गरीबी मिटा रहा है कोरोना
कोरोना की रफ्तार तेज हो रही है। 20 जून को दुनिया में संक्रमण के रोजाना मामले 1.3 लाख के करीब थे, 16 जुलाई को ये दोगुना 2.6 लाख पर पहुंच चुका है।
दुनिया के दस सबसे ज्यादा संक्रमित देशों में अब तक वो flattening of the curve नजर नहीं आया है, जिसका अनुमान दुनिया भर के वायरोलॉजिस्ट लगा रहे थे। सबसे ज्यादा बुरी हालत अमेरिका, ब्राजील और भारत की है, जहां हालात पूरी तरह से बेकाबू नजर आ रहे हैं।
भारत में 22 मार्च को पांच सौ के करीब मामले थे, अब संक्रमितों का आंकड़ा दस लाख के पार चला गया है। जो रफ्तार है, उससे ऐसा नहीं लग रहा कि भारत पीक पर यानी संक्रमितों की उस संख्या तक पहुंचा है, जिसके बाद रोज आने वाले आंकड़े कम होने शुरू हो जाएंगे। बीते एक महीने में रोजाना संक्रमण के मामले 16 हजार से 34 हजार के पार यानी दोगुने से ज्यादा हो गए हैं।
UNHCR के मुखिया Mark Lowcock का कहना है कि कोरोना को लेकर स्वास्थय पर खर्च और मंदी की वजह से इस साल के आखिर तक 1990 के बाद पहली बार दुनिया में गरीबों की तादाद में इजाफा होने वाला है और 26.5 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच सकते हैं।
हमारे लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने कोरोना मरीजों को आत्मनिर्भर बना डाला है। सिर्फ अप्रैल के महीने में 12 करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरी चली गई है, अर्थव्यवस्था में जबरदस्त मंदी है, लोगों के हाथ में पैसे नहीं हैं और उन्हें अपने खर्च पर कोरोना का इलाज कराना है। दुनिया के गरीब से गरीब देश की सरकारें भी कोरोना की जांच और इलाज का खर्च खुद उठा रही हैं, लेकिन हमारे यहां निजी जांच केंद्रों को जांच करने की इजाजत दे दी गई है, जहां सिर्फ पैसेवालों की जांच ही हो सकती है। गरीबों के मुफ्त इलाज की सुप्रीम कोर्ट की सलाह को दरकिनार कर निजी जांच केंद्र सिर्फ उनकी जांच कर रहे हैं, जो ये रकम अदा कर सकते हैं। यही हाल निजी अस्पतालों का है, जिनके लिए कोरोना का इलाज देश सेवा का मौका नहीं, कमाई का वंस इन ए लाइफ टाइम वाला मौका है। 15 मार्च को केंद्र सरकार ने कहा था कि कोरोना से मरने वालों के परिजनों को चार लाख का मुआवजा मिलेगा, लेकिन उसी दिन ये आदेश भी वापस ले लिया गया।
साफ है कि कोरोना ने हमारे लोकतंत्र की असलियत सामने रख दी है। कोरोना मरीजों में अब जिंदा रहने का पहला हक उनका है, जिनके पास पैसा है। अब इलाज सिर्फ उनका होगा जिनके पास लाखों रुपये हैं, गरीब को तो बस मर ही जाना है। अगर आप मंत्री नहीं हैं, विधायक नहीं हैं, सरकारी अफसर नहीं हैं तो आपके लिए सरकारी अस्पतालों में बेड नहीं है, बेड है तो ICU नहीं है, जिन्हें वेंटिलेटर देकर ही बचाया जा सकता है, उनके लिए वेंटिलेटर नहीं है। निजी अस्पताल में लाखों का बिल आने से पहले तैयार हो जाता है, सुप्रीम कोर्ट के मशविरे को दरकिनार कर ये अस्पताल लोगों को लूटने में लगे हैं। हमारा लोकतंत्र सुविधासंपन्न लोगों की जागीर बन कर रह गया है। अगर आप अमीर हैं तो नानावती अस्पताल से आपके लिए एंबुलेंस आएगी, और अगर आप गरीब हैं, जो देश की आधी आबादी है, उनके लिए कोरोना में होम क्वारंटीन में मरने के अलावा कोई चारा नहीं।
IIT मद्रास ने फोल्डेबल, पोर्टेबल अस्पताल बनाया है जिसे दो घंटे में कहीं भी, कभी भे ले जाया जा सकता है। 20 लाख करोड़ के पैकेज में क्या इस अस्पताल के लिए कुछ लाख निकाले जा सकते हैं?
कुछ सवाल हैं, जो कोई नहीं पूछ रहा, लेकिन आपको ये सवाल सुनने चाहिए जरूर
- अगर मैं गरीब हूं तो क्या मुझे लेने एंबुलेंस मेरे घर आएगी?
- अगर मैं गरीब हूं तो क्या मुझे मरने से बचाने के लिए ICU मिलेगा ?
- अगर मैं गरीब हूं तो क्या मुझे ऑक्सीजन सिलेंडर मिलेगा ?
- अगर मैं गरीब हूं, तो क्या मुझे remdesivir दवा सरकारी खर्च पर मिलेगी? अगर आपको वाकई लगता है कि मिलेगी तो पता कीजिए कौन सा अस्पताल है ये ?
कोरोना सरकार के लिए वरदान साबित होने वाला है। जो सरकार नहीं कर सकी, कोरोना कर रहा है, अब न देश में गरीब रहेंगे न गरीबी।