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हांगकांग में दांव पर क्या लगा है ?

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हांगकांग में दांव पर क्या लगा है ?

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कोरोना के बहाने चीन हांगकांग में विरोधियों का दमन कर रहा है और हांगकांग के बहाने अमेरिका चीन की सबसे कमजोर नस दबा रहा है। चीन अगर राक्षस है तो हांगकांग वो तोता है जिसमें राक्षस की जान बसती है।

चीन में हांगकांग के लिए नेशनल सिक्योरिटी लॉ पारित होने के बाद …

 बुधवार को अमेरिकी विदेश मंत्री ने ऐलान किया –

Hong Kong was no longer sufficiently autonomous from mainland China

पिछले साल नवंबर में ट्रंप सरकार ने The Hong Kong Human Rights and Democracy Act पारित किया था। इसके तहत अमेरिका के विदेश विभाग को हर साल एक बार ये सर्टिफिकेट देना पड़ता है कि हांगकांग को इतनी स्वायत्तता हासिल है कि उसके साथ चीन से अलग कारोबारी रिश्ता रखा जाए। इस कानून में ये भी प्रावधान है जो भी अधिकारी हांगकांग में ह्यूमन राइट्स के खिलाफ काम करेंगे उनको अमेरिका आने का वीसा नहीं मिलेगा और अगर अमेरिका में उनकी कोई संपत्ति है तो वो जब्त की जा सकती है।

US-Hong Kong Policy Act of 1992 के तहत हांगकांग को अमेरिका के  export controls, customs and immigration मामलों में चीन से अलग दर्जा हासिल है। यानी चीन पर प्रतिबंध लगता है तो इसका असर हांगकांग पर नहीं पड़ता है। लेकिन अब ये स्थिति बदल सकती है।

हांगकांग में चीन विरोधी प्रदर्शनकारी ये चाहते हैं कि ये सर्टिफिकेट जारी न हो। विरोधियों के नेता # Joshua Wong ने ट्वीट किया

“If the U.S. no longer treats Hong Kong as a separate customs territory, will our economy suffer? Of course! . . . Yet the hit is necessary,” 

 “For decades, Hong Kong has facilitated the influx of global capital and otherwise unavailable goods (e.g., high-tech products) into China. Leaders in Beijing continue to reap the benefits of this arrangement while our freedoms deteriorate. They can’t have it both ways.”





National People’s Congress, बीजिंग में Xi Jinping और Li Keqiang वोट देते हुए, 2778-1 से पारित हुआ हांगकांग के लिए नया कानून- फोटो-  Kyodo जापान

हांगकांग में चीन विरोधी प्रदर्शनकारी मानते हैं कि अमेरिका को ये कदम जरूर उठाना चाहिए क्योंकि यही वो जुबान है जो चीन को समझ आती है।

“When Hong Kong really loses special status, China will see the consequences.” “If we burn, you burn with us.”

“one country, two systems,” framework क्या है?

जब 1997 में हांगकांग ब्रिटेन से आजाद होकर चीन का हिस्सा बना,  तब ये तय हुआ था कि  यहां चीन का कम्यूनिस्ट शासन लागू नहीं होगा। हांगकांग में जो व्यवस्था पहले से काम करती आई है वो बनी रहेगी। जैसे- न्याय व्यवस्था, प्रेस और अभिव्यक्ति की आजादी। हांगकांग की अपनी ओलंपिक टीम, अपनी मुद्रा है और WTO में उसकी अलग सीट भी है। यही वो खूबियां हैं, जिसने हांगकांग को बेहद खास  investment destination और international financial hub का दर्जा दिलाया है।

हांगकांग की अहमियत क्या है ?

