क्या फायदा ऐसी राजनीति से…???
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अब ये साफ हो गया है कि तमाम विरोधों के बावजूद मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट (NEET) और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा जेईई (JEE), सितंबर महीने में तय समय पर ही होगी। सरकारी निर्देशों के मुताबिक इंजीनियरिंग के लिये संयुक्त प्रवेश परीक्षा (मुख्य) या JEE एक से छह सितंबर के बीच होगी जबकि राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) 13 सितंबर को कराने की योजना है।
वैसे, प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस (congress) ने इस मुद्दे को हवा देने की पूरी कोशिश की, लेकिन ये मुद्दा गर्म होने से पहले ही ठंडा पड़ता दिख रहा है। वैसे राहुल गांधी ने फिर एक ट्वीट के जरिए सरकार पर निशाना साधा है, लेकिन इसे कोई गंभीरता से लेना नहीं दिख रहा। अब सभी परीक्षा की तैयारी में जुट गये हैं और केन्द्र सरकार के अनलॉक-4 के तहत दी गई छूटों की वजह से परीक्षार्थियों की चिंताएं थोड़ी कम हुई हैं।

विपक्ष ने बनाया मुद्दा
आपको बता दें कि कांग्रेस ने 28 अगस्त को केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ 28 अगस्त को देशव्यापी प्रदर्शन का ऐलान किया था। जिला मुख्यालयों और केन्द्र सरकार के कार्यालयों के बाहर नारेबाजी की योजना थी। सोशल मीडिया पर भी राष्ट्रव्यापी ऑनलाइन अभियान #SpeakUpForStudentSaftey चलाया गया।
इससे पहले बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने JEE-NEET परीक्षा को लेकर सात गैर-बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई। इस बैठक में शामिल सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कोरोना काल में परीक्षा टालने की मांग की। साथ ही ये तय किया गया कि वे इस मुद्दे पर संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार को इस मसले पर ट्वीट किया, ‘NEET-JEE के उम्मीदवार अपने स्वास्थ्य और भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उनकी कुछ वास्तविक चिंताएं हैं – कोविड-19 संक्रमण का खतरा, महामारी के दौरान ट्रांसपोर्ट और लॉजिंग को लेकर चिंता, असम और बिहार में बाढ़ का कहर।’ कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि इन परीक्षाओं के आयोजन से 25 लाख छात्रों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को खतरे में डाला जा रहा है।

