शुद्ध देसी मौत!
पंजाब में अमृतसर से 25किमी दूर मुछल गांव में जहरीली देसी शराब पीने से चार लोगों की मौत हो गई है। परिजनों का आरोप है कि ये जहरीली शराब गांव में ही बनाई गई थी, लेकिन देसी शराब का कारोबार करने वालों पर पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती। गांव के लोगों का कहना है कि चार नहीं कुल 6 लोगों की मौत हुई है, इनमें से एक कुलदीप की उम्र महज 24 साल थी। छह मरने वालों में एक बात समान थी कि वो सभी बेहद गरीब थे, BPL थे।
आंध्रप्रदेश के प्रकाशम में सात लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो गई। ये शराब सैनिटाइजर से अल्कोहल निकाल कर बनाई गई थी। मरने वालों में तीन भीख मांग कर गुजारा करते थे।
11अप्रैल 2020 -यूपी के कानपुर में दो लोगों की जहराली शराब पीने से मौत हो गई।
20 सितंबर 2019- देहरादून में नकली शराब पीने से छह लोगों की मौत । फरवरी 19 में इसी तरह के एक मामले में यूपी में 67 और उत्तराखंड में 37 लोगों की मौत हो गई थी।
फरवरी 19 में असम में जहरीली शराब पीने से गोलाघाट और जोरहाट में 155 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में 45 महिलाएं थीं। 268 लोगों को अस्पताल में दाखिल किया गया ।
सरकार क्या कर रही है ?
2 जनवरी 2020 को गृह मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को जहरीली शराब का नेटवर्क खत्म करने के लिए जिला स्तर पर स्पेशल टीम गठित करने का निर्देश दिया।
असम, यूपी और उत्तराखंड में फरवरी 2019 में जहीरीली शराब पीने से हुई मौतों के बाद NHRCने गृह मंत्रालय को कहा था कि सभी राज्यों के DGP को जहरीली शराब की बिक्री रोकने के लिए पुलिस पेट्रोलिंग बढ़ाने और आरोपियों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाए।
क्या हमारे यहां लोगों को शराब पीने से मरना चाहिए ?
नहीं ..अगर केंद्र और राज्य सरकारें शराब से होने वाली मौत के आंकड़े गौर से देखती या कम से कम संविधान की भावना का ही सम्मान करती। संविधान के अनुच्छेद 47 में लिखा है –
राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकर ओषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा” (State shall endeavour to bring about prohibition of the consumption except for medicinal purposes of intoxicating drinks and of drugs which are injurious to health
2016 में शराब पीने से हुई लीवर सिरोसिस बीमारी से 1.6 लाख लोगों की मौत हो गई।
2018 में WHO की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 2.6 लाख भारतीय अल्कोहल पीने से मरते हैं। इसकी एक वजह राज्यों के कानून में एकरुपता का अभाव भी है, जैसे अभी तक हमारी सरकारें ये तक तय नहीं कर पाईं, कि शराब पीने की उम्र क्या हो? महाराष्ट्र में शराब पीने की उम्र 25 साल है तो गोवा में 18 साल।
NCRB यानी National Crime Records Bureau के मुताबिक 2015 में 1,522 लोगों की मौत अवैध नकली शराब पीने से हुई। ये आंकड़े साल दर साल वक्त पर जारी होने चाहिए, लेकिन नहीं किए जाते।
ये तब है जबकि NCRB की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के प्रति अपराध के 85% मामले शराब से जुड़े हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सम्मान में गुजरात में 1961 से शराब पर प्रतिबंध है। बाद में इसे बिहार, लक्षद्वीप, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड की सरकार ने लागू किया । केरल में कांग्रेस सरकार ने शराबबंदी की, तो वाम मोर्चा सरकार ने रद्द कर दिया। आंध्रप्रदेश ने पिछले साल धूम-धाम से शराबबंदी का ऐलान किया था..कोरोना काल में शराबबंदी टैक्स लगाकर इसे खत्म कर दिया।
18 फरवरी 2019 को जारी सरकारी सर्वे में बताया गया कि देश में 16 करोड़ लोग नियमित तौर पर शराब पीते हैं, इनमें 30% देसी शराब पीते हैं।
सरकार चाहती है जनता शराब पिए, टैक्स दे, बस.. पी कर मरे नहीं
RBI की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019-20 में राज्यों को एक्साइज ड्यूटी के तौर पर शराब से 1,75,501.42 करोड़ मिलने का अनुमान है। पिछले साल 2018 के 1,50,657.95 करोड़ से 16% ज्यादा।
साल 2018-19 में शराब से एक्साइज ड्यूटी
राज्य | शराब से एक्साइज ड्यूटी |
यूपी | 25,100 करोड़ |
कर्नाटक | 19,750 करोड़ |
महाराष्ट्र | 15,343.08 करोड़ |
पश्चिम बंगाल | 10,554.36 करोड़ |
तेलंगाना | 10,313.68 करोड़ |
अवैध देसी शराब की मौत का सबसे बड़ा सच क्या है?