  • हांगकांग गेटवे ऑफ चाइना है। वो खुल जा सिमसिम वाला दरवाजा है जिससे हो कर ही यूरोप और अमेरिका के निवेशक (Hedge fund, FII, FDI)  चीन आते हैं। हांगकांग के स्पेशल स्टेटस का इस्तेमाल चीन अपनी कंपनियों में विदेशी निवेश,  शेयर और बांड की बिक्री और चीनी कंपनियों के विदेश में निवेश से हासिल आय को चीन पहुंचाने के लिए करता है। चीन के लिए हांगकांग चार तरह से अहम है
  1. हांगकांग का शेयर बाजार #hang Seng  दुनिया के सबसे अहम शेयर बाजारों मे से एक है। चीन की कंपनियों ने 2010 से 2018 के बीच IPO जारी कर जो रकम उगाही की  उसका 73% हांगकांग से आया। यूरोप और अमेरिका के निवेशक चीनी कंपनियों के स्टॉक और चीन सरकार के बांड खरीदने के लिए हांगकांग आते हैं।
  2. एशिया में FII Foreign Institutional Investment  का बड़ा केंद्र है हांगकांग। 2019 में चीन के खिलांफ चल रहे आंदोलन से यहां निवेश को बड़ा धक्का पहुंचा और ये घटकर आधा…करीब $55 बिलियन रह गया।
  3. FDI –foreign direct investment – में अमेरिका और चीन के बाद हांगकांग में  सबसे ज्यादा  FDI आता है।
  4. विदेश में निवेश के लिए हांगकांग चीन का लांच पैड है। भारत में चीन ने अब तक 8 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। इसमें से 2.3 चीन से,4.2 हांगकांग से और बाकी रकम दूसरे देशों में मौजूद सबसिडियरी कंपनियों के जरिए किया है। 19 अप्रैल को भारत सरकार ने पड़ोसी देशों के FDI पर लगाम लगाया तो चीन के साथ-साथ हांगकांग पर भी इसे लागू किया गया।

अमेरिकी विदेश विभाग सर्टिफिकेट नहीं देगा तो क्या होगा ?

चीन और हांगकांग के कुछ अहम सरकारी अफसरों और कंपनियों पर खास कर sensitive tech के ट्रांसफर पर अमेरिका प्रतिबंध लगा सकता है। ये शुरूआत होगी। लेकिन चीन को डर है कि बात यहीं नहीं रुकेगी। अमेरिका का अगला कदम होगा वो सारे  प्रतिबंध (tariffs and regulations, visa restrictions, export controls) हांगकांग पर लागू करना जो अब तक सिर्फ चीन पर लागू थे। यानी वो कदम जो बीते 19 अप्रैल को भारत सरकार ने उठाया।

अमेरिका के फैसले का क्या असर होगा ?

अमेरिका पर असर

अमेरिका के लिए ये बेहद मुश्किल फैसला है, क्योंकि इससे अमेरिकी कंपनियां बुरी तरह प्रभावित होंगी। अमेरिका की कम से कम 300 कंपनियों का हांगकांग में एशिया के लिए हेडक्वार्टर है, तो 1300 से ज्यादा अमेरिकी कंपनियों के यहां दफ्तर हैं जिससे वो एशिया खास कर चीन, जापान, भारत और कोरिया में काम-काज पर नजर रखती हैं। 85,000 अमेरिकी नागरिक हांगकांग में रहते हैं। हांगकांग के साथ व्यापार में अमेरिका को ट्रेड सरप्लस हासिल है। 2018 में ये सरप्लस $31.4 बिलियन और 2019 में $26.4 बिलियन  था।

हांगकांग पर असर

 2018 में अमेरिका से $82.5बिलियन FDI  हांगकांग में आया..जबकि   $66.9 बिलियन का व्यापार हुआ। अमेरिका से खास रिश्ता ही हांगकांग को दुनिया का फाइनांसियल हब बनाता है।

चीन पर असर

चीन हांगकांग की करेंसी, इक्विटी, और debt financing का इस्तेमाल फॉरेन  फंड के लिए करता आया है जो इस कदम से रुक जाएगा। चीन में 2019 में $165.9 बिलियन offshore U.S. dollar funding हुआ, इसका एक तिहाई हांगकांग से आया था।

चीन में ज्यादातर FDI हांगकांग के रास्ते ही आता है।

चीन के बैंकों की $1.1 trillion संपत्ति हांगकांग में है। इस संपत्ति की कीमत कम हो जाएगी।

चीन का ज्यादातर विदेशी व्यापार हांगकांग के बंदरगाह से हो होता है।

चीन अपनी मुद्रा युआन को डॉलर के मुकाबले खड़ा करना चाहता है, हांगकांग का स्टेटस कम हुआ तो इंटरनेशनल करेंसी के तौर पर युआन की अहमियत और कम हो जाएगी।

चीन की इकोनॉमी धीमी हो रही है, हांगकांग के हालात बदले तो चीन की इकोनॉमी पर बुरा असर पड़ेगा, हांगकांग में विरोध की आवाज और तेज होगी साथ ही चीन में कम्यूनिस्ट पार्टी और शी जिनपिंग पर चीनी अवाम का भरोसा कम होगा।

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