Chirag: क्या चिराग ही नीतीश को बनाएंगे सीएम ?

बिहार में राजनीति अलग ही लेवल पर होती है। राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है आरजेडी…आडवाणी का रथ रोकने वाली लालू की पार्टी जो सिर्फ सेकुलर नहीं सेकुलर नंबर वन है, दूसरी बड़ी पार्टी है जेडीयू जो एक साथ सेकुलर भी है और कम्यूनल भी, वो बीजेपी के भी साथ है और मुस्लिमों के साथ भी और फिर स्वर्गीय रामविलास जी की एलजेपी है, जो न सेक्युलर है न कम्यूनल…देश, काल, परिस्थिति… हवा, धूप और मौसम के हिसाब से ऐन चुनाव के पहले एलजेपी, डिसाइड करती है कि इस बार सेकुलर रहना है या कम्यूनल।
2005( अक्टूबर) एसेंबली चुनाव में एलजेपी आरजेडी के खिलाफ थी, अगली बार 2010 में आरजेडी के साथ थी, फिर 2015 में आरजेडी के खिलाफ हो गई। 2014 लोकसभा चुनाव से थोड़ा पहले (027 फरवरी 2014) 12 साल बाद रामविलास जी एनडीए में शामिल हो गए और तब से बीजेपी के साथ एलजेपी का ऐसा याराना है कि इस बार एसेंबली चुनाव में पार्टी एनडीए पार्टनर जेडीयू के खिलाफ हो कर भी बीजेपी के साथ है।
एसेंबली चुनावों में एलजेपी का रिकॉर्ड
साल | सीट | जीत | कुल वोट | कुल वोट% | सीट पर वोट% |
2015 | 42 | 02 | 18,40,834 | 4.83% | 28.79 |
2010 | 75 | 03 | 19,57,232 | 6.74% | 21.78 |
2005 oct | 203 | 10 | 26,15.901 | 11.10% | 13.22% |
एलजेपी बिहार की अकेली पार्टी है जिसका वोट बैंक बीते दस साल में गिरकर आधे से भी कम रह गया है। बड़ा होने के लिए ये इस वक्त बिहार की सबसे बेचैन पार्टी है। वो महज सीट या वोट प्रतिशत के लिए नहीं, अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
एक अक्टूबर तक चिराग एनडीए के साथ थे…बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा और महासचिव भूपेंद्र यादव को कम से कम ऐसा ही लगता था। तीन दिन बाद, जैसा कि बिहार में कई जानकारों को पहले से ही आशंका थी … चार अक्टूबर को चिराग की अंतरात्मा जाग गई, उन्होंने बिहार और बिहारियों को सबसे आगे रखने की मुहिम के तहत एनडीए में रहते हुए जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया।
चिराग (Chirag) का गेम प्लान क्या है ?
चिराग को लगता है कि बिहार में इस बार का चुनाव एनडीए बनाम गठबंधन नहीं, नीतीश कुमार बनाम अन्य है। बीजेपी के साथ और नीतीश कुमार के मुखालिफ रह कर वो इस अन्य में अपना हिस्सा तलाश रहे हैं। प्लान ये है कि अगर बीजेपी को जेडीयू से ज्यादा सीटें मिलती हैं और एलजेपी दहाई के आंकड़े को पार कर लेती है तो चिराग बीजेपी का सीएम बनाने के लिए किंगमेकर बन सकते हैं। तब उनके पास दो विकल्प होंगे-एक केंद्र सरकार में पिता की जगह मंत्री बनना या बिहार का डिप्टी सीएम बनना। चिराग 2025 एसेंबली चुनाव की बड़ी तस्वीर सामने रख कर फैसला लेंगे। बीजेपी और जेडीयू में बड़े कद का युवा चेहरा नहीं है। लालू और नीतीश के सामने, बिहार का सीएम बनने का जो सपना स्वर्गीय रामविलास पूरा नहीं कर पाए, वो बेटा चिराग पूरा करेगा।
नीतीश से क्यों नाराज हैं चिराग(Chirag) ?