देश में आज तक कहीं भी देसी शराब के सरकारी ठेके से शराब पी कर किसी की मौत नहीं हुई है, लेकिन सस्ते नशे की चाह में जो गरीब सरकारी ठेके से देसी शराब नहीं खरीद पाते, वो और ज्यादा सस्ती अवैध देसी शराब पीते हैं और अपनी जान गंवा बैठते हैं।
ये अवैध देसी शराब है क्या ?
हमारे यहां दो तरह की शराब बनती है- देसी और IMFL इंडियन मेड फॉरेन लिकर। दोनों तरह की शराब का एक ही बेस होता है ईथाइल अल्कोहल जो डिस्टीलरी में तैयार होता है और जिसकी बूंद-बूंद का हिसाब एक्साइज डिपार्टमेंट रखता है। इस पर भारी एक्साइज ड्यूटी लगती है नतीजा ये कि जिन राज्यों में शराब पर पाबंदी नहीं है, वहां राज्य सरकार को इससे बड़े राजस्व की प्राप्ति होती है। लेकिन इसी वजह से सरकारी ठेकों पर मिलने वाली देसी शराब भी रोज कमा कर खाने वाले गरीब लोगों की पहुंच से दूर हो जाता है।
कैसे बनती है अवैध देसी शराब ?
अवैध देसी शराब का मतलब उस शराब से है जिसे बनाने के लिए लाइसेंस नहीं लिया जाता और एक्साइज ड्यूटी नहीं चुकाई जाती। इसके लिए बेस के तौर पर ईथाइल अल्कोहल या मिथाइल अल्कोहल का इस्तेमाल किया जाता है। ड्यूटी चोरी करके बिना हिसाब वाले टैंकर या चोरी के टैंकर से जो ईथाइल अल्कोहल खरीदी जाती है वो अक्सर डीनेचर्ड ईथाइल अल्कोहल होती है जो अलग-अलग इंडस्ट्री जैसे केमिकल इंडस्ट्री के काम में आती है। इसका दुरूपयोग न हो इस वास्ते इसे डीनेचर्ड किया जाता है यानी इसे इंसानी इस्तेमाल के नाकाबिल बनाया जाता है। इसके लिए ज्यादातर ईथाइल अल्कोहल में 0.2% क्रोटोनल डिहाइड विथ डेनोटोनियम बेंजोएट पावडर मिलाया जाता है। कुछ मामलों में 3% एसीटोन या पीरीडीन मिलाया जाता है। डीनेचर्ड ईथाइल अल्कोहल की पहचान के लिए इसमें रंग बदलने के लिए मिथाइल ऑरेंज या मिथीलीन ब्लू मिलाया जाता है। जो लोग चोरी करके ईथाइल अल्कोहल से शराब बनाते हैं वो अल्कोहल को डीनेचर करने वाले जहर को पूरी तरह निकाल नहीं पाते। नतीजा इस जहरीले शराब को पीने वालों की मौत हो जाती है।
अवैध देसी शराब बनाने वाले कई बार जैसा की असम में भी हुआ —बेस के तौर पर केमिकल इंडस्ट्री में काम वाले मिथाइल अल्कोहल का इस्तेमाल करते हैं। मिथाइल अल्कोहल इनसानी इस्तेमाल के लिए बनाया ही नही जाता…ये सिर्फ इंडस्ट्री में इस्तेमाल करने के लिए बनाया जाता है। लिहाजा मिथाइल अल्कोहल से बनने वाला शराब भी कई बार जहरीला होता है और मौत की वजह बन जाता है।
