पुलिस बदनाम हुई….’डार्लिंग’ तेरे लिए!!!
जब भी अपराधियों की हिम्मत या कद बढ़ने की बात होती है, तो पुलिस पर सवाल खड़े होते हैं….। जब भी अपराधियों को बनाने या पालने की बात आती है, तो पुलिस पर आरोप लगते हैं…। जब भी कोई नया अपराधी खड़ा होता है, तो कहा जाता है कि अपराधी पेट से पैदा नहीं होते, इन्हें बनाया जाता है। और इसके पीछे जो वजह बताई जाती है…वो अक्सर या तो पुलिस का निकम्मापन होता है… या उनका अत्याचार।
इसका मतलब ये नहीं कि पुलिस बिल्कुल दूध की धुली है। बहुत से मामलों में उसकी भूमिका बेहद आपत्तिजनक और अमानवीय भी रही है। लेकिन फिल्मों में, मीडिया में, समाज में… पुलिस की गलत हरकत ही उदाहरण बनती है…। वही खबर बनती है… उसी पर स्टोरी बनती है। वैसे आप ढूंढेंगे तो जितनी खबरें पुलिस के खिलाफ बनती हैं, उससे ज्यादा खबरें उनके अच्छे और भले कामों की भी मिल जाएंगी। लेकिन परवाह किसे है?
अब बड़े से बड़े अपराधियों के बनने की पूरी प्रक्रिया को देखिए तो अधिकतर मामलों में यही पता चलता है कि पुलिस मोहरा भर है…..सूत्रधार कहीं और बैठा है। यूपी के विकास दुबे को ही ले लीजिए….। विकास के सभी प्रमुख पार्टी नेताओं के साथ फोटो सामने आए हैं। विकास की पत्नी सपा से जिला पंचायत सदस्य हैं। इससे पहले वह खुद बसपा से जिला पंचायत सदस्य था। उसके कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और भाजपा सरकार के एक मंत्री के साथ भी फोटो सामने आ चुकी है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विकास का सभी पार्टी के नेताओं और सरकारों में कैसा रुतबा था।
अब जरा मुद्दे को गहराई से देखिये, तो असली तस्वीर सामने आ जाएगी। पुलिस को क्या जरुरत है किसी नये रंगरुट को… अपराधी बनाने, पालने या संरक्षण देने की? क्या उन्हें इतनी समझ भी नहीं है कि आज नहीं तो कल…. वो उन्हीं के लिए मुसीबत बन जाएगा ? कोई अपराधी पुलिस के किस काम आता है? कुछ खबरों के अलावा पुलिस को इनसे क्या हासिल होता है? कुछ नहीं…। तो अपराधियों से फायदा किसको है? क्योंकि जिसको फायदा होगा, वही तो उसे पालेगा!!
अब दूसरा सवाल…रेलवे के ठेकों में सबसे ज्यादा कमीशन किसको मिलता है? चुनाव में बाहुबलियों की जरुरत किसको पड़ती है? वोटरों को धमकाने या विपक्षी नेता को उड़ाने की जरुरत किसे पड़ती है? सरकारी विभागों और अपराध के गठजोड़ का अवैध पैसा किसके खाते में पहुंचता है? जाहिर है, इन सबके लिए नेता और उनकी राजनीति जिम्मेदार है। अगर वो इन्हें संरक्षण नहीं देंगे, तो उनकी अवैध कमाई का जरिया ही बंद हो जाएगा। अगर वो इन्हें नहीं पालेंगे, तो चुनाव में तिकड़म का रास्ता ही बंद हो जाएगा। अगर वो इन्हें खड़ा नहीं करेंगे, तो उनका बाहुबल ही समाप्त हो जाएगा।
जाहिर है….जो गंदे काम करते हैं, उन्हें ही गंदे हाथों की जरुरत पड़ती है। अब सफेद कुर्ताधारी तो ऐसे कामों में हाथ नहीं डाल सकते, क्योंकि पकड़े गये, तो सारी उम्र जेल में निकल जाएगी, और अगर बच भी गये तो जनता का भरोसा खत्म हो जाएगा। इसलिए इन्हें ऐसे लोगों की जरुरत पड़ती है, तो इनके लिए काले धंधे में शामिल हों….उन्हें फायदा पहुंचायें और जब वक्त उल्टा पड़े तो पुलिस की गोली खाकर शांति से रुख़सत हो जाएं। अब जब डोर किसी और के हाथ में हो…नचा कोई और रहा हो….बचा कोई और रहा हो…..तो फिर पुलिस सिवाय सही वक्त के इंतज़ार के और क्या कर सकती है?
विकास दुबे की मां कहती हैं – “मेरा बेटा 5 साल भाजपा में, 15 साल बसपा और 5 साल सपा में रहा। अगर वह इतना ही खराब था तो राजनीतिक पार्टियों और उस वक्त के मुख्यमंत्रियों ने उसे अपने दल में शामिल क्यों किया? ये नेता दूर रहते तो विकास शांति से अपनी जिंदगी जी रहा होता।”
शायद ये बात सही भी है…। अगर नेता दूर रहें, तो सभी शांति से अपनी जिन्दगी जी सकते हैं…।