क्यों फुस्स हो गया मुद्दा?
दो दिनों के भीतर ही विरोध और आंदोलन के तेवर ढीले पड़ गये और आज इस मुद्दे पर ना तो कोई बयानबाजी है और ना ही विरोध-प्रदर्शन। आखिर कांग्रेस ने इस राष्ट्रव्यापी मुद्दे पर अपने तेवर ढीले क्यों कर लिये…..जनहित के इस मुद्दे को जनता की आवाजा क्यों नहीं बनाया गया….ये विरोध किसी नतीजे पर क्यों नहीं पहुंचा? इसकी कई संभावित वजहें हो सकती हैं :-
- शायद कांग्रेस को जनता का उतना समर्थन नहीं मिला, जितनी उन्हें उम्मीद थी।
- शायद छात्रों और अभिभावकों का बड़ा वर्ग एग्ज़ाम देने के पक्ष में था।
- शायद कांग्रेस का कभी मकसद ही नहीं था, कि इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया जाए।
- और, पिछले उदाहरणों से देखें, तो कांग्रेस संगठन में इतनी ताकत और ऊर्जा ही नहीं बची है कि किसी मुद्दे को उठाएं और अंजाम तक पहुंचाएं।
- इसकी एक वजह कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर चल रहा गतिरोध भी हो सकता है। अभी जब तय ही नहीं है कि नेता कौन है, तो नेतृत्व कौन करेगा?
क्यों टालना चाहिए एग्ज़ाम?
विपक्ष ने ‘NEET-JEE परीक्षाओं को लेकर कुछ गंभीर सवाल उठाये थे और इसमें कोई शक़ नहीं कि वे जनहित से जुड़े थे। सोनिया गांधी के साथ बैठक के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल नि:शंक को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें परीक्षा की वजह से होनेवाली संभावित समस्याओं को विस्तार से बताया गया और इसे टालने की अपील की गई। इस चिट्ठी में बताई गई परेशानियां सच्ची और वाजिब लगती हैं –
- दोनों ही प्रतियोगी परीक्षाएं किसी भी विद्यार्थी के करियर में बहुत मायने रखती हैं। इसलिए यह अहम हो जाता है कि सभी विद्यार्थी….पूरी सुरक्षा और मानसिक शांति के साथ इन प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो सकें। कोरोना काल में ये संभव नहीं है।
- यदि ये इम्तिहान होंगे, तो उसके लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था और अन्य जरूरी सेवाओं मसलन होटल, लॉज और रेस्टोरेंट का खुलना जरूरी है, क्योंकि इस दौरान लाखों विद्यार्थी इधर से उधर जायेंगे। जिसकी कई राज्यों में इजाज़त नहीं है। (ये बाधा दूर हो गई है)
- इस समय लॉज या धर्मशाला भी नहीं खुल रहे हैं, जो होटल खुले हैं, उनकी कीमत काफी ज्यादा है। ऐसे में मध्य-वर्गीय या ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों को काफी परेशानी होगी।
- बिहार में नीट के लिए सिर्फ दो ही केंद्र- पटना और गया बनाये गये हैं। ऐसे में करीब 20 हजार छात्रों को नीट की तैयारी के साथ परीक्षा केंद्र पर पहुंचने की चिंता सता रही है।
- बिहार में बसें चलनी शुरू तो हो गयी हैं, लेकिन उनमें बैठने पर कोरोना का डर है। क्योंकि बस में कोविड से बचाव के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए ज्यादा परेशानी है।
- बिहार के कई प्रखंड बाढ़ से घिरे हैं। वहां के गांवों में फंसे अभ्यर्थियों को पटना या गया जाने में काफी परेशानी होगी।
- कई ऐसे भी विद्यार्थी होंगे, जो कंटेनमेंट जोन या रेड जोन में रह रहे होंगे। ऐसे में उनका घर से बाहर निकलना भी मुश्किल होगा।
- ऐसा भी हो सकता है कि परीक्षा देने के इच्छुक कुछ विद्यार्थी या उनके अभिभावक या निकट परिजन कोरोना से संक्रमित हों। ये किसी भी सूरत में इम्तिहान देने के लिए घर से बाहर नहीं जा पायेंगे।
- परीक्षा देने वाले बच्चों में से यह पहचान कर पाना भी मुश्किल होगा कि कौन कोरोना से संक्रमित है और कौन नहीं। ऐसे में यदि परीक्षाएं हुईं, तो अन्य विद्यार्थियों के साथ-साथ परीक्षकों में भी कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जायेगा।

सरकार ने क्यों लिया ऐसा फैसला?
- कई आईआईटी (IIT) संस्थानों के निदेशकों ने कहा कि नीट (NEET 2020) और जेईई (JEE 2020) परीक्षा में और देरी से ‘शून्य शैक्षणिक सत्र’ का खतरा है। वहीं, परीक्षा के स्थान पर अपनाए जाने वाले किसी भी अन्य विकल्प से शिक्षा की गुणवत्ता कम होगी और इसका नकारात्मक असर होगा।
- इनके मुताबिक हम पहले ही छह महीने गंवा चुके हैं। ऐसे में परीक्षाओं में और विलंब करने से आइआइटी के अकादमिक कैलेंडर और छात्रों के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं और लाखों छात्रों के लिए यह अकादमिक सत्र बेकार चला जायेगा।
- भारत और विदेशों के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 150 से अधिक शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) को पत्र लिखकर कहा है कि जेईई (मुख्य) और नीट (JEE-NEET) में यदि और देरी हुई तो छात्रों का भविष्य प्रभावित होगा।
- इन परीक्षाओं के आयोजन के खिलाफ हो रहे विरोध का उल्लेख करते हुए शिक्षाविदों ने अपने पत्र में कहा, ‘‘कुछ लोग अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए छात्रों के भविष्य के साथ खेलने की कोशिश कर रहे हैं।’
- इन हस्ताक्षरकर्ताओं में दिल्ली विश्वविद्यालय, इग्नू, लखनऊ विश्वविद्यालय, जेएनयू, बीएचयू, लंदन विश्वविद्यालय, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, हिब्रू यूनिवर्सिटी ऑफ येरुशलम और बेन गुरियन विश्वविद्यालय (इस्रायल) के भारतीय शिक्षाविद शामिल हैं।
- केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के मुताबिक 17 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने जेईई और नीट परीक्षा के लिये अपना प्रवेश पत्र डाउनलोड कर लिया है और इससे स्पष्ट होता है कि छात्र हर हाल में परीक्षा चाहते हैं।
- शिक्षा मंत्री ने चीन और जर्मनी का उदाहरण देते हुए कहा कि इन देशों में भी कोविड-19 महामारी के दौरान प्रवेश परीक्षाएं आयोजित हुई हैं। दूसरी ओर, अगर परीक्षा कराने में और देरी हुई तो यह साल जीरो एकेडमिक साल में बदल जाएगा जो उनके भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा।
- सुप्रीम कोर्ट का भी विचार है कि पूरे अकादमिक सत्र को बर्बाद नहीं किया जा सकता है। दो बार टालने के बाद ही परीक्षा को अंतिम रूप दिया गया है।

