रुदाली
रुदाली…यानी मेहनताना लेकर मातम
कहते हैं जिनकी मौत पर कोई रोने वाला नहीं होता था, उनके लिए रकम खर्च कर छाती पीट कर रोने के वास्ते जिन्हें बुलाया जाता था उन्हें रुदाली कहते थे।
अभी मर चुके, मर रहे और निकट भविष्य में मरने वाले बैंकों की रुदाली का नया दौर शुरू हुआ है। हर रुदाली में आंसू हो ये जरूरी नहीं, कुछ रुदाली बहस के जरिए भी सामने आती है।
देश की सबसे बड़ी अदालत में सबसे दिलचस्प बहस वो है जो EMI पर ब्याज की छूट के मामले पर चल रही है। एक ओर याचिका देने वाले हैं जिनकी अपील है कि कोरोना की वजह से करोड़ों लोगों की नौकरी छिन गई है, लिहाजा कर्ज पर बीते मार्च से अब तक EMI नहीं चुका पाए लोगों को ब्याज पर राहत दी जाए। दूसरी तरफ बैंक हैं, जिनका कहना है कि हमें EMI भी चाहिए, ब्याज भी चाहिए और बीते 6 महीने के ब्याज पर ब्याज भी चाहिए, नहीं तो हम लुट जाएंगे, बरबाद हो जाएंगे। ये तो मामले के दो पक्ष हुए। बैंकों के बैंक रिजर्व बैंक ने मार्च में लोगों को किश्त चुकाने में राहत का ऐलान किया था जो 31 अगस्त को खत्म हो गई। अब रिजर्व बैंक का कहना है कि आप किश्त भी चुकाइए और ब्याज भी दीजिए। केंद्र सरकार का कहना है कि हमारा स्टैंड रिजर्व बैंक के स्टैंड से अलग नहीं हो सकता। यानी सरकार भी चाहती है कि लोग किश्त भी चुकाएं और ब्याज भी भरें।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि
‘’लोगों की परेशानियों की चिंता छोड़कर आप सिर्फ कारोबार के बारे में नहीं सोच सकते। सरकार RBI की आड़ ले रही है, जबकि डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत वो बैंकों को ब्याज पर ब्याज लेने से रोक सकती है।”
अदालत ने ये भी कहा कि -बैंक हजारों करोड़ रुपए NPA में डाल देते हैं, लेकिन कुछ महीने के लिए टाली गई EMI पर ब्याज वसूलना चाहते हैं।
कितनी बुरी है बैंकों की हालत ?
Bloomberg की एक रिपोर्ट के मुताबिक बैंक ऑफ बड़ौदा का 65% कर्ज इससे प्रभावित हो रहा है, जबकि कैनरा बैंक का महज 17%, समग्र तौर पर भारतीय बैंकों का 33% कर्ज किश्तों और ब्याज वाली इस कहानी से जुड़ा है।
तो अभी तक की कहानी ये है कि हमारी सरकार और तमाम बैंक एक राय रखते हैं कि कोरोना की वजह से जिनकी नौकरी चली गई है, उन 2.7 करोड़ युवा समेत अप्रैल में बेरोजगार हुए 12.20 करोड़ लोगों को जहां से हो EMI चुकाना चाहिए और न सिर्फ ब्याज बल्कि ब्याज पर ब्याज भी देना चाहिए।
विश्वगुरु, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी ताकत, और पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी होने के दावे के लिए इतनी तंगदिली शायद जरूरी भी है, लेकिन फिर भी ये जानना दिलचस्प है कि दुनिया के ज्यादातर देश अपने नागरिकों के लिए इस मामले में क्या कर रहे हैं।
मिसाल के तौर पर तीन देशों की बात करते हैं –
अमेरिका
अमेरिका में coronavirus relief bill के तहत CARES Act लागू किया गया। जिसके तहत पहले 30 सितंबर तक के लिए और फिर 8 अगस्त को प्रेसीडेंट ट्रंप के आदेश से इस साल 31 दिसंबर तक के लिए, कॉरपोरेट को छोड़ बाकी हर तरह के कर्ज पर ब्याज लेने से मनाही कर दी गई। आपको ये भी समझना चाहिए कि अमेरिका में भारत के मुकाबले कर्ज पर ब्याज की दर ज्यादातर मामलों में एक तिहाई से भी कम है-जैसे अमेरिका में 30 साल के लिए अगर आप होमलोन लेते हैं तो आपको कर्ज पर हर साल 2.94% ब्याज चुकाना होगा। ये ब्याज की वो दर है जो हमारे यहां क्रेडिट कार्ड वाली कंपनियां एक महीने के लिए और बैंक एक तिमाही के लिेए वसूलते हैं।