नीतीश ने 2007 में महादलित कमीशन के जरिए पासवान और पासी समुदाय को बाहर कर जिस तरह बिहार के सबसे बड़े दलित नेता के तौर पर रामविलास पासवान की दावेदारी को एक तरह से खत्म कर दिया था, उसका बदला भी इस तरह पूरा हो जाएगा। तीन साल पहले पासवान को महादलित में शामिल कर नीतीश ने गिला-शिकवा दूर करने की कोशिश भी की, लेकिन रामविलास जान गए थे कि दलितों के मसीहा के तौर पर जो जमीन उन्होंने जिन्दगी भर की मेहनत से तैयार की थी, नीतीश ने वो जमीन उनके जीते जी ही उनसे छीन ली थी।
2015 एसेंबली चुनाव-SC की 38 सीटों पर पार्टियों की स्थिति
पार्टी | RJD | JDU | BJP | INC | CPI(ML)(L) | BLSP | HAMS | IND |
सीट | 14 | 10 | 05 | 05 | 01 | 01 | 10 | 01 |
2015 बिहार एसेंबली में एलजेपी के दो विधायक जरूर बने, लेकिन उस दलित समुदाय से एक भी नहीं जिसकी देश भर में अगुवाई का रामविलास दावा करते थे।
SC में सबसे ज्यादा तादाद रविदास की है। 13 रविदासों में पांच अकेले आरजेडी के पास हैं तो तीन कांग्रेस के पास। बीजेपी और जेडीयू के पास रविदास की दो सीटें हैं। चिराग जिस पासवान समुदाय से आते हैं उसकी 11 सीटों में 4 आरजेडी, 4 जेडीयू के पास है। कांग्रेस, बीजेपी और आरएलएसपी के पास एक-एक सीट है। जाहिर है इस चुनाव के जरिए दलित समुदाय में चिराग नए सिरे से अपनी पहचान तलाश कर रहे हैं।
क्या एलजेपी(Chirag) बीजेपी की बी टीम है?
एक अरसे से बीजेपी की स्टेट यूनिट मांग कर रही थी कि नीतीश कुमार इस बार नई पीढ़ी के लिए गद्दी छोड़ें और किसी दूसरे शख्स को जेडीयू के सीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश करें, लेकिन नीतीश इसके लिए राजी नहीं हुए। इसके बाद बीजेपी के कई नेताओं ने जेडीयू का साथ लिए बगैर चुनाव लड़ने की मंशा जताई, लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दुविधा में था। हरियाणा में अकेले लड़े तो बहुमत से दूर रह गए, महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ लड़े तो जीत के बाद शिवसेना सीएम पद के लिए अड़ कर अलायंस से ही अलग हो गई। झारखंड में आजसू के बगैर लड़े तो निश्चित जीत हार में बदल गई । लिहाजा बिहार में अलग होने का जोखिम उठाने को पार्टी तैयार नहीं हुई ।
नीतीश के साथ मंच पर पहली बार मोदी जी नजर आए तो उन्होंने स्वर्गीय रामविलास को श्रद्धांजलि दी। कुछ लोग इसे महज संयोग मानते हैं, लेकिन मौका चुनाव का हो तो हर संयोग दरअसल एक प्रयोग होता है। संदेश ये था कि हे बिहार के वोटर ! तुमको जेडीयू पसंद है तो उसे वोट दो, बीजेपी पसंद है तो उसे वोट दो, अगर तुम्हें इन दोनों में कोई पसंद नहीं तो एलजेपी को वोट दो। जिस तरह गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि सारे मुनष्य अंत में मुझे ही प्राप्त होते हैं, उसी तरह सारे वोट मुझे ही प्राप्त होते हैं।
कोई पार्टी विरोधियों से लड़कर नहीं, अंतर्विरोध के सामंजस्य से बड़ी होती है। जैसे मुलायम सिंह यादव ने कभी प्रदेश के मुसलमानों के बीच आजम खान का किरदार तैयार किया था। या तो आप आजमखान के साथ हैं या फिर उनके धुरविरोधी अखिलेश के साथ…दोनों स्थितियों में आप मुलायम के ही साथ हैं।
जिनका टिकट बीजेपी से कट गया, उन्हें एलजेपी का टिकट मिला, जिनका जेडीयू से टिकट कट गया, उन्हें भी एलजेपी का टिकट मिला, जिनका आरजेडी या कांग्रेस से टिकट कट गया उनको भी एडजस्ट कर रही है एलजेपी। एलजेपी एडजस्ट हो गई तो जेडीयू का जो हो, बिहार में बीजेपी एडजस्ट हो जाएगी।
इस बार का चुनाव एनडीए के लिए पहाड़ से संजीवनी बूटी लाने की तरह है। चिराग यूं ही खुद को मोदी जी का हनुमान नहीं बता रहे। अगर नीतीश कुमार को पिर से सीएम बनना है तो चिराग उनकी आखिरी उम्मीद हैं और इसी चिराग को आप नीतीश के दुश्मन की तरह देखते आए हैं। जो दिखता है यहां, अक्सर वो होता नहीं है, और जो कहा जाए वो तो यकीनन नहीं होता…. ये है बिहार की राजनीति।