जान चली जाए, रिया नहीं जाए
झारखंड के खूंटी की एक बच्ची के साथ छह साल तक देश की राजधानी दिल्ली में गैंगरेप हुआ…खबर ये भी बड़ी हो सकती थी, लेकिन बीते दो महीने से देश की सबसे बड़ी खबर है… रिया ….
जो मीडिया सरकार से कोरोना, जीडीपी, बैंकों के बिकने पर सवाल नहीं कर सकता, वो कितनी तसल्ली के साथ रिया के व्हाट्सएप चैट दिखाता है। इनकी कायरता का अंदाजा भी आप नहीं लगा सकते, लेकिन रजोनिवृत एंकराओं में परपीड़ा का आनंद फिर भी सामने आ ही जाता है। रिया की हर खबर के लिए इनमें इंतजार और बेचैनी कुछ ऐसी जैसे हर अधेड़ औरत के अंदर छिपी उस लड़की की होती है जो हर दिन प्यार के उस खत का इंतजार करती रहती है जो कभी नहीं आया।
खबरों की दुनिया के ये खबरी दरअसल उस पुजारी, पादरी या मौलवी से अलग नहीं, जो किसी डॉक्टर या साइंटिस्ट के मुकाबले अपनी जिंदगी का ज्यादा वक्त हर रोज किताबों के साथ बिताते हैं फिर भी उनकी आस्तिकता उन्हें इतना बुद्धिमान नहीं बनाती कि वो कुछ खोज सकें या आविष्कार कर सकें
हमारे यहां खबर बनने के लिए घटना का होना काफी नहीं है, निर्देश, संदेश या आदेश… जरूरी है। जैसे 21 मार्च को गृह मंत्रालय का राज्य सरकारों को तब्लीगी जमात के 824 विदेशियों की-‘’ to identify, screen and quarantine’’ वाला खत। इसका असर ऐसा हुआ कि हफ्ते भर में मीडिया और स्वास्थ्य मंत्रालय की ब्रीफिंग में हर दिन राज्यों में कोरोना के कुल मामलों के साथ-साथ ये भी बताया जाने लगा कि इनमें से कितने मामले तब्लीगी जमात से जुड़े थे। दिल्ली में 955 विदेशियों पर मुकदमा चला। Rebecca John और Ashima Mandla की दलील सुन कर साकेत कोर्ट ने 8 आरोपियों को छोड़ते हुए माना कि इनके खिलाफ कोई ‘’ prima facie evidence” पुलिस के पास नहीं था। इसी तरह का मामला बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच के पास आया। कोर्ट ने 29 आरोपियों को बरी करते हुए कहा –
‘’The record of this matter and the submissions made show that action of central government was taken mainly against Muslim persons who had come to Markaz Delhi for Tablighi Jamaat. Similar action was not taken against other foreigners belonging to other religions. This action indirectly gave warning to Indian Muslims that action in any form and for anything, can be taken against Muslims. It was indicated that even for keeping contact with Muslims of other countries, action will be taken against them. Thus, there is smell of malice to the action taken against these foreigners and Muslims for their alleged activities”.
Bombay high court
तब्लीगी जमात पर मीडिया के शोरगुल में 26 मार्च को कैबिनेट सेक्रेटरी Rajiv Gauba के उस खत पर शायद ही किसी ने गौर किया जिसमें उन्होंने कहा था कि 18 जनवरी से 23 मार्च के बीच भारत आए international air travelers में से 15 लाख को न हम मॉनिटर कर पा रहे न सर्विलांस। मीडिया और सरकार के लिए जाहिर है दो हजार के करीब तब्लीगी जमात के लोग, इन पंद्रह लाख लोगों से ज्यादा अहम थे, लेकिन विदेश मंत्रालय को ईरान से आइवरी कोस्ट तक घाना से तंजानिया तक, 30 से ज्यादा देशों से अपने बिगड़े रिश्ते संभालने में क्या मेहनत करनी पड़ रही है, ये उन से पूछिए।
अब रिया के मामले को एक बयान और एक तस्वीर से समझिए
जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने सुशांत मौत की सीबीआई जांच का आदेश दिया उस दिन रिया को उसकी औकात बताने वाले गुप्तेश्वर पांडेय ने अपनी दिली खुशी का इजहार किया। सोचने वाली बात ये है कि… 11 साल पहले बीजेपी से बिहार में लोकसभा का टिकट पाने में नाकाम रहने वाले पांडेय बिहार पुलिस के डीजीपी हैं और जांच का काम उनसे लेकर एक दूसरी एजेंसी को दिए जाने का अदालत ने आदेश दिया था।
अब इस तस्वीर को देखिए और समझिए ….