कनाडा
कनाडा में पहले अप्रैल से जून और फिर बाद में जुलाई से सितंबर तक loan deferral योजना के तहत ग्राहकों को बैंक को EMI नहीं चुकाने की इजाजत दी गई। मिसाल के तौर पर home capital group inc( bank) के 9 हजार ग्राहकों ने EMI को टालने की गुजारिश की थी। 31 जुलाई तक ये तादाद घट कर तीन हजार से कम रह गई। इन छह महीनों तक ग्राहकों को कोई EMI नहीं देनी थी, छह महीने बाद वही EMI शुरू होगी जो पहले से चली आ रही थी। इन छह महीनों में बैंक न ब्याज लेंगे न भारत के बैंकों की तरह ब्याज पर ब्याज।
ये रकम कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि अमेरिका और कनाडा में सिर्फ स्टूडेंट लोन डेफरल से अमरीकी सरकार पर 1.5 ट्रिलियन $ और कनाडा सरकार को 10 लाख छात्रों पर 11 बिलियन $ का नुकसान उठाना पड़ रहा है। बैंकों के कर्ज में राहत के अलावा कनाडा की सरकार CERB- Canada emergency response benefit के तहत कोरोना की वजह से नौकरी गंवाने वाले हर शख्स को $2,000 लगभग 1.5 लाख रुपये बीते चार महीने से दे रही है। CEWS – Canada emergency wage subsidy के तहत 2.23 लाख कामगारों के वेतन का 75% अधिकतम $3400 – 2.5 लाख रुपये हर महीने दे रही है। CECRA यानी Canada Emergency Commercial Rent Assistance के तहत किराया देने में जिन्हें मुश्किल आ रही है, उनका आधा किराया सरकार दे रही है, जबकि मकानमालिकों ने किराए में एक चौथाई की कटौती अपनी ओर से की है। यानी किराएदारों को पुराने किराए का महज 25% ही अब चुकाना पड़ रहा है।
ब्रिटेन
अक्टूबर तक ब्रिटेन में payment holidays के तहत कर्जदारों से EMI और सूद लेने पर सरकार ने रोक लगा दी है। इसके बाद भी जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर रहती है,उनके पास reduced payments or no payments का विकल्प होगा। अकेले Lloyds ने इसके लिए £2.4 बिलियन का अलग से प्रावधान किया है।
जरा सोचिए
क्या आप जानते हैं कि हमारे कई सरकारी बैंक दीवालिया हो गए थे, मर गए थे। इन्हें फिर से जिंदा करने के लिए सरकार ने बीते पांच साल में करीब 3.5 लाख करोड़ की रकम इन बैंकों को दी। बैंक ऑफ अमेरिका और मेरिल लिंच की रिपोर्ट के मुताबिक अकेले इस साल सरकारी बैंकों को 1.13 लाख करोड़ के recapitalization fund की जरूरत है। सरकार ने इस मद में अब तक 68,855 करोड़ की रकम इस साल दी है। बैंकों की सेहत सुधरेगी तो इन्हें बेचने पर रकम भी ज्यादा मिलेगी…. लेकिन आम जनता अब तक ये नहीं जानती कि, तब न कोरोना था, न ही इकोनॉमी में कोई बड़ी गिरावट आई थी, फिर ऐसा क्या किया इन बैंकों ने, कि बीते 6 साल में एक के बाद एक ज्यादातर सरकारी बैंक दीवालिएपन की स्थिति में पहुंच गए? क्या इन बैंकों ने कुछ बड़े कारपोरेट घरानों को कर्ज दिया जो डूब गया? ऐसा क्यों हुआ कि रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर रघुराम राजन ने बंद लिफाफे में देश के दस सबसे बड़े कर्जदारों की जो लिस्ट सरकार को सौंपी थी और उऩका नाम जाहिर करने को कहा था, उसके बाद उऩसे इस्तीफा ही ले लिया गया।
ये आपके लिए फिर से जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि अदृश्य, अनाम कर्जदारों से डूबे कर्ज वसूलने के बजाय खामोशी से दीवालिया बन कर जनता के पैसे से साल दर साल हजारों करोड़ का recapitalization fund हासिल करने वाले बैंक आम आदमी की बारी आते ही सुप्रीम कोर्ट के आगे दुखड़ा रोने लगते हैं।