क्यों होने चाहिए एग्ज़ाम?
इसमें कोई दो राय नहीं कि परीक्षाएं आयोजित करने से कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन सवाल ये है कि कब तक घर में बैठे रह सकते हैं? हमारे देश में दुनिया का सबसे लंबा लॉकडाउन हुआ, लेकिन कोरोना की गति भले कम हो गई, लेकिन उसे रोका नहीं जा सका। इसके बाद सभी (केन्द्र एवं राज्य) सरकारों ने अपनी सुविधा और क्षमता के मुताबिक धीरे-धीरे पाबंदियों में ढील देनी शुरु की और बाजार-कारोबार, जरुरी सेवाएं शुरु कीं। आज दुनिया भर में कोरोना से निबटने की नीति यही है कि सभी अपना काम करते रहें, लेकिन सावधानी बरतें। अब दुनिया के किसी देश में किसी जरुरी सेवा पर रोक नहीं है।
दूसरा सवाल ये है कि अगर परीक्षाएं टालनी हो…तो कब तक के लिए टालें? WHO और मेडिकल से जुड़े लोगों के मुताबिक इस बात की पूरी आशंका है कि कोरोना का असर अगले साल के मध्य तक रहे। उसके बाद भी इसकी कोई गारंटी नहीं है कि कोरोना संक्रमण पूरी तरह खत्म हो जाए। उससे पहले कोरोना की वैक्सीन मिलने की संभावना भी कम है। ऐसे में कोरोना के डर से घर में बैठे रहना और छात्रों का पूरा एक साल खराब करना किस तरह उचित है?
बेहतर होगा कि इसका फैसला जनता पर छोड़ दिया जाए। जिन बच्चों को लगता है कि कोरोना से बचना ज्यादा जरुरी है, और जिन्हें एक साल परीक्षा छोड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता, वो घर में रहेंगे। लेकिन जिनकी तैयारी पूरी है, जो खतरा उठाकर भी परीक्षा देना चाहते हैं, वो घर से निकलेंगे और परीक्षा देंगे। ठीक वैसा ही… जैसा प्रवासी मजदूरों के पलायन के मुद्दे में हुआ था। जब उन्होंने मन बना लिया तो सरकार को भी मजबूरन स्पेशल ट्रेनें चलानी पड़ीं, बसों की आवाजाही की अनुमति देनी पड़ी।

क्या करना चाहिए?
सरकारों को वही करना चाहिए, जिसके लिए वो चुनी गई हैं…यानी जनता की मदद। कोरोना के इस संकट में राज्य सरकारों को छात्रों की मदद के उपाय सोचने चाहिए। होटल नहीं हैं, तो सरकारी गेस्ट हाउस खोल दीजिए। आवागमन की सुविधा नहीं है. तो एग्ज़ाम से पहले स्पेशल बसें चलाएं। छोटी गाड़ियों का इंतज़ाम करें, ताकि छात्र परीक्षा केन्द्रों तक पहुंच सकें। नेताओं की रैलियों के लिए हजारों गाड़ियों का इंतज़ाम करनेवाला सरकारी अमला….परीक्षार्थियों की मदद के लिए क्यों नहीं आगे सकता है?
और…एक अहम सवाल
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री के कार्यक्रम ‘मन की बात’ को लेकर ट्वीट किया है और इसमें परीक्षार्थियों की परेशानी की चर्चा नहीं करने पर उनकी खिंचाई की है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है…आप विपक्ष में हैं, कमेंट करना, सरकारी की कमियां ढूंढना आपका फर्ज है। लेकिन अगर मुद्दे में दम है, तो पूरा जोर लगाइये, और सरकार को फैसला बदलने को मजबूर कर दीजिए। और अगर दम नहीं है, तो फिर ट्वीट पर राजनीति करने का क्या फायदा?
दूसरी बात, क्या जरुरी है कि नकारात्मक राजनीति से ही अपनी पहचान बनाई जाए? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि एक ट्वीट गैर-बीजेपी शासित राज्यों के लिए भी कर दें, जिसमें सरकारों और पार्टी के कार्यकर्ताओं को परीक्षार्थियों की हरसंभव मदद करने की अपील की जाए? क्या रोजाना सरकार के विरोध के बजाए…एक दिन जनता के सहयोग के लिए सड़कों पर उतरने से ज्यादा राजनीतिक लाभ नहीं होगा?