कौन है असली सवा सेर?
Share

क्या ये महज़ संयोग है कि शनिवार को अमेरिका ने अपने 2 बड़े विमान वाहक युद्धपोतों का रुख़ दक्षिण चीन समुद्र की ओर किया और अगले ही दिन बीजिंग की ओर से उसके ताकतवर विदेशमंत्री और डोभाल के बीच बातचीत का प्रस्ताव आ गया..? ये साफ है कि इस सेर पर भी सवा सेर हैं..।
चीनी मीडिया के लेखों और संपादकीय में जो एक विचार अंतर्निहित मिलेगा: ‘भारत को उसकी हद में रखने की ज़रूरत है..लेकिन उसके साथ झगड़े को इतना भी ना बढ़ाया जाए कि असली लड़ाई यानी अमेरिका के साथ अपने संघर्ष से ध्यान भटक जाए..।’ इससे क्या पता चलता है? चीनी हमसे आगे हैं क्योंकि हम जैसे आत्ममुग्ध मूर्ख नहीं हैं..। उन्हें पता है असली सवा सेर कौन है..?

अमेरिका अपनी सैन्य ताकत पर जितना खर्च करता है, वो चीन और भारत समेत उसके बाद के दस सबसे बड़े रक्षा बजटों के कुल योग से भी ज़्यादा है..। अमेरिका की अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर आज भी चीन के मुकाबले 50 फीसदी ज़्यादा बड़ी है और प्रति व्यक्ति आय छह गुना से भी अधिक..। 2019 के लोवी संस्थान के एशिया पावर इंडेक्स के मुताबिक एशिया में सबसे ताकतवर कोई एशियाई देश नहीं बल्कि अमेरिका है..।
लेकिन नई-नई रईसी की अकड़ में एक बात चीनी भी भूल रहे हैं..। वो ये कि दुनिया का दरोगा बनना महंगा काम है..। इतने खर्च के बाद भी रणनीतिक पंडित मानते हैं कि अमेरिका ने अगर नई तकनीकों, यूनिवर्सिटी शोध (जी हां, यूनिवर्सिटी शोध!), डिप्लोमेसी और गरीब देशों को आर्थिक सहायता पर खज़ाने का मुंह और नहीं खोला तो इकलौती सुपरपावर होने का ओहदा उसके हाथ से फिसलता जाएगा..। खर्चे की इस फेहरिस्त में और भी ढेरों चीज़ें हैं..।

दूर से देखने पर चीन का खज़ाना भरा दिखता है, वो जो सामने आए, उससे पंगे भी ले रहा है..। शिक्षा, शोध और तकनीक पर उसके निवेश से भारत सबक ले सकता है..। लेकिन फिर ये तथ्य भी ग़ौर करने लायक हैं – कोरोनावायरस से पहले भी चीन की विकास दर दहाई के आंकड़े से घटते-घटते पिछले साल 6.1 प्रतिशत रह गई थी..। वो भी सरकारी आंकड़े के मुताबिक..। ब्रुकिंग्स संस्थान के एक शोध के मुताबिक चीन के जीडीपी आंकड़े हर साल औसतन 1.7 प्रतिशत तक बढ़ाकर पेश किए जाते हैं..। चीन में टैक्स की कमाई घट रही है..। साल 2018 में 6.2 प्रतिशत के मुकाबले पिछले साल इसकी वृद्धि दर 3.8 प्रतिशत रह गई थी..। लेकिन चीनी सरकार खर्च नहीं घटा रही..। आईएमएफ के मुताबिक चीन का वित्तीय घाटा जीडीपी से 12 प्रतिशत से भी अधिक है..।
वैसे, आंकड़े बताते हैं कि साल 2017 के बाद से चीन ने बीआरआई प्रोजेक्ट पर भी खर्च घटाया है..। चीन को महाशक्ति बनाने के लिए लॉन्च किए गए इस प्रोजेक्ट से अब चीन के बैंक लगभग हाथ खींच चुके हैं..। पाकिस्तान, म्यामांर, नेपाल, अफ्रीका, पूर्वी यूरोप… सब जगह अब चीन बीआरआई में निवेश के लिए मेजबान देशों की ही जेबें टटोल रहा है..। सेंटर फॉर स्ट्रेटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ का आकलन बताता है कि इस साल चीन को रक्षा बजट में कटौती करनी पड़ सकती है..। ख़बरें ऐसी भी हैं कि उसे पांचवीं पीढ़ी के जे-20 लड़ाकू विमानों के उत्पादन में भी कटौती करनी पड़ी है..। उस पर कोरोना वायरस की मार अलग..।

पड़ोस में 18 देशों से विवाद; और समर्थकों की फेहरिस्त में कौन ? – पाकिस्तान, उत्तर कोरिया, कंबोडिया, इथोपिया…। विदेशों में चीनी कंपनियों की छवि इतनी खराब है कि देश मजबूरी में ही उनके साथ काम करने को तैयार हैं..। जिसे, जहां विकल्प मिल रहा है, वो चीनी कंपनियों से पिंड ही छुड़ा रहा है..। साफ है लाठी-डंडों के साथ लद्दाख के बंजर पहाड़ों पर लड़ना एक बात है और प्रशांत महासागर में अमेरिका के दमख़म को उखाड़ना और..। अभी चीन के जेब इतनी भारी भी नहीं हुई है..।
(अवर्ण दीपक के फेसबुक वॉल से साभार)