कभी-कभी चावल या महुआ जैसे फलों को फरमेंट कर यानी कई दिनों तक सड़ा कर भी देसी शराब तैयार किया जाता है। ज्यादा किक लाने के नाम पर इसमें यूरिया या नौसादर मिला दिया जाता है जिससे शराब में मौजूद केमिकल सेंट्ल नर्वस सिस्टम पर घातक हमला करता है जो शराब सेवन करने वालों को तेज किक का एहसास तो कराता है, लेकिन इसका घातक असर सीधा आंखों की रोशनी और किडनी पर होता है …ये धीमा जहर भी गरीबों की मौत की वजह बनता है।
अवैध देसी शराब पी कर मरने वालों की जान बचाने का उपाय क्या है ?
- सरकार देसी शराब पर वसूले जाने वाले टैक्स को इतना कम कर दे कि अवैध देसी शराब और सरकारी ठेके पर मिलने वाले देसी शराब की कीमत का फर्क मिट जाए। लेकिन सरकार ऐसा नहीं करती। इसे एक मिसाल से समझिए। इस साल यूपी सरकार ने देसी शराब की कीमत में 5रुपये का और IMFL में 10-50 का इजाफा किया। कहने को देसी के मुकाबले IMFL का टैक्स दोगुना किया गया, लेकिन प्रतिशत के नजरिए से जहां देसी शराब 20% तक महंगी हो गई, वहीं IMFL में मुश्किल से 05% का इजाफा हुआ। ठेके की शराब में पांच रुपये का इजाफा हजारों लोगों को अवैध देसी शराब की ओर ले जा सकता है।
2. शराब उद्योग के लिए इस्तेमाल होने वाले ईथाइल अल्कोहल और इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाले डिनेचर्ड ईथाइल अल्कोहल में फर्क करने के लिए सिर्फ एडिबल कलर मिलाया जाए, नेचर चेंजिंग केमिकल जैसे क्रोटोनल डिहाइड, डेनोटोनियम बेंजोएट, एसीटोन या पीरीडीन का इस्तेमाल बंद हो
3. अवैध शराब की वजह से होने वाली ज्यादातर मौतें ईथाइल अल्कोहल नहीं बल्कि मिथाइल अल्कोहल से होती है जिसे बाजार से खरीदने के लिए परमिट लाइसेंस अभी नहीं चाहिए। राज्य सरकारों को चाहिए कि मिथाइल अल्कोहल पर ड्यूटी बढ़ाएं और इसके लिए लाइसेंस लेना जरूरी करं ताकि ये इतना महंगा हो जाए कि इसे देसी शराब बनाने के काम में इस्तेमाल करना फायदे का धंधा न रहे।
4. स्टेट एक्साइज डिपार्टमेंट में अवैध देसी शराब का पता लगाने और छापा मारने वाली प्रीवेंटिव टीम को इस वास्ते ज्यादा इन्सेंटिव दिया जाए
5. स्थानीय थानों में LIU लोकल इंटेलीजेंस यूनिट को अवैध शराब का पता लगाने पर हाई इन्सेंटिव दिया जाए