यूरोप के नए पेशेंट जीरो से क्यों परेशान है चीन ?

यूरोप में कोरोना से 1.42 लाख मौतें होने के बाद पता चला है कि 23 जनवरी 2020 को फ्रांस में पेरिस के जिन दो मरीजों में से एक को यूरोप का पेशेंट जीरो माना जा रहा था, वो पेशेंट जीरो यानी कोरोना का पहला मरीज था ही नहीं।
कौन है यूरोप का पेशेंट जीरो ?
फ्रांस में पेरिस के पास के एक अस्पताल में 42 साल के एक मछुआरे को 27 दिसंबर को फ्लू जैसे सिमटम को लेकर भर्ती किया गया था। उसे कफ, सरदर्द और बुखार की शिकायत थी। दो दिन तक एंटीबायोटिक देकर उसे छुट्टी दे दी गई। लेकिन जांच के लिए उसके कुछ सैंपल रख लिए गए थे। पेशेंट जीरो की तलाश में दिसंबर और जनवरी के पहले दो हफ्तों के 24 फ्लू जैसे सिमटम वाले मरीजों के रिकार्ड फिर से खंगाले गए और इन फ्रोजन सैंपल का कोरोना वायरस टेस्ट किया गया। इनमें से एक का टेस्ट पॉजिटिव आया।
नए पेशेंट जीरो से क्या फर्क पड़ता है ?
- पेशेंट जीरो के पता लगने से ये समझने में सहूलियत होती है कि अब तक ये वायरस कितनी बार म्यूटेट हुआ है यानी इसने अपना रूप बदला है।
- यूरोप में वायरस आने की तारीश बदल गई – अब तक ये तारीख थी 24 जनवरी 2020 अब ये तारीख एक महीना पहले की हो गई यानी 27 दिसंबर 2019.
- अब तक ये माना जा रहा था कि जनवरी के आखिर में चीन के वुहान से आए कुछ लोगों से फ्रांस समेत समूचे यूरोप में कोरोना वायरस फैला। नई जांच से पता चल रहा है कि ये वायरस तो एक महीना पहले ही फ्रांस में मौजूद था।
- जिस शख्स को ये संक्रमण हुआ उसका संपर्क न तो चीन के वुहान से था न ही इटली से। यानी जो वायरस दुनिया के कई देशों में एक साथ जनवरी के आखिरी हफ्ते में सामने आया वो एक महीना पहले ही फ्रांस या शायद दुनिया के कई और देशों जैसे अमेरिका में भी अपने जड़ें जमा चुका था।
चीन का झूठ आया सामने
चीन ने 31 दिसंबर 2019 को WHO को वुहान में निमोनिया जैसी बीमारी के बारे में पहली बार बताया था। 7 जनवरी 2020 को चीन ने इसे नोवेल कोरोना वायरस करार देते हुए नाम दिया 2019-nCoV”. चीन में इस वायरस की शुरूआत को लेकर कई सवाल हैं। चीन के कई साइंटिस्ट कहते आए हैं कि पहला केस 1 दिसंबर 2019 को आया। वहीं South China Morning post की रिपोर्ट में कहा गया कि चीन की सरकार के पास डाटा है जिससे पता चलता है कि 17 नवंबर को पहला केस रिपोर्ट हुआ था। अब यूरोप के पेशेंट जीरो के 27 दिसंबर को संक्रमित होने से चीन पर लगा ये आरोप और पुख्ता होता है कि चीन पहले से कोरोना के बारे में जानता था, वो सारी तैयारी कर रहा था, लेकिन दुनिया से जान बूझ कर उसने ये सूचना छिपाई। इस वजह से सारी दुनिया में लोग संक्रमित होते रहे और चीन चुपचाप अपनी तैयारी करता रहा। चीन के साइंटिस्ट को ये बताने में कि ये वायरस इनसान से इनसान में फैल सकता है, 20 January तक का वक्त लग गया और तब तक दुनिया के 200 से ज्यादा देश इस वायरस से संक्रमित हो चुके थे।
यूरोप में कई वायरोलॉजिस्ट मानते हैं कि अल्जीरियाई मूल के इस शख्स को यूरोप का पेशेंट जीरो मानना अभी शायद जल्दबाजी होगी, लेकिन आशंका ये भी है कि अगर नवंबर महीने के सैंपल टेस्ट हुए तो वायरस की ये कहानी और पीछे जा सकती है। यही अभी चीन का सबसे बड़ा डर है। क्या इसी डर से चीन बीते कुछ महीने से लगातार लोप नूर में टैक्टिकल न्यूक्लियर वीपन या बड़े बम के ट्रिगर के लिए किए जाने वाले जीरो यील्ड न्यूक्लियर टेस्ट कर रहा है?