जो इस वक्त की सबसे बड़ी खबर है, वो कहीं खबर क्यों नहीं है?
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2019 लोकसभा चुनाव के वक्त ट्वीटर पर एक ट्रेंड चला था-नाम के आगे चौकीदार लिखने का ..जाहिर है चुनाव खत्म हुआ तो साहिबी शुरू और चौकीदारी खत्म हो गई। इस वक्त ट्वीटर पर चौकीदार की जगह बेरोजगार ने ले ली है।
आप #बेरोजगार टाइप कीजिए, रोजगार की मांग करते युवाओं के एक के बाद एक ट्वीट का सिलसिला शुरू हो जाएगा। RRB, SSC, Railway के इम्तिहान की मांग करते स्टूडेंट्स, कहीं रिजल्ट की मांग करते स्टूडेंट, कहीं ज्वाइनिंग की मांग करते स्टूडेंट्स….सरकार की गुड बुक्स में रहने की ख्वाहिश थी…लिहाजा… अखबार और न्यूज चैनल्स ने इन्हें तवज्जो नहीं दी ….अब इनके लिए ट्वीटर ही विरोध का मंच है, जहां वो अपनी फरियाद रख सकते हैं और उनके दर्द को महसूस करने वाले, इन्हें कमेंट के साथ रिट्वीट कर सकते हैं।

2014 आम चुनाव में बीजेपी ने रोजगार को बड़ा मुद्दा बनाया था। हर साल एक करोड़ नौकरी देने का वायदा किया था।
The Times Of India की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2014-15 में 2.5 लाख से कम नई नौकरियां सामने आईं।
CMIE यानी centre for monitoring Indian economy – के मुताबिक जुलाई 2017 में बेरोजगारी 3.39% थी जो मार्च 2018 में बढ़कर 6.23% हो गई।
इसी तरह का अनुमान NSSO यानी national sample survey organization का था जिस के PLFS- periodic labour force survey से पता चला कि बेरोजगारी की दर 6.1% थी। 1972 के बाद ये बेरोजगारी का सबसे बड़ा आंकड़ा है। केंद्र सरकार ने अपने ही एक विभाग की ओर से जारी इन अहम आंकड़ों को खारिज कर दिया।CMIE की एक रिपोर्ट में बताया गया कि दिसंबर 2007 में जहां 40.79 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ था, वहीं साल भर बाद दिसंबर 2018 में ये आंकड़ा 1.1 करोड़ घटकर 39.7 करोड़ रह गया।सितंबर 2018 में Azim Premji University की Centre for Sustainable Employment की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत इस वक्त 20 साल की सबसे बड़ी बेरोजगारी से जूझ रहा था। इसके बावजूद सरकार के आंकड़े बताते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारों में 24 लाख पद खाली थे। 25 मार्च से देश में शुरू हुए लॉकडाउन की वजह से अप्रैल में 12.2 करोड़ लोगों की नौकरियां छिन गईं CMIE के मुताबिक अप्रैल से अब तक 1.89 करोड़ लोग नौकरियों से निकाले गए हैं।
क्या ये ऐसा मुद्दा है जिस पर संसद में बहस होनी चाहिए?