कोरोना बोल रहा है, सरकार खामोश है!
कोरोना बोल रहा है, या यूं कहें कि चीख रहा है, लेकिन सरकार खामोश है। विरोधी पार्टियों पर गरजने वाली सरकार, पाकिस्तान पर बरसने वाली सरकार, चीन को लाल आंखें दिखाने वाली सरकार खामोश है। कोरोेना पर देश की तैयारी को लेकर न प्रधानमंत्री कुछ कहते हैं, न स्वास्थ्य मंत्री, न राज्यों के मुख्यमंत्री। इतना सन्नाटा क्यों है भाई ? ताली और थाली वाले लोग अब राम मंदिर के गुंबदों की संख्या की बात कर रहे हैं, राजस्थान के भविष्य की चिंता कर रहे हैं। केंद्र हो या राज्य सरकार, वर्चुअल रैलियां हो रही हैं, बस… कोरोना किसी पार्टी की चिंता में शामिल नहीं है।
देश भर के डॉक्टरों का संगठन IMA दावा कर रहा है कि हमारे यहां कोरोना का कम्यूनिटी स्प्रेड शुरू हो गया है।
संक्रमण तेजी से फैल रहा है। अब यह ग्रामीण इलाकों में फैल रहा है। यह खतरनाक संकेत है, जो सामुदायिक प्रसार को दर्शाता है। हम इसे दिल्ली में रोकने में सक्षम थे, लेकिन यह महाराष्ट्र, केरल, गोवा, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के सुदूर गांवों में कैसे संभव होगा, जहां नए हॉट स्पॉट बन सकते हैं?
डॉ वी के मोंगा, चेयरमैन,IMA हॉस्पीटल बोर्ड
लेकिन सरकार इसे खारिज कर रही है। अगर बात बीमारी की हो तो आपको डॉक्टर की सुननी चाहिए या नेता की? जाहिर है डॉक्टर की। लेकिन समझने वाली बात ये है कि कम्यूनिटी ट्रांशमिशन देश में है या नहीं, इस बारे में अगर किसी को बोलना चाहिए तो वो है देश में डॉक्टरों की सर्वोच्च संस्था ICMR ।
ICMR खुद को सरकार के प्रति जवाबदेह मानता है, इसलिए खामोश है, अगर वो जनता के प्रति जवाबदेह खुद को महसूस करता तो सही तस्वीर पेश कर सकता था..शायद कुछ उसी तरह जैसे अमेरिका में Anthony Fauci जैसे वायरोलॉजिस्ट स्वतंत्र तौर पर अपनी राय का खुल कर इजहार करते हैं।
सरकार को कम्यूनिटी स्प्रेड पर ज्ञान देने की जगह, ये बताना चाहिए कि अगर हालात और ज्यादा खराब हो रहे हैं, जो नजर आ रहा है कि हो रहे हैं, तो ऐसे में हमारी आगे की तैयारी क्या है? हमारे पास अगले तीन महीने या छह महीने तक कोरोना से निबटने की योजना क्या है? हम डोर टू डोर टेस्टिंग की क्षमता क्या कभी विकसित कर पाएंगे? अस्थायी अस्पतालों की व्यवस्था जो अब तक महानगरों में ही नजर आई है, क्या हम उसकी व्यवस्था छोटे शहरों में करने की योजना पर काम कर रहे हैं? अगर कम्यूनिटी स्प्रेड शुरू हो गया है तो ग्रामीण स्तर पर हम इसे किस तरह निबटने की योजना बना रहे हैं? हर राज्य की सरकार अलग-अलग दर पर वेंटिलेटर, ऑक्सीमीटर, पीपीई किट खरीद रही है। हिमाचल से कर्नाटक तक कई जगह इस आपदा खरीद में घोटाले की बात सामने आई है, क्या कोरोना खरीद की पारदर्शी केंद्रीकृत व्यवस्था हो सकती है?
सवाल कई हैं, जवाब कोई नहीं।
दुनिया मे कोरोना संक्रमण के मामले 1.5 करोड़ के करीब हैं। मौत का आंकड़ा 6 लाख के पार चला गया है। भारत में लगातार पांचवें दिन संक्रमण 30 हजार के पार गया है। रविवार को 40425 संक्रमण के साथ, देश में पहली बार एक दिन में संक्रमण के मामले 40 हजार के पार हुए हैं। चार राज्य महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में रोजाना संक्रमण के रिकार्ड मामले दर्ज किए गए हैं।
चार राज्यों में रिकार्ड संक्रमण
- महाराष्ट्र 9,518 नए मामले कुल 3,10,455
- तमिलनाडु 4,979 नए मामले कुल 1,70,693
- कर्नाटक 4,120 नए मामले कुल 63,772
- केरल 821 नए मामले, कुल 12480
लेकिन जो स्थिति आगे नजर आ रही है, वो और ज्यादा भयावह है। Lancet की स्टडी में दावा किया गया है कि तेलंगाना और उत्तर भारत के राज्यों में पीक तो अभी आया ही नहीं है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में स्थिति आने वाले वक्त में विस्फोटक होने वाली है। ये देश के वो राज्य हैं जो देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से हैं और कोरोना से निबटने की इनकी तैयारी सबसे कम है।
बिहार में राज्य सरकार कोरोना की रोकथाम पर 9 हजार करोड़ खर्च करने का दावा कर रही है, लेकिन अभी तक वहां सिर्फ तीन कोविड सेंटर हैं, और इनमें मरीजों के लिए सिर्फ 15 सौ के करीब बेड हैं।
झारखंड में कोरोना से सबसे ज्यादा मौतों वाले शहर रांची में सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में जांच बंद है। रविवार को यहां रिम्स के ट्रू नेट और निजी जांच केंद्रों में महज 232 सैंपल की टेस्टिंग हुई जिसमें 32 मरीज संक्रमित पाए गए।
ये है हमारी तैयारी ….जबकि जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में कोरोना की रेखा लगातार ऊपर की ओर जा रही है।
साफ है कि कोरोना पीक ( वो तारीख जिसके बाद कम से कम 14 दिन लागातार रोजाना संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं ) के आस-पास भी हम अभी नहीं पहुंचे हैं।,
केंद्र सरकार का दावा है कि देश में कोरोना से होने वाली मौत की दर CFR case fatality rate घट कर 2.49% हो गई है, जो दुनिया के औसत 3.41% (18 july) से कम है। मई में भारत में ये दर 3.23% थी। 14 राज्यों में CFR 1% से कम है।
औसत वाले इन 2.49% के आंकड़ों में क्या ये बात खुल कर सामने आती है कि हमारे यहां कई मरीज हैं जो इस लिए मर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लेने एम्बुलेंस नहीं आती, वो अस्पताल किसी तरह पहुंच भी जाते हैं तो उन्हें कई बार ऑक्सीजन सिलेंडर या वेंटिलेटर नहीं मिल पाता, उनके परिवार वाले चाह कर भी रेमडेसिविर का महंगा इंजेक्शन नहीं खरीद पाते….कई बार तो उनकी मौत अस्पताल के गेट के बाहर हो जाती है, क्योंकि उन्हें अस्पताल में दाखिला नहीं मिलता। रविवार तक हमारे देश में जिन 27497 लोगों की कोरोना से मौत हुई है, उनमें से हर मौत केंद्र और राज्य सरकार की…काबिलियत, तैयारी, और आम लोगों के स्वास्थ्य और उनकी जिंदगी को लेकर चिंता पर बड़ा सवाल है।