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चीन ये क्यों नहीं बता रहा कि गलवान में उसके कितने सैनिक मरे?

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चीन ये क्यों नहीं बता रहा कि गलवान में उसके कितने सैनिक मरे?

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गलवान में घायल 22 सैनिकों की हालत अब स्थिर है और लेह के मिलिटरी अस्पताल में इनका इलाज चल रहा है। 58 सैनिकों को मामूली चोट लगी है। उम्मीद है, अगले कुछ दिनों में वे पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगे। 34 सैनिकों का पता नहीं चल रहा है, आशंका है कि चीनियों ने इन्हें अपनी कस्टडी में रखा है।

भारत और चीन में, एक लोकतंत्र और कम्यूनिस्ट देश में क्या फर्क है, ये गलवान घाटी की जंग में पूरी तरह साफ नजर आ रहा है।

चीनी सैनिकों को मारते हुए हमारे बीस सैनिक शहीद हो गए। सभी सैनिकों को भारत सरकार ने शहीद का सम्मान दिया, जनता को, शहीदों के परिवार को पूरी जानकारी दी।

वहीं चीन में अब तक वहां की सरकार ने ये तक कबूल नहीं किया है कि भारत और चीन के बीच संघर्ष हुआ है। चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के अखबार पीपुल्स डेली, चीनी सेना के अखबार पीएलए डेली में इस घटना का कोई जिक्र नहीं है, ग्लोबल टाइम्स ने खबर दी भी तो 16वें पेज पर । ये तब है जबकि 1989 में वियतनाम युद्ध के बाद पहली बार चीनी सैनिक किसी युद्ध में मारे गए हैं। और ये तादाद भी कोई छोटी नहीं है। अमेरिकी सूत्रों और चीनी रेडियो इंटरसेप्ट से पता चला है कि 35 से 43 चीनी सैनिक गलवान में हुई लड़ाई में मारे गए हैं।

चीन में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता Zhao Lijian से चीनी पत्रकारों ने जब इस बारे में आंकड़ा देने को कहा तो झाओ ने बस इतना ही कहा

...border troops are jointly resolving the issue on the ground, and the overall situation in the China-India border area is stable. 

इसके पहले चीन सरकार की आवाज के तौर पर जाने वाले global times ने कहा था

It is noteworthy that the Chinese side did not disclose the number of casualties of the Chinese military, a move that aims to avoid comparing and preventing confrontational sentiments from escalating.

लेकिन ये पूरा सच नहीं है

अमेरिका के MIT में चीनी सेना के एक्सपर्ट Taylor Fravel का कहना है

ये चीन का तरीका है। चीन किसी देश के खिलाफ जंग में अपने सैनिकों की मौत का आंकड़ा जल्द सार्वजनिक नहीं करता। 1962 में भारत के साथ युद्ध में मरे अपने सैनिकों के बारे में पहली बार उसने 1994 में बताया था..वो भी इसलिए क्योंकि चीन में इस लड़ाई का आधिकारिक इतिहास प्रकाशित किया जा रहा था।

गलवान में मरने वाले चीनी सैनिकों की तादाद को नहीं बताने की वजह का जिक्र south china morning post  में पत्रकार Minnie Chan ने अपने एक लेख में किया है। चान के मुताबिक इसकी तीन वजहें हैं।

पहली वजह वो कानून है जिसके तहत चीनी सैनिकों के हताहत होने की तादाद की जानकारी देने का अख्तियार चीन में सिर्फ एक शख्स चीन के प्रेसीडेंट शी जिनपिंग को है, जो चीन के सेंट्रल मिलिटरी कमीशन के भी मुखिया हैं। इस कमीशन की मंजूरी मिलने के बाद ही चीन सरकार इस आंकड़े को आधिकारिक तौर पर जारी करती है।

दूसरी वजह है अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो और चीन के विदेश विभाग के निदेशक Yang Jiechi के बीच हवाई में प्रस्तावित मुलाकात। चीन के लिए अमेरिका से ये बातचीत बेहद अहम है, लिहाजा वो गलवान संघर्ष को तूल न दे कर इस बातचीत के लिए उपयुक्त माहौल बनाना चाहता है।

तीसरी वजह गलवान है। गलवान वो जगह है जहां 1962 की जंग में चीनी सेना के सबसे ज्यादा सैनिक मारे गए थे। चीनी सोशल साइट वाइबो में हो रही चर्चा के मुताबिक दो हजार से ज्यादा चीनी सैनिक गलवान में मारे गए थे। वाइबो पर चीनी सेना और नेताओं के ग्रुप  गलवान को लेकर बहुत ज्यादा एक्टिव हैं

 Weibo पर मंगलवार को China-India border clash सबसे आगे ट्रेंड कर रहा था, इस खबर को 1.05 billion व्यूज और चीनियों के 1,10,000 से ज्यादा कमेंट मिले।

सोशल साइट पर राष्ट्रवाद के उभार से चीनी सरकार दबाव मैं आ गई है।  चीनी सेना के वेस्टर्न कमांड के प्रवक्ता Colonel Zhang Shiuli  के हालिया बयान को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। कर्नल ने कहा-

 “The sovereignty over the Galwan valley area has always belonged to China.

वहीं पूर्व विदेश सचिव निरूपमा राव चीन के ताजा रुख को खतरा मान रही हैं

Chinese statement minces no words. The gloves are off. It is in tradition of communications received from Chinese after border dispute erupted in 1959 & there were skirmishes in Western & Eastern Sectors. Both Indian Army & MEA statements of Tuesday sound much milder, almost anodyne.”

 “Chinese always present themselves as injured party & blame opposite side for the consequences. A dark hour like this with all the blood that has been shed is suc  a dreadful tragedy. Efforts  made for normalization since 1976 have come to nought.” “There’s a bad moon rising on India China relations“.

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