, साई इंग-वेन दुबारा ताइवान की राष्ट्रपति बन गईं। उनके पहले कार्यकाल के दौरान चीन ने ताइवान से सभी प्रकार के संबंधों को खत्म कर दिया था। इसके अलावा कई बार चीनी सरकार ने ताइवान पर सैन्य कार्रवाई की धमकी भी दी थी। अप्रैल में ही चीन के दो विमानवाहक पोत, पांच अन्य नौसैनिक पोतों के साथ ताइवान के पूर्वी तट पर घूमने लगे थे। चीनी फाइटर प्लेन पिछले हफ्ते लगातार ताइवान की वायु सीमा में गश्त लगाते नजर आये। अगस्त में एक सैनिक युद्धाभ्यास का भी प्लान है।
सभी पड़ोसी हैं परेशान
बात सिर्फ चीन के अपने इलाकों की नहीं है, पड़ोसियों की भी है। अप्रैल में ही चीनी कोस्ट गार्ड्स ने एक वियतनामी फिशिंग बोट को डुबो दिया। इसी महीने में चीनी जहाज ने मलेशियाई समुद्री सीमा में घुसकर उसके तेल टैंकर का पीछा किया। इसके बाद मजबूरन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को अपने 4 युद्धपोत वहां भेजने पड़े। इसी दौरान फिलिपीन्स ने भी चीनी युद्धपोत द्वारा अपने नौसैनिक जहाज पर निशाना लगाने को लेकर आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई।
पिछले हफ्ते, पूर्वी चीन महासागर में जापानी नौसेना ने चीन के परमाणु हथियार से लैस एक पनडुब्बी को बाहर निकलने पर मजबूर किया। 2018 के बाद से पहली बार इस इलाके में चीनी पनडुब्बी की गश्त देखी जा रही है। इसकी वजह, जापान के शासन वाले सेन्काकु टापू है, जिसे चीन अपना बताता है।
निशाने पर अमेरिका
चीन की नीति भले ही अपने पड़ोसियों को उकसाने की रही हो, लेकिन उसका असली निशाना अमेरिका है। हिमालय से लेकर दक्षिणी चीन सागर तक, चीन आक्रामक तरीके से अपनी सीमाओं का विस्तार कर रहा है। दरअसल, जब भी चीन के इन विवादित क्षेत्रों की संप्रभुता पर सवाल उठते हैं, तो चीन बहुत आक्रामक तरीके से विरोध दर्ज कराता है। दूसरी बात ये है कि पहले इन इलाकों में चीन का दबदबा नहीं के बराबर था। लेकिन पिछले 10-15 सालों में चीन ने वायु और नौसेना के क्षेत्र में काफी प्रगति की है और वो पूर्वी और दक्षिणी चीन महासागर में बड़े इलाके पर दावा करने की स्थिति में आ गया है।
चीन को अभी तक अपनी बढ़ी हुई ताकत की जांच करने का मौका नहीं मिला है। इसलिए वो समुद्र पर, जमीन पर और हवा में भी अपनी क्षमता की जांच कर रहा है। अगर भारत के साथ उसकी झड़प की बात की जाए, तो सच्चे अर्थों में, डंडे और पत्थरों से हुई लड़ाई को सैन्य शक्ति की जांच नहीं कहा जा सकता। इसलिए चीन के साथ हुई ताजा हिंसक झड़प को, तनाव के दौरान सामंजस्य की कमी से हुई अन्य झड़पों की तरह ही देखा जाना चाहिए।
क्या करेगा चीन?
इससे बड़ी संभावना ये है कि चीन दक्षिण महासागर में अमेरिका से उलझेगा या अपना दबदबा साबित करेगा। क्योंकि अमेरिका के सामने खुद को नंबर वन साबित करने के लिए उसे अमेरिका से दो-दो हाथ करना ही पड़ेगा। वहीं, ऐसा भी हो सकता है कि चीन अपनी जमीनी और हवाई शक्ति के परीक्षण के लिए थोड़े कमजोर देश भारत को चुने। यहां की लड़ाई का दूसरा बड़ा फायदा ये है कि अपनी सीमा से 1000 किलोमीटर दूर, पहाड़ों पर लड़ाई होने से उसके सैन्य और नागरिक ठिकाने नुकसान से बच जाएंगे। युद्धाभ्यास और हथियारों की ताकत जांचने के लिए, तिब्बत के निर्जन पठार से बेहतर और क्या हो सकता है? और नुकसान भी क्या है? अगर भारी पड़े तो सीमाएं बढ़ जाएंगी…..हार की गुंजाइश हुई…तो कभी भी पीछे हटा जा सकता है।