हमारे देश में गुरुदत्त, दिव्या भारती या परवीन बॉबी की मौत की जांच नहीं हुई लेकिन सीबीआई से लेकर ईडी और एनसीबी तक अगर सुशांत की मौत की गुत्थियों को सुलझाने में एकाएक व्यस्त हो गई है तो उसकी वजह सुप्रीम कोर्ट का सीबीआई जांच का आदेश तो है ही, इसके साथ ही बिहार एसेंबली का चुनाव भी है।
बिहार के एसेंबली चुनाव में बीजेपी के लिए सुशांत की मौत सबसे बड़ा एजेंडा है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पार्टी ने -“ न भूले हैं, न भूलने देंगे” वाले 25 हजार कार स्टिकर और 30 हजार मास्क अपने कार्यकर्ताओं में बांटे हैं। सुशांत पर दो एपिसोड का वीडियो जल्द पार्टी सोशल मीडिया पर जारी करने वाली है। इसके अलावा पार्टी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से राजीवनगर चौक और राजगीर फिल्म सिटी का नाम सुशांत के नाम पर रखने की सिफारिश की है। इससे Times of India की वो खबर कहीं पीछे छूट गई है जिसके मुताबिक RJD के तेजस्वी यादव ने सबसे पहले सुशांत मौत की सीबीआई जांच की मांग उठाई थी।
बिहार चुनाव में मुद्दे के तौर पर कोरोना के बढ़ते मामले हैं, प्रवासी मजदूरों की वापसी को लेकर सरकार की बेरुखी है, 16 जिलों में 83 लाख लोगों की जिन्दगी को तबाह करने वाली बाढ़ है, डबल एंटीइनकमबैंसी फैक्टर है और 2015 के बराबर सीटों की मांग को लेकर LJP- JDU की तकरार है। बीजेपी को उम्मीद है कि सुशांत फैक्टर मे इतना दम है कि पार्टी अपने दम पर सरकार बना सकती है। कोरोना को रोकने में नाकामी, लॉकडाउन में करोड़ों नौकरियों का छिनना, चीन की घुसपैठ, जीडीपी का -23.9% होना पीछे रह जाएंगे और जनता जेडीयू बीजेपी को चुनाव में जीत दिला कर सुशांत को इन्साफ दिलाएगी।
शाबास इंडिया!
रिया के पिता इंद्रजीत चक्रवर्ती फौज के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल हैं —उनकी बधाई में सरकार के साथ-साथ आप भी शामिल हैं ….
अब तक आप खबर को बनते हुए देखते रहे हैं, अब पहली बार एक खबर के मरने की तारीख जान लीजिए। बिहार एसेंबली के लिए पिछला चुनाव 12 अक्टूबर से 5 नवंबर 2015तक चला था और 9 नवंबर को नतीजे आए थे। 29 नवंबर से पहले नई एसेंबली के गठन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए इस बार शायद 15 या 20 को वोटिंग का आखिरी दिन हो। लिख कर रख लीजिए… इस दिन के बाद सुशांत के मौत की कोई खबर आप नहीं सुनेंगे। तब तक पश्चिम बंगाल से एक नई खबर की तलाश पूरी हो चुकी होगी।