बिहार मर रहा है, राजनीति जिन्दा है!
बिहार कोरोना से लड़ रहा है, बस जिंदगी की इस जंग में टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट के लिए कोई जगह नहीं है। 30 जनवरी को देश में कोरोना का पहला मामला आया। इन छह महीनों में बिहार में कितने अस्थायी अस्पताल, कितने आइसोलेशन सेंटर, कितने क्वारंटीन सेंटर बने? हेल्थ वर्कर के लिए कितने PPE किट, कितने VTM- viral transport medium kit, जांच के लिए कितने टेस्टिंग किट, एक्सट्रैक्शन किट्स, इंफ्रारेड थर्मोमीटर लिए गए इसका कोई हिसाब नहीं है। न सीएम के पास पीसी का वक्त है न हेल्थ मिनिस्टर के पास। आप ये जानकारी भी सरकार से नहीं ले सकते, कि बिहार के किस जिले में कोरोना के अभी कितने एक्टिव केसेज हैं?
बिहार में कोरोना का कहर
तारीख | कोरोना के मामले | मौत |
22 मार्च | 01 | 00 |
01 जून | 3872 | 23 |
30 जून | 9744 | 68 |
14 जुलाई | 19284 | 174 |
जून में कोरोना के मामले कुछ सौ की तादाद में आ रहे थे, अब रोजाना मामले हजार से ज्यदा आ रहे हैं। देश भर में जितने मरीजों का रोज पता चलता है, उससे दोगुनी तादाद उन लोगों की है जो रोज ठीक हो रहे हैं, लेकिन बिहार में हालात चिंताजनक हैं। यहां रोज संक्रमित मामले 1000 के करीब हैं और ठीक हो रहे मरीजों की तादाद 500के पास है। नतीजा ये है कि अस्पतालों में बिस्तर नहीं है।
देश के किसी और राज्य में इस स्थिति की कल्पना भी शायद नहीं की जा सकती। गृह विभाग के अवर सचिव उमेश रजक की इसलिए मौत हो गई क्योंकि पटना एम्स में मरीज के लिए जगह खाली नहीं। वक्त पर जांच और इलाज न होने से आम लोगों की मौत तो आम बात है ,लेकिन सरकार के एक अधिकारी की इस तरह मौत का मतलब यही है कि सरकार ने कोरोना से हार मान ली है। डीएम, सीएम, गवर्नर का दफ्तर, बीजेपी का पार्टी दफ्तर…बिहार में सरकार के हर अहम विभाग और दफ्तर में सेंध लगा चुका है कोरोना। अब आलम ये है कि जहां जांच हो रही है, वहीं कोरोना निकल रहा है। टेस्ट पॉजिटिव होने का औसत 13 पर पहुंच गया है। सरकार किस तरह से काम कर रही है, इसे एक तुलना से समझिए।
राज्य | कुल टेस्ट | 10 लाख की आबादी पर टेस्ट का औसत |
यूपी | 11.56 लाख | 4800 |
बिहार | 3.1 लाख | 2600 |
यूपी की तरह ही बिहार में भी कोरोना की रफ्तार तेज है, लेकिन जहां यूपी में रोज 40 हजार टेस्ट हो रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री के 15हजार के वादे के बावजूद बिहार में डेली टेस्टिंग महज 9 हजार है। कोरोना से निबटने की सरकार की योजना कितनी विफल है, इसे इस तरह समझिए कि राजधानी पटना में सबसे ज्यादा दो हजार के करीब संक्रमित हैं, लेकिन अब तक 6 महीने में यहां महज 6 हजार टेस्ट ही हुए हैं।
बिहार में कोरोना की टेस्टिंग
तारीख | सैंपल की जांच |
15 अप्रैल | 537 |
30 अप्रैल | 1446 |
15मई | 1695 |
31 मई | 2353 |
15 जून | 3657 |
27 जून | 8742 |
चिंता की बात ये है कि हाल के दिनों में जैसे-जैसे कोरोना ने रफ्तार पकड़ ली है, वैसे-वैसे टेस्टिंग की रफ्तार बढ़ने के बजाय घटती गई है।
तारीख | सैंपल की जांच |
1 जुलाई | 7799 |
2जुलाई | 7291 |
3जुलाई | 7187 |
4 जुलाई | 7930 |
5जुलाई | 6799 |
6 जुलाई | 6213 |
7 जुलाई | 5702 |
स्वास्थ्य सेवा की बदहाली का सबसे बड़ा बैरोमीटर है रिकवरी रेट, यहां बिहार ज्यादातर राज्यों से पीछे है।
राज्य | कोरोना का रिकवरी रेट % में |
लद्दाख | 85 |
दिल्ली | 80 |
छत्तीसगढ़ | 77.68 |
राजस्थान | 74.22 |
मध्यप्रदेश | 73.03 |
बिहार | 71 |
हेल्थ इमरजेंसी के इस दौर में सरकार से ज्यादा पारदर्शिता की उम्मीद की जाती है। पिछले महीने तक स्वास्थ्य विभाग कोरोना संक्रमण का इलाकेवार आंकड़ा दे रहा था, लेकिन जैसे ही संक्रमण ने रफ्तार पकड़ी, सरकार आंकड़े छिपाने में लग गई। अब सिवाय डेली अपडेट के और कोई जानकारी स्वास्थ्य विभाग नहीं दे रहा। हर राज्य हेल्थ वर्कर को महफूज रखने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा है, बिहार में सिर्फ एक दिन 7 जुलाई को 70 हेल्थ वर्कर पॉजिटिव पाए जाते हैं। सिर्फ एक दिन 14 जुलाई को दो डाक्टर के कोरोना से मौत की बात सामने आती है। अगर राज्य हेल्थवर्कर्स को महफूज नहीं रख पाएगा तो हेल्थ वर्कर कैसे राज्य को कोरोना से बचा पाएंगे?
एक ओर अफसरों तक को पीएमसीएच जैसे अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहा, वहीं मंत्रियों और विधायकों को स्पेशल ट्रीटमेंट की बात रोज सामने आ रही है। आम लोगों को टेस्ट रिजल्ट पाने में तीन से पांच दिन लग रहा है, जबकि मंत्रियों और नेताओं के चंद घंटे में । मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर एक शख्स के कोरोना संक्रमित होने के बाद ये दफ्तर पलक झपकते मेक शिफ्ट हॉस्पीटल बन गया, वहां वेंटिलेटर के साथ डाक्टरों की तीन टीम तैनात हो गई।
ये वक्त आम लोगों की जान बचाने का है, संकल्प के साथ मिल-जुलकर काम करने का है, लेकिन बिहार में ये वक्त है राजनीति का, तीन महीने बाद होने वाले चुनाव की तैयारी का …